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मजबूत देश का परिणाम है नागरिकता संशोधन अधिनियम -जेडब्लूएस 

जर्नलिस्ट वेलफेयर सोसाइटी के द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम पर आवश्यक बैठक बुलाई गई थी, जिसमें तमाम वक्ताओं ने केंद्र सरकार के द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू करने की सराहना की । किन स्थितियों और परिस्थितियों में नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू किया गया इस पर वृहद प्रकाश वक्ताओं के द्वारा डाला गया। वरिष्ठ वक्ताओं ने कहा कि भारत के विभाजन की पूर्व संध्या पर, यह आशा की गई कि भारत और पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यक नागरिकों को नागरिक अधिकार और सम्मान का जीवन मिलेगा। इसमें उनके धर्म और परंपरा के अधिकार शामिल थे। हालाँकि, अफगानिस्तान, पाकिस्तान व बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा नहीं की गई। ऐतिहासिक नेहरू-लियाकत समझौता, जिसे दिल्ली समझौता के रूप में भी जाना जाता है, पर 8 अप्रैल, 1950 को भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे। इसमें कहा गया कि अल्पसंख्यक समुदाय के राजनीतिक एवं अन्य कार्यालयों में तैनात और अपने देश के नागरिक और सशस्त्र बलों में सेवा करने के लिए सदस्यों को सार्वजनिक जीवन में भाग लेने का समान अवसर दिया जाएगा। दिल्ली समझौते में कहा गया कि वे अपनी धार्मिक प्रथाओं का पालन करने के लिए स्वतंत्र होंगे। भारत ने अपना वादा निभाया, लेकिन हमारे पड़ोसी देश अपने वादे निभाने में विफल रहे। पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों की जनसंख्या 22% से घटकर 07% हो गई है। वहीं, भारतीय अल्पसंख्यकों की आबादी 23 से 30 फीसदी तक बढ़ गई है। यह पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों की कमजोर स्थिति को उजागर करता है। जबकि, भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सीईसी और सीजेआई जैसे महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों पर मुस्लिम समुदाय के लोग रहे हैं। लेकिन, तीनों पड़ोसी देश अपने अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहे। इसलिए, नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) की आवश्यकता उत्पन्न हुई। अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश भारत से सटे इस्लामिक मान्यता वाले देश हैं। अफगान संविधान का अनुच्छेद 2 इसे एक इस्लामिक राज्य बनाता है। इसी प्रकार बांग्लादेशी और पाकिस्तानी संविधान भी यही घोषणा करते हैं। भारत-पाकिस्तान की सीमा 3,323 किलोमीटर, भारत-बांग्लादेश की सीमा 4,096 किलोमीटर और भारत-अफगानिस्तान की सीमा 106 किलोमीटर है। हमारी भौगोलिक सीमा से सटे तीनों देशों की कानूनी व्याख्या अलग-अलग हो सकती है लेकिन ये एक तरह से इस्लामिक राज्य हैं। किसी भी इस्लामी राज्य/गणराज्य में रहने वाले मुसलमानों पर किसी भी धार्मिक आधार पर उन पर अत्याचार की उम्मीद नहीं की जा सकती। हालाँकि, उस राज्य के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है। यह अधिनियम भारत की भूमि सीमा से सटे इन तीन देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों की समस्या के समाधान के लिए लाया गया है। सीएए इन धार्मिक अल्पसंख्यकों को उनके सभी पिछले दस्तावेजों को नजरअंदाज कर उन्हें नागरिकता देकर इन सभी देशों में किए गए धार्मिक उत्पीड़न को खत्म कर रहा है।

आंकड़ों से पता चलता है कि 2019 में समाप्त होने वाली 5 साल की अवधि में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से 560 से अधिक मुस्लिम शरणार्थी भारत आए हैं। इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता कि भारतीय कानून धर्म के आधार पर भेदभाव करता है। चूंकि, नागरिकता संशोधन अधिनियम स्थायी समिति, संयुक्त समिति आदि से होकर गुजरा था, जिससे कि लोकतांत्रिक संसदीय प्रक्रिया का सम्मान हुआ। अतीत में भी, युगांडा और श्रीलंकाई शरणार्थियों को नागरिकता देने के भारत के संप्रभु निर्णय पर धार्मिक आधार पर कोई सवाल नहीं उठाया गया था और न ही 1971 में, जब बांग्लादेशी शरणार्थियों को नागरिकता दी गई थी, तब कोई सवाल उठाया गया था।

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