– डॉ मनोज कुमार तिवारी
ओसीडी एक प्रकार का चिंता विकार है, जिसमें व्यक्ति के मन में कुछ विचार बार-बार आते हैं जिससे उसे बेचैनी होती है। जिसे दूर करने के लिए वह एक ही काम को बार-बार करता है। वह एक ही काम को इतनी बार करता है, जिससे उसका दैनिक जीवन प्रभावित होता है… जैसे- मन में हाथ के गंदे होने का बार-बार विचार आना जिससे बेचैनी होती है और फिर उसे दूर करने के लिए व्यक्ति बार-बार हाथ होता है। दुनिया भर में 2-3% लोग मनोग्रसित बाध्यता विकार से ग्रसित है। ओसीडी से ग्रसित कुल लोगों में से 25% में यह बीमारी 14 वर्ष की उम्र से शुरू हो जाती है। यह बीमारी महिला और पुरुष में समान रूप से होती है, किंतु पुरुषों में इसके लक्षण महिलाओं की अपेक्षा कम उम्र में शुरू हो जाता है। औसतन यह 20 वर्ष की उम्र से प्रारंभ होता है किंतु कुछ लोगों में इसके लक्षण 2 वर्ष की उम्र से ही दिखाई पड़ने लगते हैं। भारतवर्ष में मानव ग्रसित बाध्यता विकार से .8% लोग ग्रसित है।
लक्षण
बाध्यकारी विचार :
- शरीर के गंदे होने का डर
- शरीर की दुर्गन्ध के प्रति अति संवेदनशीलता।
- क्रम, स्वच्छता और सटीकता के लिए संवेदनशीलता
- बुरे विचारों को सोचने का डर
- शर्मिंदगी वाले कार्य करने का डर
- लगातार कुछ ध्वनियों, शब्दों या संख्याओं को सोचना
- अनुमोदन या माफी माँगने की आवश्यकता लगना।
- इस भय में रहना कि कुछ भयानक होगा
- अपने या किसी और को नुकसान पहुंचने का डर होना।
बाध्यकारी व्यवहार :
- बार-बार हाथ धोना, नहाना या दांतों को साफ़ करना
- शरीर के दुर्गन्ध को छिपाने के लिए बार-बार उपाय करना।
- वस्तुओं को बार-बार साफ़ करना, सीधा करना और क्रमबद्ध करना।
- कपड़ों में बार-बार ज़िप या बटन की जांच करना।
- लाइटों, उपकरणों या दरवाजों की बार-बार जांच करना, यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे बंद हैं या नहीं।
- कुछ शारीरिक गतिविधियों को दोहराना, जैसे कुर्सी पर बैठकर उठना।
- वस्तुएं एकत्रित करना
- बार-बार एक ही सवाल पूछना
- बार-बार एक ही बात कहना।
- लगातार धार्मिक रस्में करना।
बच्चों में ओसीडी के लक्षण :
ओसीडी से ग्रस्त बच्चों में यह आम है कि जब तक उन्हें सही न लगे, तब तक वह कार्यों को दोहराते रहते हैं। जैसे दरवाजे से बार-बार अंदर बाहर जाना, सीढ़ियों में ऊपर नीचे जाना, चीजों को दाएं हाथ से और फिर बाएं हाथ से छूना या स्कूल के कार्य को बार-बार करना।
मनोग्रसित बाध्यता विकार के कारण :
ओसीडी के कारणों को पूरी तरह से जाना नहीं जा सका है। ओसीडी होने के निम्नलिखित कारक हो सकते हैं –
जैविक कारक : ओसीडी शरीर में प्राकृतिक रासायनिक प्रक्रिया या मस्तिष्क के कार्यों में बदलाव का परिणाम है।
आनुवांशिकता : ओसीडी होने का एक कारक आनुवांशिकता हो सकता है, लेकिन अभी तक ऐसा कोई विशिष्ट जीन पहचाना नहीं गया है जिससे ओसीडी का सीधा सम्बन्ध हो। अनेक अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि 48% लोगों में ओसीडी आनुवंशिक कारणों से होता है।
वातावरण : संक्रमण जैसे कुछ पर्यावरणीय कारकों को ओसीडी का कारण माना जाता है, लेकिन अभी अधिक शोध की आवश्यकता है।
जोखिम कारक :
परिवार का इतिहास : माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्यों को यह विकार होने से ओसीडी विकसित होने का जोखिम बढ़ जाता है।
तनावपूर्ण जीवन घटनाएं : यदि आप दर्दनाक या तनावपूर्ण घटनाओं का अनुभव करते हैं, तो आपको ओसीडी होने का जोखिम बढ़ जाता है।
मानसिक विकार : ओसीडी अन्य मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकारों से संबंधित हो सकता है, जैसे- चिंता, डिप्रेशन।
मादक द्रव्यों का सेवन : नशा करने वाले व्यक्तियों में ओसीडी होने की संभावना अधिक होती है
मनोग्रसित बाध्यता विकार से बचाव :
ऐसा कोई उपाय नहीं है जिससे किसी व्यक्ति को ओसीडी हो ही ना किंतु इसके जोखिम कारकों से बचाव करके इसकी संभावना को कम किया जा सकता है।
मनोग्रसित बाध्यता विकार का इलाज :
इलाज से ओसीडी के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। कुछ लोगों को आजीवन इलाज की आवश्यकता होती है। मनोचिकित्सा और दवाएं के संयोजन से उपचार प्रभावी होता है।
मनोचिकित्सा :
- संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (सीबीटी)
- व्यक्तिगत व सामूहिक परामर्श सेवाएं
व्यवहार प्रबंधन : व्यवहारिक चिकित्सा में बाध्यता को रोकने और उससे उत्पन्न बेचैनी को सहन करने का प्रशिक्षण दिया जाता है, यदि कोई रोगी हर 10 मिनट पर हाथ होता है तो उसे 30 मिनट तक हाथ ना धोने देना इससे वह बेचैन होता है किंतु उसे समझाते रहना कि हाथ न धोने से कुछ हानि नहीं है। आप ठीक हैं इसी तरह से आप प्रयास करके इस समस्या से छुटकारा पा सकते हैं।
चिकित्सा : ओसीडी में अनेक दवाएं दी जाती हैं किंतु यह दवाएं केवल विशेषज्ञ मानसिक रोग के सलाह पर ही लेना चाहिए।
(लेखक एसएस हॉस्पिटल, आईएमएस बीएचयू, वाराणसी के वरिष्ठ परामर्शदाता हैं)