
✍️ मिश्रा दीपशिखा, प्रयागराज, (उ.प्र.)
तुम दूर जाकर भी ,
साथ रहते हो पापा ।
श्यामा की लाडली है,
सब कहते हैं पापा।
रक्त के कण कण में,
तुम बहते हो पापा।
तेरी शिक्षा बल देती,
निडर रहती हूं पापा।
मां का संस्कार सदा,
सत्कर्म सिखाता है पापा।
विचारों में भ्रमण करते,
सत्यपथ दिखाते हो पापा।
संघर्ष से जब घबराई,
सीख साथ देती पापा।
सफलता के पीछे खड़े,
उत्साह बढ़ाते हो पापा।
दिखते नहीं हो मगर,
रहते एहसासों में पापा।
शब्द बन कागज पर,
सृजन करते हो पापा।
तुम दूर जाकर भी,
साथ रहते हो पापा।
श्याम की लाडली है,
सब कहते हैं पापा।