✍️ रवि यादव
मुंबई : जैन धर्म में भ्रमण भगवान महावीर प्रभु की वाणी को आगम कहा जाता है। प्रभु श्री वर्धमान स्वामीजी को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई, बाद में ग्यारह वेदांत वारीण पंडितों की जो विप्र कुलोत्पन्न थे, ये प्रभु के पास आए। उनको वेद की कुछ कुछ पंक्तियों के परमार्थ उनके मन में नहीं बैठ रही थी। उनको आत्मा है या नहि है, कर्म है या नहि है, ऐसे उत्पन्न हुए संशयो का समाधान प्रभु श्री महावीर देव से प्राप्त होने पर वे तुरंत प्रभु के शिष्य बन गए। साथ ही उन्होंने जैन दीक्षा का स्वीकार किया।
उन ग्यारह पंडितो में जो अग्रणी थे वे जैन शासन के आद्यगुरु श्री गौतम स्वामीजी हुए। प्रभु के दिव्यज्ञान से प्रभावित ने उन ग्यारह पंडितों को प्रभु से दिव्यज्ञान प्राप्त करने की भावना हुई, उन्होंने प्रभु को तीन प्रश्न पूछे और प्रभुजीने सर्व तत्वोंकी नीव समान ३ प्रत्युत्तर दी। उन तीन चावियों के प्रभावे से उन पंडितों को ज्ञान का बड़ा खजाना प्राप्त हो गया। जिसका परिणाम है जैन धर्म के आगम। जैन धर्म की मान्यता मुताबिक संपूर्ण जीवविज्ञान, संपूर्ण विश्वविज्ञान एवं सम्पूर्ण कर्मविज्ञान इन आगयों में समाविष्ट है। वर्तमान में ऐसे ४५ आगम उपलब्ध हैं। इन आगयों का अनुगमन करनेवाले और भी शास्त्र विद्यमान है जिनकी ग्लोक संख्या करोडों को पार करती है। जैन धर्म में इन आगमों का अत्यधिक महत्व है।
जैम धर्म की इस धरोहर को नया जीवन देने हेतु मुंबई वालकेच्चर स्थित श्रीपालनगर जैन संघ ने बड़ा कदम उठाया। ट्रस्टीवर्ष श्री रमणभाई लालचंदजी जैन कई सालों से उसे आगे बढ़ा रहे हैं। इस कार्य में जैन आचार्य की भी बड़ी आवश्यकता है क्योंकि यह कार्य अति कठीन एवं दुर्गम है। सिर्फ धनव्यय साध्य यह कार्य नहीं है। अपितु काफी समय और काफी समझ एवं अनुभव से ये कार्य साध्य हुआ है।
जैन धर्म के मूर्धन्य पुरुष, प्रखर जैनाचार्य श्री रामचंद्रसूरीश्वरजी महाराजा के साम्राज्यवर्ती विद्वान आचार्य श्री चंद्रगुप्तसूरीश्वरजी महाराजाने इस कार्य को अपना मानते हुए बड़ी निष्ठा से संपन्न किया। कुछ समय पूर्व इसी अनुसंधान में विशेष समारोह रखा गया था जिसमें आठ ग्रंथो का अनावरण किया गया था।
21 दिसंबर 23 गुरुवार को सुनहरा अवसर वापस आया और
श्रीपालनगर जैन संघ के तत्त्वाधान में पू, विद्वान जैनाचार्य श्री चंद्रगुप्तसूरिजी, विद्वान जैनाचार्य श्री नयवर्धनसूरिजी आदि अनेक सूरिदेवों एवं श्रमण श्रमणीगणों की निगरानी में दूसरे ३१ ग्रंथो की अनावरण विधि ता. २१ डिसेंबर २०२३ के दिन मथुरादास बसनजी होल में अभूतपूर्व समारोह के साथ संपन्न हुआ है।
प्रारंभ में भव्य रथयात्रा तत्पश्चात विविध मान्यवरों द्वारा दीप प्रागट्यम् आदि संपन्न होने के बाद क्रमशः सभी ग्रंथो की अनावरण विधि की गई थी। मंच संचालन श्री संजयभाई वखारीया ने अपनी जोशीली वाणी से कीया था। संगीत प्रस्तुति श्री केतनभाई कोलकत्तावालो ने पेश की थी। बडी संख्या में जैन समाज इस प्रसंग पर उपस्थित था।