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पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ का जन्म एवं लेखन

✍️ प्रवीण वशिष्ठ 

मिर्ज़ापुर के बड़े साहित्यकारों में चौधरी बद्रीनारायण ‘प्रेमधन’ के बाद अगर कोई नाम आता है तो वह पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ का है। उग्र जी का जन्म अपने पैतृक गांव जलालपुर से कुछ दूर स्थित चुनार में हुआ था। उग्र जी अपनी पत्रकारिता व तेवर के लेखन के लिए जाने जाते थे। अपने जीवन भर में तमाम साहित्यिक वैचारिक विरासत के अतिरिक्त कुछ विवाद भी ठीक उसी प्रकार से छोड़ गए जैसे कोई व्यक्ति मृत्य पर्यंत अपनी विरासतनामा! आज चुनार में उग्र जी के पहचान के साथ ही उनका जन्म स्थान विलुप्त हो चुका है। उन्होंने अपनी आत्मकथा में ‘सद्दुपुर मुहल्ले’ का जिक्र अपने जन्मस्थान के रूप में किया है। चुनार के एक चुनारजीवी कुशवाहा दीप मौर्य बताते हैं कि एक बार कुछ साहित्यकार उनके जन्मस्थान सद्दुपुर में एक शिलापट्ट लगाने गए पर अधिग्रहणाधीशों के विवाद के कारण वह शिलापट्ट एक कुँए पर लगा कर चले आये। अब विषय यह है कि उनका जन्म कुएं में तो हुआ नहीं होगा! दुर्भाग्य! आज उग्रजी के मरणोपरांत चुनार में उनके जन्मप्रमाण से जुड़ा हुआ कोई जगह प्राप्त नहीं होता है। दरसल, उग्र जी अपने बाल्यवस्था के उपरांत ही चुनार को छोड़ दिया। उन्होंने अपनी आत्मकथा में स्वयं लिख है कि चुनार छोड़ कर कैसे वो बनारस आए फिर कलकत्ता गये और पुनः फिर बनारस में कुछ समय रहे और अंत में दिल्ली में उनका देहांत हुआ। आज चुनार भले उनको स्मरण न करे लेकिन उनका नाम चुनार के नामचीन साहित्यकारों में जुड़ा हुआ है।

पांडेय बेचन शर्मा उग्र का जन्म सद्दुपुर के किस मकान में हुआ अगर यह विषय हम छोड़ भी दें तो समझिए विवाद कम नहीं हुआ। अगला विवाद इस बात पर है कि उग्र का जन्म कब हुआ? इस विषय पर विचार करने के लिए उग्र जी अपने जीवनी ‘अपनी खबर’ में लिखते हैं कि उनका जन्म पौष शुक्ल अष्टमी (यानी दिसम्बर महीने के शुक्ल पक्ष में) को संवत 1957 में हुआ। समय की अपनी भाषा होती है और उसका अपना शैली होता है। उग्र जी उस समय के भाषा में आज के लिए एक विवाद छोड़ कर चले गए। चुनार में लगभग 2004 से उग्र जयंती 24 दिसंबर को मनाया जाता रहा है। इसी दिन चुनार के एक और साहित्यकार चुनारीलाल की पुण्यतिथि भी मनाया जाता है। 24 दिसंबर को हर वर्ष एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। चुनार में उग्र पुस्तकालय 2013-14 में बन जाने के बाद यह गोष्ठी उसी पुस्तकालय में हर वर्ष मनाया जाता है। 2022 में चुनार के वरिष्ठ पत्रकार राजीव ओझा के प्रयास से ‘चलचित्र सिनेमा’ का नाम बदलकर ‘उग्र सभागार’ रख दिया गया। तत्कालीन मण्डलायुक्त योगेश्वर राम मिश्र ने इस सभागार का उद्घाटन किया। इतना कुछ होने के बाद भी चुनार के विद्वतजनों में इस बात को लेकर मतभेद है कि पौष शुक्ल अष्टमी आखिर किस दिन पड़ता है? यह सवाल उतना प्रासंगिक नहीं है जितना कि उनके जयंती को मनाना! युग का कर्तव्य है वह अपने पुर्खों को याद रखे किस दिन याद रखे यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है। फिर भी यह भी साहित्यकारों एवं इतिहासकारों का कर्तव्य है कि साहित्यकार के सही जन्म तिथि का पता लगाएं। इस वर्ष एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए चुनार के पत्रकार राजीव ओझा और बुद्धजीवी गणेश पांडेय जी ने इस विषय पर छानबीन करते हुए उग्र जी के जन्मदिवस को 29 दिसंबर 2023 को मनाने का फैसला लिया है। गणेश पांडेय के द्वारा मिर्ज़ापुर के नामी साहित्यकार भवदेव पांडेय की पुस्तक ‘पांडेय बेचन शर्मा उग्र’ का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि भवदेव पांडेय अपनी पुस्तक में उग्र के जन्म की तिथि 29 दिसंबर को माना है। उन्होंने इस दिन को 1900 के पंचांग में भी खोज निकाला। गणेश पांडेय के अनुसार पंचांग में 29 दिसंबर, शनिवार को पौष शुक्ल अष्टमी के दिन पांडेय बेचन शर्मा उग्र का जन्म हुआ था। साहित्यिक स्रोतों और प्रमाणिकता के आधार पर इस वर्ष 29 दिसंबर को उग्र जयंती मनाने का फैसला एक ऐतिहासिक कदम है।

पांडेय बेचन शर्मा उग्र से जुड़ा एक विवाद यह भी है कि उन्हें अश्लील लेखक बताते हुए समकालीन साहित्यकार बनारसी दास चतुर्वेदी ‘घासलेटी’ कहते हुए उनकी आलोचना करते हैं। यह आक्षेप कितना सत्य है इसपर उग्र जी ने अपनी प्रसिद्ध समकालीन समलैंगिकता विषय पर पूरे दुनियां में लिखी पहली कहानी ‘चाकलेट’ के संपादन में लिखते हैं कि “चाहे मुझे कुछ भी कहा जाए लेकिन क्या अपने आप को सही कहने वाले लोग यह बता सकते हैं कि क्या समाज में ऐसी बुराई नहीं व्याप्त है!” चॉकलेट में समलैंगिकता को उग्र जी एक छुपे हुए सामाजिक बुराई के रूप में देखते हैं। उस दौर में मतवाला साहित्यिक पत्रिका के माध्यम से इस विषय को उठाना एक साहित्यकार के दूरगामी दृष्टिकोण को दर्शाता है। आज हम दलित विमर्श पर बहुत सी किताबें और लेख पढ़ सकते हैं लेकिन ‘बुधुआ की बेटी’ में इस विमर्श को दिशा देने का कार्य चुनार के साहित्यकार द्वारा ही किया गया। पांडेय बेचन शर्मा उग्र के स्वभाव में अल्लहड़पन था जो उनके साहित्य से स्पष्ट दिखाई देता है। अपने आत्मकथा ‘अपनी खबर’ में उग्र जी अपने पुराने मित्र पंडित कमलापति त्रिपाठी जो उस समय कांग्रेस के बड़े नेता और आजादी के बाद रेलमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी थे। कमलापति त्रिपाठी बारे में खुलकर अपनी बात लिखते हैं जहाँ उग्र जी मित्र की कसौटी पर कमलापति त्रिपाठी की आलोचना करते हैं, वहीं एक देशभक्त नेता के रूप में उनकी प्रसंशा भी करते हैं। बाद में ‘आजादी और उसके बाद’ नामक अपनी पुस्तक में कमलापति त्रिपाठी उग्र जी के आलोचना और आक्षेप का बड़ा ही विनम्रतापूर्वक उत्तर देते हुए उनसे क्षमा भी मांगते हैं।

पांडेय बेचन शर्मा उग्र एक बेबाक साहित्यकार थे, इसीलिए बचपन में उन्हें ‘अगिया बैताल’ भी कहा गया। समाज के हर पहलू और व्यक्ति विशेष के बारे में खुलकर अपनी बात रखने वाले उग्र जी को सैकड़ों कहानी लिखने का श्रेय जाता है। जीवनी लेखन की विद्या हो या उपन्यास लेखन में आलोचना और पत्रकारिता का विमर्श, उग्र जी एक आधारशिला रख कर चले गए। एक पत्रकार के रूप में आज समाचार पत्र का संपादन और महादेव सेठ की साहित्यिक पत्रिका मतवाला का संपादन भी उग्र जी ने किया। अपने दौर के साहित्यकार और देश-समाज की स्थिति के बारे में बेबाक लिखने का कार्य उग्र जी ने किया।

✍️ प्रवीण वशिष्ठ 

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