✍️ आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका), ग्वालियर, मध्य प्रदेश
माता यशोदा की गोद में खेले
कृष्ण कन्हाई अब सोच रहे हैं
कैसे करूं मैं अब मैया से विनती,
खाने को सखा राह देख रहे हैं।।
खेल खेल में कृष्ण सखाओं संग,
मक्खन की हांडी को ताड़ रहे हैं
जैसे ही मैया हांडी माखन से भरदे
मैया को मक्खन के लिए बोल रहे हैं।।
अब आई बारी मक्खन खाने की
मैया दे मधुर मुस्कान वे बोले रहे हैं
ओ री यशोदा माई मैं तेरा लल्ला
करवा देना मेरा मक्खन से मुंह झूठा।।
माटी ना खाऊंगा सच में कहता हूं
गईया चराऊंगा में नित सांझ,सवेरे
एक हांडी भर दे माखन से मेरी तू
राधा, सखा सब रास्ता देख रहें है।।
कोई की मैया ना देवे हैं मक्खन
जितनी प्यारी है तू ओ मेरी मैया
चोरी करूंगा न मक्खन की अब से
दे जो तू मुझे एक माखन की हंडिया।।
ओ मैया जब देगी मक्खन की हंडिया
कन्हैया का तेरा यह वादा है ओ मैया
काम करूंगा सारा मैं तेरा,ओ मेरी मैया
सताऊंगा न तुझको तेरी चराउंगा गईयां।।