बाल कृष्ण और यशोदा की पूजा करने से दूर होते हैं संतान के सभी कष्ट यशोदा जयंती के दिन
✍️ आशी प्रतिभा दुबे, ग्वालियर, मध्य प्रदेश
हिंदुओं की पौराणिक कथाओं के अनुसार माता यशोदा की पूजा कृष्ण पक्ष फाल्गुन मास की षष्ठी तिथि को की जाती है । इस दिन कि ऐसी मान्यता है कि यदि कोई स्त्री, पूर्ण विश्वास और श्रद्धा भाव के साथ माता यशोदा का कन्हैया को गोदी में लिए चित्र के सामने अपनी मनोकामना रख कर उपवास व्रत करती है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, एवं यह व्रत करने से संतान के जीवन के सभी प्रकार के कष्ट भी दूर होते हैं। माता यशोदा जयंती के दिन भगवान के बाल रूप की ही पूजा की जाती है और ठाकुर जी को भोग में पंजीरी मिश्री मक्खन का भोग कृष्ण जन्माष्टमी की तरह ही लगाया जाता है।
पूजा की विधि :
प्रातकाल सूर्योदय से पहले उठकर नित्य कर्म एवम् स्नान आदि करके ही इस व्रत को संकल्प सहित धारण करते हैं। व्रत में पूजा के लिए माता यशोदा की गोद में बैठे कृष्ण भगवान की तस्वीर को समक्ष रखकर अक्षत रोली चावल कुमकुम के साथ पुष्प चढ़ाकर ईश्वर से प्रार्थना करते हैं । ईश्वर को धूप दीप के साथ पंजीरी मिश्री मक्खन या घर में बने आटे की मीठी रोट का भोग लगाया जाता है , माता यशोदा की आरती करके ही पूजा प्रारंभ करते हैं। साल में एक बार आने के कारण ही इस व्रत को पूरी निष्ठा से उपवास रखकर पूर्ण किया जाता है। उपवास में आप साय काल भोजन या दिन में एक समय फलाहार कर सकते हैं।
हमारे शास्त्र अनुसार बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से यशोदा जयंती के दिन श्री कृष्ण और यशोदा जी की पूजा करता है तो उसकी संतान की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है एवं संतान के जीवन के कष्ट दूर होते हैं।
यशोदा जयंती व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार माता यशोदा ने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की थी। जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा तब माता यशोदा ने कहा कि मेरी इच्छा तब ही पूर्ण होगी जब आप मुझे पुत्र रूप में मेरे घर आएंगे। इसके बाद भगवान विष्णु ने कहा कि आने वाले समय में वासुदेव और देवकी मां के घर में जन्म लूंगा। लेकिन मेरा लालन पालन आप ही करेंगी। समय बीतता गया और ऐसा ही हुआ।
भगवान श्री कृष्ण ने देवकी और वासुदेव के यहां आठवीं संतान के रूप में पुत्र का जन्म लिया और इसके बाद वासुदेव उन्हें नदं और यशोदा के यहां छोड़ आए। जिससे उन्हें कंस के क्रोध से बचाया जा सके और उनका लालन पालन अच्छी प्रकार से हो सके। इसके बाद माता यशोदा ने कृष्ण जी का लालन पालन किया। माता यशोदा के विषय में श्रीमद्भागवत में कहा गया है-
‘मुक्तिदाता भगवान से जो कृपाप्रसाद नन्दरानी यशोदा को मिला, वैसा न ब्रह्माजी को, न शंकर को, न उनकी अर्धांगिनी लक्ष्मीजी को कभी प्राप्त हुआ।
” कथा समाप्त ” माता यशोदा श्री कृष्ण सभी संकट को दूर करे।