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Poem : प्यासी धरती

✍️  उदय किशोर साह, (बाँका, बिहार)

नीले आसमान के झरोखे से
काली घटा ने मौके पे
धरती की व्यथा देख घबराई
बादल ने बुंदे रिमझिम बरसाई

सावन की पूरवाई ने
धरती के सुखा आँचल में
काली घटा साथ ले कर आई
बादल ने बूंदे रिमझिम बरसाई

बेबस प्यासी धरती ने
सुखी ताल तलैया ने
जी भर अपने में नीर समाई
बादल ने बुंदे रिमझिम बरसाई

पानी की रेला देख दादुर ने
गीत झींगुर के संग है गाई
मोर चुनर ओढ़ शरमाई
बादल ने बुंदे रिमझिम बरसाई

सावन के पावन महीने में
नीड़ में छुपे परिन्दों ने
बरखा रानी को देख मुस्कुराई
बादल ने बुंदे रिमझिम बारसाई

प्यार में डुबे प्रेमी प्रेमिका ने
अमुवा के बगीचे में
भीग भीग कर ली प्रेम अंगड़ाई
बादल ने बुंदे रिमझिम बरसाई।

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