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पूजा-पाठ के भगवान को पाने के लिए भोजन करने की विधि पहले आनी चाहिए

✍️ सलिल पांडेय

अक्सर होता है कि पूजा के आसन पर बैठते ध्यान अन्यत्र चला जाता है तथा भगवान या श्लोक-मंत्र का पाठ-जप सिर्फ औपचारिक ही रह जाता है।

इस तरह मन का भटकाव दिन-दो दिन, साल-दो साल ही नहीं आजीवन भी पीछा नहीं छोड़ता।

भटकाव-युक्त पूजा-पाठ के बाद वैसा आह्लाद नहीं मिलता जैसा धर्मग्रन्थों में वर्णित है।

इस तरह कीपूजा बोझिल ही लगती है और पूजा-पाठ के आसन से उठने पर थकान भी लगती है।

ऐसी स्थिति में ईश्वरीय सत्ता पर से विश्वास उठ जाता है।

लोक-कथा का एक दृश्य : आंखों की रोशनी !

एक व्यक्ति की नेत्र-ज्योति चली गई थी। वह कुछ देख नहीं पा रहा था। प्रतिदिन वह सुबह ही मन्दिर में जाकर भगवान से नेत्रज्योति लौट आने की प्रार्थना करता था। दोपहर में मन्दिर बंद हो जाता तब मन्दिर के बाहर खड़ा होकर प्रार्थना करता रहता था।

एक दिन उस इलाके के राजा की सवारी निकली। राजा ने गांव के सुनसान स्थल पर मंदिर के बाहर खड़े उस व्यक्ति को देखकर पास बुलाया और अकेले मंदिर के बाहर खड़े होने का कारण पूछा।

उस अंधे व्यक्ति ने बताया कि वह नेत्रज्योति के लिए भगवान की प्रार्थना कर रहा है।

राजा ने पूछा कि कितने दिनों से ऐसा कर रहे हो ?

अंधे व्यक्ति ने बताया- ‘हुजूर, तकरीबन 10 सालों से मंदिर में सुबह आ जाता हूं और फिर रात तक भगवान को अपना दुःख सुनाता हूँ।

‘राजा ने कहा-‘देखो, मैं शिकार के लिए निकला हूं। चार घण्टे बाद फिर लौटूंगा। यदि तब तक तुम्हारी नेत्र-ज्योति नहीं लौटेगी तो तलवार से तुम्हारा गर्दन काटकर धड़ से अलग कर दूंगा।’

इतना कहकर जब राजा आगे चला गया, तब वह अंधा जिंदगी को लेकर घबराया और अंतर्मन से रो पड़ा कि प्रभु अब रक्षा करो। आंखों में रोशनी के चलते जीवन पर संकट आ गया है।

चार घण्टे बाद जब राजा लौटा और पूछा कि आंखों की रोशनी लौटी या नहीं? तब अंधे ने बड़ी प्रसन्नता से कहा- ‘हुजूर गजब हो गया, आज तो रोशनी लौट आई और में सब कुछ देखने लगा।

राजा ने कहा- ’10 साल से तुम यहाँ आकर नाटक कर रहे थे ? तुम्हें खुद भी भगवान पर विश्वास नहीं था। आज जब जिंदगी पर मौत मंडराती दिखी तब तुमने अंतर्मन से भगवान की प्रार्थना की।’ राजा ने आगे कहा-‘ हमारे राज्य का अगर हर व्यक्ति इसी तरह फालतू समय गंवाएगा तब तो राज्य का विकास बाधित हो जाएगा और प्रगति नहीं हो पाएगी।

इस बोध कथा का आशय यही है कि दृढ़ विश्वास के साथ जब कोई काम किया जाता है तब सफलता जरूर मिलती है। भगवान को पाने के नियम भी अपनाने की जरूरत है।

सिर्फ एक-दो सावधानियों से पूजा-पाठ में ईश्वरीय उपस्थिति की अनुभूति हो सकती है

  • पूजा में सीधे भगवान को साक्षात वाहन पर देखने का नहीं बल्कि भगवान के आनन्दस्वरूप की अनुभूति का लक्ष्य होना चाहिए।
  • भगवान की उपस्थिति की अनुभूति के लिए भोजन सही ढंग से करने की आदत डालनी चाहिए भोजन करते वक्त पूरी तरह मौन (चुप) रहना चाहिए।
  • भोजन के हर कौर, चाय तथा पानी पीते वक्त चुप रहना चाहिए।
  • टीवी, मोबाइल देखते हुए भोजन नहीं करना चाहिए।
  • खड़े होकर या जूता-मोजा पहनकर भोजन जहर होता है इसलिए इस तरह भोजन नहीं करना चाहिए।
  • सीढ़ी, ड्योढ़ी पर बैठकर भोजन नहीं करना चाहिए।
  • पलथी मारकर तथा रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी कर भोजन करना चाहिए।
  • जैसे घर के छत का बीम टेढ़ा हो जाए तो पानी टपकने लगता है, वैसे रीढ़ की हड्डी सीधी न रहने पर भोजन का शरीर से एकात्मकता नहीं बन पाती है।
  • घर में समूह के साथ बैठकर भोजन करने से अन्न की ऊर्जा सभी सदस्यों के शरीर में जाते महा-ऊर्जा में बदल जाती है।
  • किसी समारोह में भोजन एक साथ बैठकर करने के बाद एक साथ ही उठना चाहिए।
  • भोजन के पदार्थ न्यायोचित ढंग से अर्जित आय का ही होने चाहिए।
  • छल-छद्म के भोजन से ईश्वरीय-आह्लाद नहीं मिल सकता।
  • इस तरह की आय से भौतिक सुख मिलेगा जबकि आंतरिक आनन्द कोसो दूर खड़ा रहेगा।

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