✍️ अनूप भार्गव, सीईओ और निदेशक, एम्पायर सेंट्रम
मुंबई: भरोसा पैदा करने के लिए पारदर्शिता का कोई विकल्प नहीं है। अगर आपको इस पर यकीन नहीं होता, तो आपको केवल रियल सेक्टर पर नजर डालने की ज़रूरत है, जिसका भरोसे का स्तर परम्परागत रूप से खराब रहा है।
भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल (एसोचैम) और रियल एस्टेट से सम्बंधित सेवाओं की विशेषज्ञ कंपनी, जेएलएल की एक रिपोर्ट से यह पता चलता है कि रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण (आरईआरए – रेरा) के कारण पारदर्शिता में सुधार से किस प्रकार इस सेक्टर पर सकारात्मक प्रभाव हुआ है, जो पहले अनियंत्रित, बंटा हुआ और कमजोर विनियामक ढाँचे वाला क्षेत्र हुआ करता था।
इस रिपोर्ट में यह दिलचस्प उल्लेख है कि किस प्रकार रेरा के बाद के समय में रियल एस्टेट की परियोजनाओं में घर खरीदने वालों और निवेशकों का विश्वास नए सिरे से बढ़ने के कारण संस्थागत फंडिंग की ज़रूरत कम हुई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि आवासीय क्षेत्र में संस्थागत फंडिंग की ज़रूरत वर्ष 2013-17 के 9.8 बिलियन यूएस डॉलर की तुलना में 44% कमी के साथ वर्ष 2018-22 में [रेरा के लागू होने के बाद] 5.5 बिलियन यूएस डॉलर के स्तर पर आ गयी। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि हालांकि, रेरा अधिनियम वर्ष 2016 में पारित किया गया था, तो भी इसके प्रभावकारी क्रियान्वयन के आरम्भ होने में लगभग दो वर्षों का समय लगा।
रेरा के लागू होने के बावजूद, या संभवतः इसके और अन्य सरकारी विनियमों के कारण, रियल एस्टेट सेक्टर में परियोजनाओं के प्रबंधन, वित्तीयन और कार्यान्वयन के तौर-तरीकों में भारी बदलाव आया है।
रेरा के बगैर भी, खरीदारों और निवेशकों द्वारा डेवलपर्स से उत्तरदायित्व की अपेक्षा की माँग उठनी केवल समय की बात रह गई थी। संपत्ति, इसके स्वामित्व और संबंधित लागतों के बारे में स्पष्ट और सटीक जानकारी प्रदान करने में उत्तरदायित्व का निर्वाह अब अनिवार्य हो गया है। इससे भरोसा पैदा हुआ है और जिन रियल्टर्स ने यह भरोसा हासिल किया है उन्हें सकारात्मक ब्रांडिंग, आवर्ती व्यवसाय और सिफारिशों के माध्यम से फायदा हुआ है। इससे समग्र रूप से पूरे सेक्टर को भी लाभ हुआ है, जैसा कि इंडियन ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय रियल एस्टेट बाज़ार का आकार वर्ष 2021 के 200 बिलियन यूएस डॉलर से बढ़कर वर्ष 2030 तक 1 ट्रिलियन यूएस डॉलर तक हो जाने की उम्मीद है।
रियल्टी परियोजनाओं का एक और अक्सर उपेक्षित लेकिन स्पष्ट पहलू है गुणवत्ता और बहुत कम लोग ही सेक्टर पर इसका प्रभाव समझते हैं। गुणवत्तापूर्ण निर्माण के फायदे भवन और भवन-निर्माता, दोनों के लिए स्पष्ट और टिकाऊ होते हैं। श्रम और पदार्थों के मामले में शानदार कारीगरी से लैस अच्छी तरह निर्मित इमारत लम्बे समय तक टिकते हैं, इनके रखरखाव की कम ज़रुरत पड़ती है और काफी समय तक इनका मूल्य बना रहता है। गुणवत्तापूर्ण संपत्तियों से भवन-निर्माताओं की साख बढ़ती है और ग्राहकों का भरोसा प्राप्त होता है। मार्केटिंग की कोई बाजीगरी अनुभवजन्य ज़ुबानी प्रचार का मुकाबला नहीं कर सकती क्योंकि लोगों के द्वारा कही बातों से ग्राहकों की संतुष्टि और व्यवसाय में बढ़ोतरी होती है।
गुणवत्ता और पारदर्शिता पर फोकस करने से स्वाभाविक रूप से निर्माण संहिता, सुरक्षा सम्बन्धी नियमों, पर्यावरण सम्बन्धी कानूनों और दूसरे कानूनी अपेक्षाओं जैसे सभी विनियमों और मानकों का अनुपालन मजबूत होता है।
जब कोई सेक्टर गुणवत्ता और पारदर्शिता को प्राथमिकता देता है, तब इससे नवाचार में प्रगति होती है और सेक्टर नई प्रौद्योगिकियों, डिजाइन, ट्रेंड्स, और सस्टेनेबिलिटी पद्धतियों को अपनाने में चुस्त-दुरुस्त बनता है। इन नवाचारों से अक्सर मानकों के साथ समझौता किये बगैर निर्माण की लागत में कमी आती है। इसका नतीजा विशिष्ट आकर्षक संपत्तियों के निर्माण के रूप के सामने आता है जिससे सेक्टर के लिए माँग, मूल्य और वृद्धि में तेजी आती है।
भविष्य में, रियल एस्टेट सेक्टर के और ज्यादा परिपक्व होते जाने के साथ ज्यादा सख्त विनियम भी अनिवार्य रूप से लागू होंगे। लेकिन हमें उस वक्त के इन्तजार में बैठे नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसके बदले पारदर्शिता, गुणवत्ता और नवाचार पर फोकस करना चाहिए, जो इस दौड़ में हमारे बने रहने की समय-सीमा तय करने के लिए महत्वपूर्ण होंगे।