गुरुवार/शुक्रवार की रात 1:10 के बाद होलिका-दहन का मुहूर्त
✍️ सलिल पांडेय
विभूति धारण मंत्र
- 17/18 मार्च की रात 1:10 पर भद्रा-काल समाप्त होने के बाद होलिका का पूजन किया जाए।
- पूजन में सबसे पहले शुद्ध घी का दीपक जलाकर उसे अक्षत पर स्थापित किया जाए।
- इसके बाद पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाए।
- पंचोपचार में सर्वप्रथम गंगा जल छिड़ककर स्नान, फिर चंदन, रोली और अक्षत पुनः पुष्प, धूप, नैवेद्य (प्रसाद) अर्पित किया जाए।
- पूजन करने वाला 5 बार (पंचदेवों के निमित्त) प्रदक्षिणा करे
अंत में “ऊँ ढूंढायै नम:”, “ऊँ होलिकायै नम:” बोलकर तथा कर्पूर से होलिका में अग्नि लागाकर पुनः 5 बार प्रदक्षिणा किया जाए।पूजा का मंत्र (जो संस्कृत पढ़ सकते हों ।) जो न पढ़ सकते हों, के हिंदी में निम्नलिखित प्रार्थना करें)
मंत्र : “असृक्पाभयसन्त्रस्तै: कृत्वा त्वं होलि बालिशै: । अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव ।।”
अर्थ : हे होलि, राक्षसों के भय से संत्रस्त मूर्खों ने तुम्हारा यह हाल किया है, इसलिए तुम्हारी पूजा करूंगा। हे भूते, तुम ऐश्वर्य देने वाली हो।
जो लोग दूसरे दिन प्रतिपदा में होलिका की परिक्रमा बर्रे (लकड़ी से बना) करते हैं, वे होलिका का पूजन करें। चूंकि विष्णु भगवान की 4 बार प्रदक्षिणा होती है, अतः पूजन उपरांत अग्नि की 4 बार प्रदक्षिणा कर होलिका की विभूति (राख) सिर पर लगाएं तथा थोड़ी विभूति घर के सदस्यों को लाकर लगाएं। साल भर यह विभूति नहीं लगाई जाती लिहाजा इसका संग्रह करने की जरूरत नहीं है।
विभूति खुद और घर के सदस्यों को लगते समय निम्नलिखित मंत्र पढ़ें।
मंत्र : वन्दितासि सुरेन्द्रेण ब्रह्मणा शंकरेण च । अतस्त्वं पाहि नो देवि भूते भूतिप्रदा भव।।
अर्थ : सुरेंद्र, ब्रह्मा और शंकर द्वारा स्तुति की गई है। अतः हे देवि, तुम मेरी रक्षा करो। हे भूते, ऐश्वर्य दो।