- जगरन पर कुछ जागते तो कुछ खर्राटे भरते नज़र आए
- जगरन पर ठाकुर जी को अर्पित मिष्ठान्न रहा दुर्लभ : सिर्फ लल्लूराम मिष्ठान्न भंडार पर रहा सुलभ
- कजली शेर पर सवार रही : संस्कार भारती तथा लायंस क्लब में दिखी संधि
- ‘आओ प्यारे कारे बादल, बरसो मेरे अंगना, तरस रहे मेरे नैना’ का ई-मेल भेजा गया
- कोरोना कजली नहीं सुना सके एक्स मिलिट्री मैन
रिपोर्ट : सलिल पांडेय
मिर्जापुर, (उ.प्र.) : लक्ष्मी स्वरुपा मां विन्ध्यवासिनी की जयंती, विद्या तथा ज्ञान की देवी सरस्वती स्वरुपा अष्टभुजा निवासिनी योगेश्वर श्रीकृष्ण की अग्रजा योगमाया का अवतरण और तपस्यारत मां पार्वती (अपर्णा) स्वरुपा महाकाली के देवाधिदेव शिव के प्रथम दर्शन की घड़ी थी भाद्रपद कृष्ण द्वितीया की तिथि 24 अगस्त। इसे विंध्यक्षेत्र में जागरण (लोकभाषा में जगरन) का नाम दिया गया है। यानी बहुविध जागते रहने का यह पर्व है। इस पर्व पर कुछ जागते नज़र आए तो कुछ खर्राटे भरते रहे। कभी रात-रात भर शहर जागता रहता था। देव-शक्तियों के अवतरण पर कदम-दर-दर कजलीगीतों की मिठासभरी पंक्तियों से स्तुति-आयोजन को भौतिक-आकांक्षाओं ने नज़र लगा दी तो इधर दो सालों से दैत्य-स्वरूप कोरोना की कुदृष्टि पड़ गई। लिहाजा शहर-गांव जगमगाता नहीं दिखा।
तीनों शक्तियों का अवतरण तथा ठाकुरजी के भोग का अनरसा हुआ दुर्लभ
मनुष्य के जीवन के अवलम्ब हैं ज्ञान, इच्छा और क्रिया। यही जीवन का त्रिकोण है। तीनों देवियों की क्या है शक्ति और कैसे इंसान के जीवन के त्रिकोण को यह आश्रय देता है, इसकी यद्यपि गहरी व्याख्या ऋषियों ने की है लेकिन जीवन सार्थक करने के लिए ज्ञान, उसके बाद जीवन सार्थक करने की इच्छा और फिर तीसरे स्तर पर उसके लिए कर्म करने की जरूरत। मां सरस्वती ज्ञान देती हैं, मां लक्ष्मी लक्ष्य के प्रति इच्छा जागृत करती हैं और माँ काली कर्म-शक्ति देती हैं। इन तीनों शक्तियों के समन्वय का नाम ठाकुरजी हैं। सो जगरन के पर्व पर रात्रि में उनकी पूजा की जाती है तथा भोग में चावल और दूध से बना शुद्ध देशी घी का व्यंजन जिसे अनरसा कहते हैं, अर्पित किया जाता है। लेकिन पर्वों के सिकुड़ते स्वरूप के चलते मार्केट में अनरसा दुर्लभ-सा रहा।
मुहल्ले-मुहल्ले, दुकान-दुकान चक्कर लगाते लोग
अनरसा के लिए लोग मिष्ठान्न की दुकानों का चक्कर लगाते दिखे। हर जगह दुकानदार ‘नो-अनरसा’ (अनरसा नहीं) का बोर्ड लगाए दिखे। नगर की सर्वाधिक तीन-चार पीढ़ियों से चली आ रही मिन्ना साव (अब लल्लूराम मिष्ठान्न भंडार) की दुकान पर ठाकुरजी के भोग का प्रिय मिष्ठान्न अनरसा बन रहा था और तत्क्षण बिक जा रहा था। मिन्ना साव के पौत्र कृष्ण कुमार ने कहा कि यह मिष्ठान्न सिर्फ जगरन पर बिकता है। इसे बनाने में मेहनत अधिक होती है, पर पर्व फीका न हो, इसलिए इसे बनाया जाता है।
मातृशक्ति की स्तुति कजली मां के वाहन शेर पर हुई सवार
धाम क्षेत्र से लुप्त होती कजली को त्रिवेणी संस्था जीवंत किए थी लेकिन इसके मुख्यकर्त्ता-धर्ता श्री किशन बुधिया की अस्वस्थता के चलते गीत और शेर के बीच संधि हुई ताकि कजली शेर पर सवार होकर सिंह-गर्जना ऐसी करे कि बादलों तक गीत पहुंचे। इसके लिए संस्कार-भारती और लायन्स क्लब ने आपसी अनुबंध किया। इस अनुबंध में *वर्ष ’16 में जिलाधिकारी रहे श्री विमल दुबे* का लोक-कलाओं को जीवंत रखने की लालसा समाई थी।
‘आओ प्यारे कारे बादल, बरसो मेरे अंगना, तरस रहे हैं नैना’ सुन दौड़ पड़े बादल और फिर टिप-टिप बरसा पानी, पानी ने मचा दी धूम
लंबे अंतराल के बाद आयोजन में शरीक इसलिए होना पड़ा क्योंकि संस्कार भारती के सचिव श्री कृष्णमोहन गोस्वामी का आदर भरा आमंत्रण था। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राज्यमंत्री श्री रमाशंकर पटेल तथा विशिष्ट अतिथि नगर विधायक श्री रत्नाकर मिश्र के प्रस्थान के बाद पहुंच सका। दो घण्टे की उपस्थिति में जितने भी गायक-गायिकाएं आईं, सभी बादलों को मनाने-रिझाने में लगी रहीं। कलाकारों की लिस्ट दो दर्जन से अधिक थी लेकिन मुंह में ब्लेड रखकर चौलर गायक जटाशंकर की ‘आवS विन्ध्याचल महारानी.., हमरी टोली में ना..’ स्तुति के बाद बादलों के नाम जैसे ई-मेल भेजा गया हो कि तत्काल बादल उमड़-घुमड़ के आ भी गए।
रागिनी चन्द्रा-‘बरखा बरसे मेरे घर के अंगनवा’, दयाशंकर जोशी-‘सुन सखि सावन में सांवरिया’, मृदुला श्रीवास्तव-‘सावन भादौ बरसे बदरिया’ तथा कल्पना गुप्ता-‘सखि झूमि-झूमि गावे री कजरिया नाS’ आदि सबने पारंपरिक लहजे के गीत सुनाए।
ताजा गीत नहीं सुना पाए एक्स मिलिट्री-मैन
कजली को कदम-ताल कराते पूर्व सैनिक सभाजीत मिश्र को ताजा हालात से उपजी कोरोना विभीषिका पर कजली जब मंच से नहीं सुनाने का अवसर नहीं मिला तब चलते-चलते उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर कजली सुनाई। जो इस प्रकार थी-
भाग भाग रे कोरोना हिंदुस्तान से।
आया क्यों वुहान से ना।टेक
तेरा विकट स्वरूप।
तूने किया जग कुरूप।।
सारी हस्ती मिटा दी तूफान से।
आया क्यों वुहान से ना।।१
सर्दी, खाँसी बुखार।
छींक आये बेशुमार।।
ऐसे कब तक रहोगे उतान से।
आया क्यों वुहान से ना।।२
साबुन खूब लगवाया।
हाथ जमकर धुलाया।।
मास्क मुँह पे लगवाया दुनौ कान से
आया क्यों वुहान से ना।३
हम लगाए को बैकसीन।
कोविशील्ड गीन-गीन।।
‘सभा’ अलविदा कर भारत महान से
आया क्यों वुहान से ना।।
पआयोजक मण्डल और सुधि श्रोता
इस कड़ी में संस्कार भारती की ओर से योगेंद्र जी, डॉ गणेश अवस्थी, राजकुमार पाहवा, कृष्मोहन गोस्वामी, विष्णु मालवीय, विन्ध्यवासिनी केसरवानी, शंकर राय, गोवर्धन त्रिपाठी आदि थे तो लायन्स क्लब की ओर से विश्वनाथ अग्रवाल, राजेश कुमार मिश्र, मीनू मिश्र, अनिल बर्णवाल, जया पांडेय, विशिष्ट लोगों में विभूति मिश्र, नन्दिनी मिश्र, सुजीत बर्मा आदि कलाकारों का उत्साहवर्धन करते रहे।