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Mirzapur : नए संसद भवन में विश्वप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ काशीप्रसाद जायसवाल की प्रतिमा लगे- रीता जायसवाल

  • डॉ जायसवाल भारत की निधि पहले भी थे, अब भी हैं- विवेक कुमार शुक्ल
  • विवेक कुमार शुक्ल एवं वृजदेव पांडेय को साहित्य-रत्न की उपाधि से नवाजा गया
  • 82वीं पुण्य-तिथि पर ग्रन्थलेखन पर बनी योजना

रिपोर्ट : सलिल पांडेय

मिर्जापुर, (उ.प्र.) : वैश्विक धरातल पर इतिहास लेखन को नवदृष्टि देने का श्रेय मां विन्ध्यवासिनी के आंचल तले जन्मे, पले और बढ़े इतिहासकार, पुरातत्त्ववेत्ता, साहित्यकार एवं वैरिस्टर स्व डॉ काशीप्रसाद जायसवाल के नाम जाता है। उन्होंने उलटे लिखे इतिहास के पन्ने को जब सीधा किया तब पाश्चात्य पक्षधरता के सारे इतिहास धराशायी हो गए।

यह निष्कर्ष डॉक्टर काशीप्रसाद जायसवाल की 82वीं पुण्यतिथि पर नगर के तिवराने टोला स्थित डॉ भवदेव पांडेय शोध संस्थान में आयोजित ‘डॉ काशीप्रसाद जायसवाल की इतिहास-दृष्टि और उसका पुनर्लेखन’ विषयक संगोष्ठी में उभर कर सामने आया। डॉ जायसवाल के विविध क्षेत्रों में योगदान को व्यापक बनाने के अभियान में संलग्न किशोर न्याय बोर्ड की सदस्य तथा डॉ काशीप्रसाद जायसवाल विद्वत परिषद की अध्यक्ष बतौर मुख्य अतिथि श्रीमती रीता जायसवाल वाराणसी से मिर्जापुर आईं तो संस्थान में उपस्थित शिक्षकों, अधिवक्ताओं, सामाजिक संस्थानों के पदाधिकारियों, पत्रकारों आदि के बीच गहन विचार विमर्श हुआ। इस बीच बतौर विशिष्ट अतिथि सहायक संभागीय अधिकारी श्री विवेक कुमार शुक्ला का उद्बोधन जब हुआ तब डॉ जायसवाल के योगदान के अप्रतिम रूप लोग मुग्ध हो गए। श्री शुक्ल ने कहा कि एक ओर भारत को हेय दृष्टि से देखने के कारण ब्रिटिश हुकूमत ने यहां तक लिख दिया कि भारत के लोग शासन करना नहीं जानते, वहीं डॉ जायसवाल ने जवाब दिया कि भारत का वेद कुशल शासन को परिभाषित करता है। लोकतंत्रात्मक शासन का उल्लेख भारत के वैदिक विद्वानों ने बहुत पहले ही कर दिया था। मुद्राशास्त्र पर विश्व को ज्ञान देने वाले डॉ जायसवाल थे। एआरटीओ श्री शुक्ल ने कहा डॉ जायसवाल के लेखन के बाद स्वतंत्रता आंदोलन का तेवर ही बदल गया। श्री शुक्ल ने कहा डॉ जायसवाल भारत की निधि अपने दौर में भी थे और अब भी है। गोष्ठी में जातीय संकीर्णता से संबंधित आए विचारों को श्री शुक्ल ने खारिज कर दिया।

मुख्य अतिथि रीता जायसवाल ने यहाँ के लोगों में उत्साह का संचार करते हुए कहा कि नई दिल्ली में बन रहे नए संसद भवन में मिर्जापुर के सपूत डॉ जायसवाल की प्रतिमा लगे, इसके लिए जोरदार मांग उठनी चाहिए तथा केंद्रीय राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल के साथ यहां के लोगों को नई दिल्ली भी चलना चाहिए।

गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार वृजदेव पांडेय ने कहा कि डॉ जायसवाल के व्यक्तित्व निर्माण में मिर्जापुर के तीन सात्विक और नैष्ठिक बाबाओं का योगदान रहा है। इन बाबाओं हंडिया बाबा, बिलरिया बाबा और चिरैया बाबा ने उनको धर्म के विराट रूप का ज्ञान कराया लिहाजा मन्दिर में न जाकर भी वे आस्तिक थे। उन्हें रवीन्द्र नाथ टैगोर ने तिब्बत जाने के लिए उतसाहित किया। वहां पुरातात्विक विषयों को संग्रहित किया। वे शिलालेखों पर लिखी लिपियों के पूर्ण जानकर थे। वेद, आरण्यक, ब्राह्मण, उपनिषद ग्रन्थों का गहरा अध्ययन भी उन्हें था ।

मुख्य अतिथि किशोर न्याय बोर्ड की सदस्य रीता जायसवाल ने ARTO श्री शुक्ल एवं वृजदेव पांडेय को साहित्य-रत्न की उपाधि दी। गोष्ठी में डॉ जायसवाल के राष्ट्रवाद के लोकोपकारी रूप का उल्लेख छाया रहा। वक्ताओं ने कहा कि वे खून के रिश्ते से बनी एकता से ज्यादा अहमियत भाषायी एकता को देते थे। वक्ताओं में नवगीतकार गणेश गंभीर ने डॉ जायसवाल पर ब्रिटिश दबाव तथा उसके बाद उनके वैरिस्टर भूमिका को केंद्र में रखकर अपने विचार व्यक्त किए।

अन्य वक्ताओं में पूर्व प्रोग्राम आफिसर डॉ आशा राय, बिनानी डिग्री कॉलेज के प्रवक्ता डॉ ध्रुवजी पांडेय, उपरौध इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ धर्मजीत सिंह, विन्ध्यवासिनी महिला महाविद्यालय के प्रबंधक डॉ नीरज त्रिपाठी भी रहे। प्रारम्भ में स्वागत सलिल पांडेय एवं धन्यवाद शैलेन्द्र अग्रहरि ने दिया जबकि संचालन अरविन्द अवस्थी ने किया। इस अवसर पर शरद मेहरोत्रा, संतोष सिंह, विभूति मिश्र, डॉ सुरीली पांडेय, आरपी ओझा, योगेंद्र मिश्र, जयराम शर्मा, विन्ध्यवासिनी केसरवानी, राजेन्द्र तिवारी रवींद्र पांडेय, डॉ विनीत पांडेय, भारी संख्या में पत्रकार, शोध-छात्र आदि उपस्थित थे।

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