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Poem : गंगे अविरल बहती रहना

✍️ कविता उपाध्याय ‘शिप्रा’, प्रयागराज

मां गंगे तुम अविरल बहती रहना।
जन-जन के पाप हरो मोक्षदायिनी बनी रहना।।
मां गंगे तुम अविरल बहती रहना।

बालक तुम्हारे अज्ञानी हैं तेरा आंचल मेला करते हैं भूल चुके तेरा उपकार,
नहीं इनको कोई संताप उन्हें क्षमा करती रहना।
मां गंगे अविरल बहती रहना।

भगीरथी के प्रयास को यूं ही न घुलने देना,
शंकर शंभू की जटाओं का तुम ना अनादर होने देना।
हम को नमन करते करने देना।
मां गंगे तुम अविरल बहती रहना।

धरती प्यासी तरुवर भी प्यासे,
शहर सूखते गांव झुलसते,
पशु पक्षी प्राणों को तरसे वन उपवन की क्या बात करें।
इनकी प्यास बुझाती रहना।
मां गंगे तुम अविरल बहती रहना।

बादल प्यासे अंबर भी ताके,
जीव जंतु सब तरस रहे हैं तेरी ममता की चाहत सबको।
अपने आंचल में शरण देना इनको ना यूं ही भुला देना।
मां गंगे तुम अविरल बहती रहना।

(कविता उपाध्याय जानी मानी कवयित्री महादेवी वर्मा की शिष्या है)

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