गंगा दशहरा, 20 जून, ’21 के अवसर पर विशेष
✍️ सलिल पाण्डेय
मातृ-शक्तियों की आराधना में “जले थले निवासिनीं और वने-रणे निवासिनीं” का जब प्रसंग आता है तो अभिधा अर्थों के अलावा लक्षणा अर्थों पर चिंतन-मनन किया जाए तो मानव शरीर जल-थल से निर्मित है और मन भी किसी जंगल से कम नहीं जिसमें निरन्तर युद्ध होता रहता है । शरीर में मांस-अस्थि थल ही है और इसमें 81% जल तत्व है जिससे थल हिस्सा सिंचित होता रहता है । ऋषियों ने इसी जल-थल की शुद्धता के लिए जप-तप, योग-अनुष्ठान, समुचित आहार-विहार, व्रत-उपवास का सन्देश दिया ।
पर्व की आध्यात्मिक कथा
गंगा दशहरा की आध्यात्मिक कथा सगर के शापित वंशजों की मुक्ति के लिए उसी कुल के राजा भगीरथ कठोर तपस्या करते हैं । उनकी तपस्या पर ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, दिन मंगलवार को हस्त नक्षत्र में ब्रह्मा के कमण्डल से माँ गंगा प्रकट होती हैं और पृथ्वी पर चलने की उनकी प्रार्थना स्वीकार करती हैं । लेकिन इसके पीछे ऋषियों के स्वास्थ्य-विज्ञान पर नजर डालें तो 10 इन्द्रियों वाले इस शरीर में जल-तत्व के सन्तुलित प्रवाह का भी उद्देश्य प्रकट होता है। सामान्यतया शरीर में जल-तत्व की कमी से डिहाइड्रेशन हो जाता है जिससे मृत्यु भी हो जाती है । ज्येष्ठ माह की भीषण गर्मी में जलीय सन्तुलन भी आवश्यक है । भावनात्मक दृष्टि से भी देखा जाए व्यक्ति स्वार्थ-लोभ, क्रोध की ऊष्मा से जब कठोर प्रवृत्ति का हो जाता है तो उसके शरीर पर बुरा असर पड़ता है । शरीर के आंतरिक तंत्र कठोर होते हैं । ऐसी स्थिति में सर्वाधिक असर रक्त-प्रवाह में बाधा के रूप में पड़ता है और हाई एवं लो ब्लडप्रेशर, ब्लड शुगर आदि बीमारियां जन्म लेती हैं । जबकि मन-मस्तिष्क में कोमलता- तरलता का भाव शरीर-गंगा को सुचारू करता है ।
देवी-पुराण की कथा
देवी-पुराण की कथा के अनुसार भगवान शंकर के विवाह में अनेक विसंगतियां आयीं । विवाह की जानकारी देने शंकर जी विष्णुजी के पास गए तो भगवान विष्णु ने वातावरण को सरस बनाने के लिए कुछ गीत-संगीत सुनाने के लिए कहा । इस पर शंकरजी ने गीत गाना शुरू किया तब विष्णुजी आनन्द में इतने द्रवीभूत हुए कि वैकुण्ठ में जलप्लावन होने लगा । जिसे ब्रह्मा ने अपने कमण्डल में एकत्र कर लिया । कथा से स्पष्ट है कि तनाव के दौर में संगीत से मन प्रसन्न होता है । शरीर के रसायन (केमिकल) एवं हार्मोन्स अनुकूल होते हैं । शरीर में तरलता आती है और यह शरीर सगर-पुत्रों की तरह अभिशप्त होने से मुक्त होता है । इसीलिए लोकमान्यता है कि गंगा-तट पर गीत-संगीत, मन्त्र-भजन करना चाहिए जिसकी ध्वनि से जल का प्रदूषण दूर होता है जबकि गंगा किनारे नकरात्मक आचरण से प्रदूषण बढ़ता है । इसी प्रदूषण को दूर करने के लिए भगवान कृष्ण यमुना में कूद कर कालिया-नाग जैसे प्रदूषण को समाप्त करते हैं ।
वामन पुराण की कथा
वामन-पुराण की कथा के अनुसार राजा बलि से 3 पग मांगने भिक्षुक बनकर विष्णुजी जाते हैं । एक पग से पृथ्वी नाप लिया, दूसरा आकाश की तरफ बढ़ते हुए ब्रह्मलोक गया । धूल-धूसरित हुए विष्णुजी के पग को जल से प्रक्षालित कर ब्रह्मा ने कमण्डल में रख लिया । वहीं गंगा हैं। इस दृष्टि से कृषि प्रधान देश में भगवान विष्णु का धरती से अनाज के रूप में जीवन पैदा करने की व्यवस्था झलकती है । एक पग से किसान के रूप में लघु बनकर धरती को उपजाऊ बनाया और दूसरी ओर आकाश से जलवर्षा की व्यवस्था की । इस गर्मी के बाद खरीफ की फसल की तैयारी का भी भाव है । तीसरा पग बलि के सिर पर रखने का आशय ही है कि मस्तिष्क दयार्द्र रहे न कि अहंकारग्रस्त । स्पष्ट है कि गंगा-दशहरा शरीर में प्रवाहित गंगा के प्रति सजगता पैदा करना है । क्योंकि जब किसी के मन से संवेदना का पानी सूख जाता है वह परिवार और समाज के लिएकठोर हो जाता है । कठोरता से तरलता की यात्रा का पर्व है गंगा-दशहरा ।
इस दिन क्या करें?
- गंगा या किसी पवित्र नदी या जलाशय में स्नान करें
- बहते हुए जल में पश्चिम मुख तथा जलाशय आदि में पूर्व दिशा की ओर मुख कर स्नान करना चाहिए।
- स्नान के लिए जाते समय मानसिक रूप से ईश्वरीय स्मरण, श्लोक-भजन भी जपा जा सकता है।
- जलीय स्थानों पर जल-जीवों या पक्षियों के लिए कुछ खाने की वस्तु साथ ले जाएं।
- स्नान के बाद वस्त्र पानी में नहीं निचोड़ना चाहिए।
- गंगा का पूजन यथा संभव सामग्री से करना चाहिए।
- घर लौटने तक सांसारिक चर्चा से बचना चाहिए।
- संभव हो तो किसी पात्र व्यक्ति को अनाज, उसके साथ कुछ मीठी वस्तु तथा कुछ पैसा दे देना चाहिए।
- दान की वस्तु का प्रचार नहीं करना चाहिए।
- मन में तरलता के लिए मृदुल वचन बोलना चाहिए।