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कविता : मेरे दोस्त ..

  • मनीषा कुमारी

कभी अपनी भी गलतियां को मान लेना होता हैं,
कभी अपनी भी आदतों को सुधार लेना होता हैं,
कभी मैं झुक जाऊं कभी तू झुक जाना मेरे दोस्त,
एक दूसरे को प्यार से हमेशा मना लेना मेरे दोस्त।

रूठ भी जाऊँ तो तुम कभी मत रूठना मेरे दोस्त,
तुझे वक्त न दे पाये तो फिर भी क्षमा कर देना दोस्त,
तुम ही हो जो मेरी सुख-दुख को समझ सकते हो,
एक तुम ही हो जो हर दुख-दर्द पे मलहम लगाते हो।

ये दोस्ती हर मोड़ पे न जाने क्यों इतनी इम्तिहान लेती हैं,
तुझे भी पता है उसके बिना मेरा जीना मुमकिन नहीं है,
फिर भी तू क्यों हमे उससे दूर रहने को मजबुर करती हैं,
अब बस भी कर न क्यों बार-बार मुझे कमजोर करती है।

(लेखिका पी.वी.डी.टी. कॉलेज ऑफ एजुकेशन फॉर वूमेन (एस.एन.डी.टी. वूमेंस यूनिवर्सिटी, मुंबई ) में बी०एड० द्वितीय वर्ष की छात्रा है।)

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