✍️ चांदनी गुप्ता, संगम विहार, दिल्ली
तू ना साथ किसी का मांगना,
ना राह किसी की निहारना,
लक्ष्य की तलाश में,
संघर्ष को ललकारना।
तू चल पग पग पर ,
पथ नहीं निहारना।
है राह में ठोकर कई ,
इससे न हार मानना।
कर खुद को मजबूत यू ,
बवंडर को भी लांधना
तू सुुन कटाक्ष को,
खुद को नहीं नकारना।
शब्दों के कड़वे जाल को,
अमृत तुझे है मानना।
निराशाओ की राह में,
आशा का दामन थामना।
तू चल अकेली राह पर,
हुजूम भारी राह नहीं है साधना।
अंधियारी भरी राह में,
जुगनू सा खुद को मानना।
टूटी उम्मीद से बाहर निकल,
नई रहा है तलाशना।
तू ना साथ किसी का मांगना,
ना राह किसी की निहारना,
लक्ष्य की तलाश में,
संघर्ष को ललकारना।