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Poem : “मन की लहरें”

✍️ चांदनी गुप्ता, संगम विहार, दिल्ली

समुद्र से गहरे मन में
न जाने है कितने विचार।
कभी शीतल जल सी शांत, खुद में एकांत
ना जाने मन की ये कैसी पुकार।

कभी धाराओं से बहती
कभी तूफ़ानों सी लेती उड़ान।
समुद्र से गहरे मन में
ना जाने है कितने विचार।

आशाओं का समुंदर भरा
मन के अंदर, हर एक लहर
उम्मीद के गोते खाती
फिर नीचे गिर जाती।

मन की आशाओं में
एक किरण फिर भी रह जाती,
हारे मन में उम्मीद की
एक किरण फिर से जागती।

जगमग दुनिया से
एकान्त, समुद्र सी शांत,
समुद्र से गहरे मन में
ना जाने है कितने विचार।

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