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Mirzapur : वेबसीरीज मिर्जापुर-1 और 2 की बिना न्यायालय की अनुमति के जांच करने का औचित्य क्या है

– सरकारी पैसे की बर्बादी और पुलिस की छवि धूमिल हुई तो भरपाई हो

– फिल्मी स्टाइल में जांच हास्यास्पद !

रिपोर्ट : सलिल पांडेय

मीरजापुर, (उ0प्र0) : किसी फिल्म या वेबसीरीज के खिलाफ जितना हो-हल्ला मचाया जाता है, प्रकारान्तर से उसकी पब्लिसिटी उतनी ही बढ़ जाती है। इसमें कुछ लोग बड़ी बारीकी से अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। कुछ लोगों की भावुकता को उभार कर एवं उनको शिखंडी बनाकर अपना गेम खेलते है। इसमें फ़िल्म या सीरीज से मिले-जुले लोग होते हैं। जिन्हें विरोध कराने का पैसा मिलता है।

वेब-सीरीज मिर्जापुर अकूत कमाई कर चुका

वेब सीरीज मिर्जापुर-1 का पहला एपिसोड अगस्त 2018 एवं मिर्जापुर-2 अक्टूबर 2019 में जारी हुआ। जैसे जैसे विरोध और FIR होता रहा, उसको देखने वालों की तादाद बढ़ती गई। 190/- लोग मोबाइल पर 45 मिनट की फ़िल्म डाउनलोड कर धड़ाधड़ देखने लगे और निर्माताओं की कमाई बढ़ने लगी। उत्साह यहां तक निर्माताओं का बढ़ा कि सीरीज-2 भी आ गया।

सीरीज-3 भी कहीं न आ जाए ?

विवादित फिल्मों के खिलाफ लगातार अलग अलग कोनों से FIR प्रायः होते हैं। सामान्य बुद्धि का भी आदमी जानता है कि एक ही नेचर (स्वरूप) के सारे FIR पर अलग अलग थानों से मुकदमा नहीं चलता। लेकिन मिर्जापुर पुलिस ढोल-मंजीरा बजाकर सीरीज के निर्माताओं को पकड़ने गई और खाली हाथ लौट आई। प्रभावशाली कार्रवाई नहीं हुई तो सीरीज-3 भी लांच हो सकता है !

TA, DA की रिकवरी हो और पुलिस की छवि धूमिल होने पर कार्रवाई हो

मुंबई गई पुलिस की कार्रवाई की समीक्षा उच्चस्तरीय हो। टीए, डीए के नाम पर लाखों के व्यय के बाद समूह में गई पुलिस की कार्रवाई कितनी सार्थक है, इसकी निष्पक्ष आकलन हो। हर विवादित फ़िल्म पर FIR हो तो बिना सक्षम न्यायालय के समूह में टीम गठित कर हवाई-यात्रा का क्या औचित्य है, यह स्पष्ट होना चाहिए तब तो हर थाने और जिले में FIR की बाढ़ आ जाएगी।

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