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कविता : ” राही चला चल “

– प्रतिभा दुबे

अपने ही पथ पर चला चल
ए राही रुक मत ना देख कहीं,
संभल के जरा सा चला चल
लोग मिलेंगे तुझको कई जो
कमजोर करेंगे जो लक्ष्य तेरा
उन सब से बाहर निकल कर
बस चला चल ॥

ईश्वर ने दिया है तुझे जीवन
उसमें सच्ची राह पकड़ कर
अपने जीवन का लक्ष्य समझ,
इन ढलती परिस्थितियों में
तप कर जब निखर जाएगा
तब जीवन में और मजा आएगा
बस चला चल ॥

जो तेरा है वो लौट आएगा
बाकी सब यहीं झूट जाएगा
ले कर बस अपना ही असर
करना है तुझको जो भी वो
तू अपना काम तो कर ,
बस चला चल ॥

गीता से लेकर ज्ञान प्रभु का
सत्कर्म के सहारे आगे बढ़,
परिभाषा है यही ज्ञान की
क्षमा दान की बात तू कर
अहंकारी मानव जीवन में
प्रभु प्रेम के रंग तू भर कर
बस चला चल ॥

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