अपराधताज़ा खबरदेश-विदेश

Uttar Pradesh : पूर्वांचल का खूंखार डॉन अतीक अहमद, जो अहमदाबाद की जेल में बंद है

रिपोर्ट : वीरेन्द्र बहादुर सिंह

उत्तर प्रदेश : माफिया डॉन अतीक अहमद की 300 करोड की 27 से अधिक संपत्तियों पर योगी सरकार ने बुलडोजर चलवा दिया है। जबकि अतीक अहमद इस समय गुजरात के अहमदाबाद की साबरमती जेल में बंद है। पर उत्तर प्रदेश में अभी भी उसका खौफ उसी तरह बना हुआ है। मजे की बात यह है कि यह माफिया डॉन पांच-पांच बार उत्तर प्रदेश विधानसभा का इलाहाबाद पश्चिमी सीट से चुनाव जीत कर विधायक तो एक बार इलाहाबाद की ही फूलपुर संसदीय सीट से सांसद रह चुका है। अतीक अहमद पर इस समय हत्या, अपहरण, वसूली, मारपीट सहित मुल 188 मुकदमे दर्ज हैें।

जून, 2019 से इलाहाबाद का माफिया डॉन अतीक अहमद गुजरात के अहमदाबाद की साबरमती जेल में हाई सिक्यूरिटी जोन में बंद है। इस मौके का फायदा उठा कर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने उसका कोल्ड स्टोरेज, उसकी हवेलियां, उसके आफिस और गैरकानूनी ढ़ग से कराए गए अन्य निर्माण कार्य पर बुलडोजर चलवा दिया है।

अतीक अहमद का आतंक

माफिया डॉन अतीक अहमद का इतना आतंक है कि उत्तर प्रदेश की चार-चार जेलें उसे संभाल नहीं सकीं। इन जेलों के जेलरों ने स्वयं सरकार से कहा कि हम इस डॉन को संभाल नहीं सकते। इसका कारण यह है कि अतीक जब उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया की जेल में बंद था, तब उसने अपने गुंडों के द्वारा लखनऊ के एक बिल्डर मोहित जायसवाल को जेल में बुला कर बहुत मारापीटा था और उससे प्रोपर्टी के कागजों पर दस्तखत करा लिए थे।

अपना आतंक फैलाने के लिए इस मारपीट का वीडियो अतीक अहमद ने सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया था, जिससे लोगों में उसकी दहशत बनी रहे। इस वीडियो को देखने के बाद राज्य हड़कम्प मचा तो अतीक अहमद को देवरिया की जेल से बरेली की जेल में भेजा गया। पर बरेली जेल के जेलर ने स्पष्ट कह दिया कि इस आदमी को वह नहीं संभाल सकते।

लोकसभा के चुनाव सामने थे। अतीक को कड़ी सुरक्षा में रखना जरूरी था। इसलिए इसके बाद अतीक को इलाहाबाद की नैनी जेल मे शिफ्ट किया गया। उधर देवरिया जेल कांड का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। कोर्ट ने सीबीआई को मुकदमा दर्ज कर जांच के आदेश दिए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अतीक अहमद, उसके बेटे के अलावा 4 सहयोगियों सहित 10-12 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ। जब अतीक के सारे कारनामों की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने 23 अप्रैल, 2019 को उत्तर प्रदेश सरकार को अतीक अहमद को राज्य के बाहर किसी अन्य राज्य की किसी जेल में शिफ्ट करने का आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भेजा गया गुजरात

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उत्तर प्रदेश सरकार ने अतीक अहमद को गुजरात के अहमदाबाद की साबरमती जेल में शिफ्ट करने योजना बनाई। इसके बाद 3 जून, 2019 को उत्तर प्रदेश सरकार ने 3 लाख रुपए का ड्राफ्ट गुजरात सरकार के नाम जमा करा कर अतीक को फ्लाइट से अहमदाबाद भेजा। ये 3 लाख रुपए का ड्राफ्ट अतीक अहमद को जेल में रखने का मात्र 3 महीने का खर्च था। उसके बाद हर 3 महीने पर अतीक अहमद को अहमदाबाद की जेल में रखने का खर्च उत्तर प्रदेश का कारागार विभाग गुजरात सरकार को भेजता है।

अतीक अहमद ने अपनी धाक राजनीतिक पहुंच के बल पर पिछले 40 सालों में ऐसी खड़ी की है कि उसके सामने कोई आंख मिला कर बात करने का साहस नहीं कर सकता। उत्तर प्रदेश पुलिस के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का कहना है कि 5 फुट 6 इंच की ऊंचाई और जबरदस्त शरीर वाले अतीक अहमद की आंखें ही इतनी खूनी लगती हैं कि उसके सामने देख कर बात करने का साहस ही नहीं होता।

आज अतीक अहमद पर 188 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैैं। जिनमें हत्या, अपहरण, मारपीट, वसूली आदि के मामले शामिल हैं। अतीक अहमद ने उसके सामने जो भी सीना तान कर आया, उसकी हत्या करा दी है। अब तक उस पर 6 से अधिक हत्या के मामले चल रहे हैं। इस डॉन की गैंग में 120 से भी अधिक शूटर हैं। पुलिस ने अतीक अहमद की गैंग का नाम आईएस (इंटर स्टेट) 227 रखा है। इसकी गैंग का मुख्य कारोबार इलाहाबाद और आसपास के इलाके में फैला है।

अतीक के लिए कानून मजाक है

अतीक अहमद ने साबित कर दिया है कि कानून एक मजाक है। पुलिस गुलाम है और सरकार बनाने वाले नेता वोट की लालच में कुछ भी कर सकते हैं। किसी भी डॉन को नेता बना सकते हैं। अतीक अहमद की कहानी में मोड़ 1979 से आया। 10 अगस्त, 1962 को पैदा हुए अतीक अहमद के पिता इलाहाबाद में तांगा चलाते थे। इलाहाबाद के मोहल्ला चकिया के रहने वाले फारुक तांगे वाले के रूप में मशहूर पिता के संघर्ष को अतीक ने करीब से देखा है। हाई स्कूल में फेल हो जाने के बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी थी। 17 साल की उम्र में उस पर पहला कत्ल का इल्जाम लगा था। उसके बाद वह अपराध की दुनिया में कूद पड़ा।

यह तब की बात है, जब इलाहाबाद में नए कालेज बन रहे थे, उद्योग लग रहे थे। जिसकी वजह से खूब ठेके बंट रहे थे। नए लड़कों में अमीर बनने का चस्का लगना शुरू हो गया था। वे अमीर बनने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। कुछ भी यानी हत्या, अपहरण और रंगदारी की वसूली भी। अमीर बनने का चस्का अतीक को भी लग चुका था। 17 साल की उम्र में ही उस पर एक कत्ल का इल्जाम ही लग चुका था। जिसकी वजह से लोगों में उसकी दहशत बैठ चुकी थी। उसका भी धंधा चल निकला। वह ठेके लेने लगा, खूब रंगदारी वसूली जाने लगी।

डॉन चांदबाबा से मुकाबला

उस समय इलाहाबाद का डॉन चांदबाबा था। पुराने शहर में उसका खौफ इस तरह हुआ करता था कि उसके सामने किसी की बोलने की हिम्मत नहीं होती थी। शहर में उसकी ऐसी धाक थी कि चौक और रानीमंडी के उसके इलाके में पुलिस भी जाने से डरती थी। कहा जाता है कि उसके इलाके में अगर कोई खाकी वर्दी वाला चला जाता था तो बिना पिटे नहीं आता था। उस समय तक अतीक 20-22 साल को चुका था।

अब तक अतीक शहर का ठीक-ठाक गुंडा माना जाने लगा था। चांदबाबा का खौफ खत्म करने के लिए नेता और पुलिस ने अतीक को खड़ा करना शुरू किया। पुलिस और नेता एक खौफ को खत्म करने के लिए दूसरे खौफ को सह दे रहे थे। क्योंकि उन्हें चांदबाबा के खौफ को खत्म करना था। पुलिस का मानना था कि लोहे को लोहे से ही काटा जा सकता है। इसी का नतीजा था कि अतीक बड़े गुंडे के रूप में उभरने लगा। इसका नतीजा यह निकला कि वह चांदबाबा से ज्यादा पुलिस के लिए खतरा बनता गया।

अतीक ने बना लिया अपना गैंग

अब तक अतीक अहमद ने भी इलाहाबाद में अपना गैंग बना लिया था। अपने इसी गैंग की मदद से अतीक अहमद इलाहाबाद के लिए ही नहीं, अगल-बगल के कस्बों के लिए भी आतंक का पर्याय बन चुका था। केवल गैंग बना लेना ही बहसदुरी नहीं होती, गैंग का खर्च, उनके मुकदमों का खर्च, हथियार खरीदने के लिए पैसे आदि की भी व्यवस्था करनी पड़ती है। इसके लिए अतीक गैंग की मदद से इलाहाबाद के व्यापारियों का अपहरण कर फिरौती तो वसूनता ही था, शहर में रंगदारी भी वसूली जाने लगी थी।

इस तरह अतीक अहमद पुलिस के लिए चांदबाबा से भी ज्यादा खतरनाक हो चुका था। पुलिस के लिए अब अतीक नासूर बन चुका था। पुलिस उसे और उसके गैंग के लड़कों को गली-गली खोज रही थी। आखिर एक दिन पुलिस बिना लिखा-पढ़ी के अतीक को उठा ले गई। पुलिस उसे थाने नहीं ले गई थी। उसे कहां ले जाया गया, कुछ पता नहीं था। यह सन 1986 की बात है।

उस समय राज्य में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी तो केंद्र में राजीव गांधी की। अतीक को पुलिस कहां ले गई, इसकी किसी को कोई खबर नहीं थी। सभी को लगा अब कि अब उसका खेल खत्म हो चुका है।

काफी खोजबीन की गई। जब कहीं उसका कुछ पता नहीं चला तो इलाहाबाद के ही रहने वाले एक कांग्रेसी सांसद को सूचना दी गई। कहा जाता है कि वह सांसद राजीव गांधी के बहुत करीबी थे। उन्होंने राजीव गांधी से बात की। दिल्ली से लखनऊ फोन आया और लखनऊ से इलाहाबाद। उसके बाद पुलिस ने अतीक को छोड़ दिया।

अब तक अतीक अहमद पुलिस के लिए काफी खतरा बन चुका था। इसलिए पुलिस उसे ऐसे ही नहीं छोड़ना चाहती थी। अतीक को जब इस बात की भनक लगी तो वह भेष बदल कर अपने एक साथी के साथ बुलेट से कचहरी पहुंचा। उसने एक पुराने मामले की जमानत तुड़वाकर आत्मसमर्पण कर दिया और जेल चला गया। उसके जेल जाते ही पुलिस उस पर टूट पड़ी। उस पर एनएसए लगा दिया।

इससे लोगों को लगा कि अतीक बरबाद हो गया है। लोगों में उसके प्रति सहानुभूति पैदा हो गई। एक साल बाद वह जेल से बाहर आ गया। जेल से बाहर आते ही उसने मिली सहानुभूति का फायदा उठाया। उस काग्रेसी सांसद का साथ मिल ही रहा था, जिसकी वजह से वह जिंदा बचा था। इस बात से अतीक को पता चल गया था कि उसे अब राजनीति ही बचा सकती है। फिर उसने किया भी यही।

राजनीति में घुसपैठ

1989 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का चुनाव होना था। अतीक अहमद ने इलाहाबाद पश्चिमी सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पर्चा भर दिया। सामने उम्मीदवार के रूप में था चांदबाबा। चांदबाबा और अतीक में अब तक कई बार गैंगवार हो चुकी थी। अपराध जगत में अतीक की तरक्की चांदबाबा को खल रही थी। चांदबाबा के आतंक से छुटकारा पाने के लिए आम लोगोें ने ही नहीं, पुलिस और राजनीतिक पार्टियों ने भी अतीक अहमद का समर्थन किया। परिणामस्वरूप चांदबाबा चुनाव हार गया। इस तरह अतीक अहमद पहली बार विधायक बन गया। अब वह नेता बन गया था।

विधायक चुने जाने के कुछ ही महीनों बाद अतीक अहमद ने चांदबाबा की भरे बाजार हत्या करा दी। इसके बाद कुछ ही समय में चांदबाबा की पूरी गैंग का सफाया हो गया। कुछ मारे गए तो कुछ भाग गए। जो बचे वे अतीक के साथ मिल गए। अब इलाहाबाद पर एकलौते डॉन अतीक अहमद का राज हो गया। अतीक अहमद ने अपना एक पूरा गैंग बना लिया। उसे राजनीतिक सर्पोट भी मिल रहा था।

अपहरण, रंगदारी की वसूली और सरकारी ठेकों पर कब्जा

विधायक बनने के बाद तो व्यापारियों का अपहरण, रंगदारी की वसूली, सरकारी ठेके लेना अतीक अहमद का धंधा बन गया था। अतीक अहमद का इलाहाबाद में ऐसा आतंक हो चुका था कि इलाहाबाद पश्चिमी सीट से लोग चुनाव में विधायकी का टिकट लेने से खुद ही मना कर देते थे।

राजनीति में आने के बाद ज्यादातर अपराधी धीरे-धीरे अपराध करना छोड़ देते हैं, पर अतीक के मामले में इसका उल्टा था। अतीक भले ही नेता बन गया था, लेकिन उसने अपनी माफिया वाली छवि नहीं बदली। वह अपनी इस छवि से कभी बाहर नहीं आ पाया। बल्कि कहा जा सकता है कि सफेदपोश होने के बाद उसके द्वारा किए जाने वाले अपराध और बढ़ गए थे। राजनीति के आड़ में वह अपना आपराधिक साम्राज्य और मतबूत करता रहा। यही वजह है कि उस पर दर्ज होने वाले ज्यादातर आपराधिक मुकदमें विधायक-सांसद रहते हुए ही दर्ज हुए हैं।

कहा जाता है कि वह अपने विरोधियों को किसी भी कीमत पर छोड़ता नहीं था। 1999 में चांदबाबा की हत्या, 2002 में नस्सन की हत्या, 2004 मेें मुरली मनोहर जोशी के करीबी बताए जाने वाले भाजपा नेता अशरफ की हत्या, 2005 में राजू पाल की हत्या। इससे तो यही लगता है कि जो भी अतीक के खिलाफ सिर उठाता था, वह मारा जाता। इलाहाबाद के कसारी-मसारी, बेली गांव, चकिया, मरियाडीह और धूमनगंज इलाके मेें उसकी अक्सर गैंगवार होती रहती थी।

विधायक बनने के बाद अतीक ने अपराध करना और बढ़ा दिया था। 1991 और 1993 के विधानसभा के चुनाव में भी अतीक अहमद निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधायक चुना गया। 1996 के विधानसभा के चुनाव में मुलायम सिंह ने अपनी समाजवादी पार्टी से अतीक अहमद को टिकट दिया। इस तरह चौथी बार अतीक अहमद समाजवादी पार्टी से फिर विधायक चुना गया।

पर किसी वजह से अतीक अहमद के समाजवादी पार्टी से संबंध बिगड़ गए तो 1999 में अतीक अहमद अपना दल में शामिल हो गया। सोनेलाल पटेल द्वारा बनाई गई पार्टी अपना दल में अतीक अहमद 1999 से 2003 तक इलाहाबाद का पार्टी का जिला अध्यक्ष रहा। 1999 में अपना दल से चुनाव लड़ा, परंतु हार गया। उसके बाद 2003 में फिर एक बार अपना दल के टिकट से अतीक अहमद पांचवीं बार विधायक बना।

विदेशी गाड़ियों और हथियारों का शौक

जिस सांसद ने अतीक पर हाथ रखा था, वह इलाहाबाद के बड़े कारोबारी थे। कहते हैं कि उस समय शहर में सिर्फ उन्हीं के पास निशान और मर्सिडीज जैसी विदेशी गाड़ियां थीं। लेकिन जल्दी ही अतीक को भी इसका चस्का लग गया। विधायक बनने के कुछ ही दिनों बाद उसने भी विदेशी गाड़ी खरीद ली। जल्दी ही उसका नाम सांसद से भी बड़ा हो गया।

सांसद को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने विदेशी गाड़ियां रखनी ही छोड़ दी। गाड़ियों के बाद नंबर था हथियारों का। इस तरह के आदमी को तो वैसे भी हथियारों की जरूरत होती है। उसने विदेशी हथियार खरीदने शुरू किए। विदेशी गाड़ियों का तो पूरा काफिला ही उसने खड़ा कर दिया था। अतीक चकिया तक ही सीमित नहीं रहना चाहता था। इसलिए वह विरोधियों को खत्म कर देता था। चाहे चांदबाबा रहा हो या राजू पाल।

अतीक अहमद का एक रहस्य और भी दिलचस्प है। वह चुनाव के दौरान चंदा किसी को फोन कर के या डरा-धमका कर नहीं मांगता था। वह शहर के पॉश इलाके मेे बैनर लगवा देता था कि आपका प्रतिनिधि आपसे से सहयोग की अपेक्षा रखता है। इसके बाद लोग खुद ही अतीक के आफिस में चंदा पहुंचा देते हैं। अगर अतीक को अपने गुर्गों को कोई संदेश देना होता है तो वह बकायदे अखबारों में विज्ञापन निकलवा देता है कि क्या करना है अेौर क्या नहीं करना है।

मुलायम सिंह ने अतीक को बनाया सांसद

उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। 2004 में लोकसभा चुनाव की घोषण हुई। मुलायम सिंह को बाहुबली नेताओं का जरूरत थी। मुलायम सिंह के कहने पर अतीक अहमद फिर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गया तो इलाहाबाद की फूलपुर संसदीय सीट से सपा ने अतीक अहमद को उम्मीदवार बनाया। अतीक अहमद चुनाव जीत गया और सांसद बन गया।

अतीक अहमद के सांसद बन जाने पर इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा की सीट खाली हो गई। इस पर अतीक अहमद ने अपने भाई अशरफ को चुनाव लड़ाया। अशरफ के सामने एक समय अतीक अहमद का ही दाहिना हाथ रहे राजू पाल को बहुजन समाज पार्टी ने उम्मीदवार बनाया। उस समय राजू पाल पर 25 मुकदमे दर्ज थे। इस चुनाव में अतीक का भाई अशरफ 4 हजार वोटों से चुनाव हार गया और राजू पाल चुनाव जीत गया।

जब अतीक का भाई चुनाव हार गया

राजू पाल की यह जीत अतीक अहमद से हजम नहीं हुई और परिणाम आने के महीने भर बाद यानी नवंबर, 2004 में राजू पाल के आफिस के पास बमबाजी और फायरिंग हुई। दिसंबर में उसकी गाड़ी पर फरयरिेंग हुई। पर इन दोनों हमलों मेे वह बच गया। 25 जनवरी, 2005 को राजू पाल की कार पर एक बार फिर हमला हुआ। इसमेें राजू पाल को कई गोलियां लगीं। हमलावर फरार हो गए।

गोलीबारी में घायल राजू पाल के साथी उसे टैम्पों से अस्पताल ले जा रहे थे तो हमलावरों को लगा कि राजू पाल अभी जिंदा है तो उस पर दोबारा हमला किया गया। इस बार उस पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई गईं। जब तक राजू जीवन ज्योति अस्पताल पहुंचता उसकी मौत हो चुकी थी। डाक्टरोें के अनुसार उसे 19 गोलियां लगी थीं।

इस हत्या की करुणता यह थी कि हत्या के नौ दिन पहले ही राजू पाल की शादी हुई थी। राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने अतीक, उसके भाई अशरफ, फरहान और आबिद समेत कई लोगों पर नामजद हत्या का मुकदमा दर्ज कराया। एक विधायक की हत्या के बाद भी अतीक सत्ताधारी सपा में बने रहे। इस हत्या के बाद बसपा के समर्थकों ने इलाहाबाद शहर में जम कर हंगामा किया और खूब तोड़फोड़ की।

2005 में इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर फिर उपचुनाव हुआ, जिसमें राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को बसपा की ओर से टिकट दिया गया। इस बार भी पूजा के सामने अतीक का भाई अशरफ ही था। उस समय तक पूजा के हाथ की मेहंदी भी नहीं उतरी थी और वह विधवा हो गई थी। कहा जाता है कि चुनाव प्रचार के दौरान पूजा मंच से अपने हाथ दिखा कर रोने लगती थी। लेकिन पूजा को जनता का समर्थन नहीं मिला और वह चुनाव हार गई।

अतीक का टूटा किला

इस बार अतीक का भाई अशरफ चुनाव जीत गया। ऐसा शायद अतीक के खौफ के कारण हुआ था। इस तरह एक बार फिर अतीक की धाक जम गई। खुद सांसद था ही, भाई भी विधायक हो गया था। उसी समय उस पर सबसे ज्यादा आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए।

अतीक अहमद पर 1989 में चांदबाबा की हत्या, 2004 में भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी के करीबी कार्यकर्त्ता अशरफ की हत्या, 2005 में विधायक राजू पाल की हत्या के आरोप सहित 83 से अधिक आपराधिक मुकदमे दर्ज हो चुके थे। परंतु हैरानी की बात यह थी कि उत्तर प्रदेश पुलिस अतीक अहमद को गिरफ्रतार करने के बारे में सोच भी नहीं सकी थी।

2007 के विधानसभा के चुनाव में एक बार फिर इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर बसपा ने राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को चुनाव में उतारा। इस बार भी सामने अतीक का भाई अशरफ ही उम्मीदवार था। इलाहाबाद पश्चिमी का अतीक अहमद का किला पहली बार टूटा। उत्तर प्रदेश में मायावती की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी तो मायावती ने अतीक अहमद को पहला टारगेट बनाया। मायावती के जेहन में गेस्ट हाउस कांड के जख्म हरे थे।

एक के बाद एक कर सारे मामले खुलने लगे और मायावती सरकार ने एक ही दिन में अतीक अहमद पर सौ से अधिक मामले दर्ज करा कर ऑपरेशन अतीक शुरू कर दिया। अतीक भूमिगत हो गया तो उसे मोस्टवांटेड घोषित कर दिया गया और उस पर 20 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया गया।

देश के इतिहास में एक सांसद मोस्टवांटेड घोषित कि गया हो और उस पर 20 हजार रुपए का इनाम घोषित किया गया हो, यह शायद देश का पहला मामला था। इससे पार्टी की बदनामी होने लगी तो मुलायम सिंह ने उसे पार्टी से बाहर कर दिया। गिरफ्तारी के डर से अतीक फरार था। उसके घर, आफिस सहित पांच संपत्ति का कोर्ट के आदेश पर कुर्क कर लिया गया था।

जिस इलाहाबाद में अतीक की तूती बोलती थी, पूजा पाल ने चुनाव जीतते ही बसपा सरकार में उसकी नाक में ऐसा दम किया कि जिस सीट से वह पांच बार विधायक बना था, उस सीट को ही नहीं, इलाहाबाद जिले को ही छोड़ कर उसे भागना पड़ा।

अतीक अहमद समझ गया था कि उत्तर पदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना खतरे से खाली नहीं होगा, इसलिए उसने दिल्ली पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। अतीक अहमद को उत्तर प्रदेश पुलिस दिल्ली से ले इलाहाबाद ले आई। अतीक के बुरे दिन शुरू हो चुके थे। पुलिा और विकास प्राधिकरण के अधिकसरियों ने अतीक की एक खास परियोजना अलीना सिटी को अवैध घोषित कर ध्वस्त कर दिया।

ऑपरेशन अतीक के ही तहत 5 जुलाई, 2007 को राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल ने अतीक के खिलाफ धूमनगंज थाने में अपहरण और जबरन बयान दिलाने का मुकदमा दर्ज कराया। इसके बाद चार अन्य गवाहों की ओर से भी उसके खिलाफ मामले दर्ज कराए गए। दो महीने में ही अतीक के खिलाफ इलाहाबाद, कौशांबी और चित्रकूट में कई मुकदमें दर्ज हो गए थे। पर सपा की सरकार बनते ही उसके दिन बहुरने लगे।

अतीक ने जेल से भरा पर्चा

2012 का साल था। अतीक अहमद जेल में था और विधाानसभा के चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। उसने जेल में रहते हुए ही अपना दल की ओर से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की। चुनाव का पर्चा दाखिल करने के बाद अतीक अहमद ने जमानत पर छूटने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। जमानत मिल गई और अतीक जेल से बाहर आया।

बहुजन समाज पार्टी ने एक बार फिर पूजा पाल को अतीक के सामने खड़ा किया। संयोग से इस बार भी अतीक चुनाव हार गया। वह चुनाव भले हार गया, पर उसका अपराध करना बंद नहीं हुआ। मुलायम सिंह ने एक बार फिर उसे अपनी पार्टी में सहारा दिया। इस बार उसे श्रावस्ती जिले से टिकट दिया। इस चुनाव में भी अतीक अहमद हार गया।

2016 मेें फिर एक बार मुलायम सिंह ने कानपुर कैंट से उसे उम्मीदवार बनाया। इस चुनाव का फार्म भरने के लिए अतीक 5 सौ गाड़ियों का काफिला लेकर कानपुर पहूुंचा था। जबकि खुद 8 करोड़ की विदेशी कार हमर में सवार था। पूरे कानपुर में अतीक के इस काफिले ने चक्का जाम कर दिया था। मीडिया में उसके खिलाफ खूब लिखा गया। उस समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव बन गए थे। उन्होंने अतीक अहमद को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

एक बार फिर हुआ गिरफ्तार

फरवरी, 2017 में पुलिस ने उसे इलाहाबाद कालेज में तोड़फोड़ करने के आरोप में गिरफ्तार किया। उसके बाद से वह जेल में ही है। अतीक पर अब तक लगभग 250 मुकदमें दर्ज हो चुके हैं। मायावती के शासनकाल में एक ही दिन में उस पर सौ मुकदमें दर्ज हुए थे। बाद में जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। अधिकतर मामलों में सबूत के अभाव और गवाहों के मुकरने से अतीक बरी हो चुका है। अतीक भले ही आतंक पर्याय है, वह नेकदिल भी है। उसके पास जो भी मदद के लिए जाता है, वह खाली हाथ नहीं लौटता।

पर 35 मुकदमें अभी भी चल रहे हैे। इनमें कुछ अदालत में पेंडिंग हैं तो कुछ की अभी जांच ही पूरी नहीं हुई है। मजे की बात यह है कि अभी तक उसे किसी भी मामले में सजा नहीं हुई है। यह सब देख कर यही लगता है कि अतीक की जिंदगी कभी इस जेल में तो कभी उस जेल में कटती रहेगी। लेकिन विकास दुबे कांड के बाद योगी सरकार अतीक के आर्थिक साग्राज्य को पूरी तरह से ध्वस्त करने में लगी है।

2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ की सरकार जब से बनी है, तब से अतीक अहमद पर शिकंजा कसता गया। गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश के तमाम डॉन पर काररवाई करने की छूट दे देने से अब सरकार और पुलिस अतीक अहमद के गुंडों और उसकी संपत्ति के पीछे पड़ गई है। रोज उसकी कोई न कोई संपत्ति तोड़ी जा रही है। अहमदाबाद की जेल में बंद अतीक अब कुछ करने की स्थिति में भी नहीं है।

ढ़ह गया अतीक अहमद किला

प्रकृति का डंडा कब किस पर चल जाए, कोई नहीं जाता। ऐसा ही कुछ गुजरात के अहमदाबाद की साबरमती जेल में बंद प्रयागराज (इलाहाबाद) के कुख्यात खूंखार माफिया डॉन अतीक अहमद के साथ हुआ है। कभी प्रयागराज में अतीक के नाम की तूती बोतली थी। उसका नाम ही सुन कर लोग कांपने लगते थे। पर उत्तर प्रदेश में भाजपा के योगी आदित्यनाथ की सरकार आते ही प्रदेश के माफिया डॉनों की तो जैसे सामत आ गई है। इन्हीं माफिया डॉनों में प्रदेश के सब से कुख्यात माफिया डॉन अतीक अहमद की अरबों की संपत्ति कुर्क कर के ढ़हा दी गई है या फिर सील कर दी गई है।

जिलाधिकारी के आदेश पर पहले प्रशासन ने प्रयागराज स्थित अतीक अहमद की अरबों की कीमत की कुल 37 संपत्तियां कुर्क की गईं। उसके बाद प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) ने इन संपत्तियों को गिराना शुरू किया। सब से पहले 5 सितंबर को सिविल लाइंस स्थित अतीक के साढू इमरान का मद्रास होटल गिराया गया। इसके बाद 7 सितंबर को नवाब यूसुफ रोड पर अतीक का गोदाम, 9 सितंबर को झूसी स्थित कटका गांव में बने कोल्ड स्टोर को गिराया गया। इसे गिराने में दो दिन लगे। करीब 10 हजार वर्गमीटर में बना इस कोल्ड स्टोर का निमा्रण अवैध रूप से कराया गया था। प्राधिकरण से इसका नक्शा नहीं पास कराया गया था। यह कोल्ड स्टोर अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन के नाम था। इसकी कीमत करीब 30 करोण रुपए थी।

10 सितंबर को अतीक के करीबी असद की करेली के बाजूपुर गांव में की गई प्लाटिंग के जमींदोज किया गया। इसके बाद 11 सितंबर को मेहंदौरी में अतीक के चचेरे भाई हमजा की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाया गया। 12 सिातंबर को सिविल लाइंस में हाईकोर्ट हनुमान मंदिर के पास स्थित अतीक के दो मंजिला व्यावसायिक भवन को ध्वस्त किया गया। 13 सितंबर को लूकरगंज मे अतीक द्वारा कराए गए अवैध निर्माण को हटाया गया।

20 सितंबर को करबला स्थित कार्यालय के एक हिस्से से अतिक्रमण हटाया गया। थाना खुल्दाबाद क्षेत्र के करबला स्थित अतीक का यह कार्यालय पुलिस द्वारा कुछ दिनों पहले ही गैंगस्टर एक्ट के तहत कुर्क किया गया था। पीडीए ने र्काालय का जो हिस्सा तोड़ा था, वह बिना नक्शा पास कराए ही बनवाया गया था।

22 सितंबर को अब तक की सब से बड़ी काररवाई करते हुए चकिया स्थित अतीक के आलीशान आशियाने को गिराया गया। करीब 3 हजार वर्गमीटर में बने इस आवास का गिराने के लिए चार जेसीबी लगाई गई थीं। करीब साढ़े पांच घंटे में अतीक का किले जैसा मकान गिरा दिया गया। प्रशासन वहां इतना पुलिस बल लेकर आई थी कि किसी की विरोध करने की हिम्मत नहीं हुई।

लगभग 4 बीघे जमीन पर कब्जा कर के अतीक ने अपना यह किले जैसा आशियाना बनवाया था। मकान गिराया जाने लगा तो अतीक की पत्नी शाइस्ता बेगम अपने बेटों, वकील और मजदूरों के साथ घर का सामान बाहर करने लगी थीं। अनुमान लगाया जा रहा है कि अब तक अतीक की करीब 3 सौ करोड़ की संपत्तियों पर प्रयागराज प्रशासन का बुलडोजर चल चुका है।

इसके अलावा प्रयागराज से सटे कौशांबी जिले के पिपरी थाना क्षेत्र में रहीमाबाद में अतीक अहमद ने करोड़ो रुपए के खेत खरीदे थे। पास ही एयरपोर्ट और कई बड़े शैक्षिक संस्थान होने की वजह से अतीक की यह जमीन काफी महंगी है। इस जमीन को खेती वाली दर्शाया गया था। जिलाधिकारी के आदेश पर इस जमीन को भी कुर्क करने की तैयारी चल रही है।

इस के अलावा अतीक का एक मकान प्रयागराज के नीमसराय के आवासीय योजना में भी है। यह मकान अतीक अहमद के ही नाम है। इस मकान को भी कुर्क किया जा चुका है। यह सारी काररवाई इसलिए की जा रही है, क्योंकि अतीक ने यह सारी संपत्ति आपराधिक और समाज विरोधी कृत्यों के जरिए अर्जित की है।

इतना ही नहीं, अतीक अहमद के ड्रीम प्रोजेक्ट अलीना सिटी पर भी दस सालों बाद एक बार फिर प्रशासन की बड़ी काररवाई हुई है। अलीना सिटी में बने दर्जनों अर्धनिर्मित मकानोें को गिरा दिया गया है। प्रयागराज शहर के करेली स्थित अतीक अहमद और उनके करीबियों के हजारों बीघे जमीन पर फैले अलीना सिटी प्रोजेक्ट पर प्रशासन ने कड़ी काररवाई की है।

दस साल पहले शुरू हुई अलीना सिटी के पूरे निर्माण को मायावती के सरकार में ध्वस्त कर दिया गया था। सपा सरकार में एक बार फिर अतीक ने अपनी जमीनों पर कब्जा कर के निर्माण कार्य शुरू किया। योगी सरकार बनने के बाद एक बार फिर अलीना सिटी पर जांच शूुरू हुई। जांच में अलीना सिटी विवादित पाई गई तो एक बार फिर इस जमीन पर किया गया निर्माण गिरा दिया गया।

यह सारी केवल अतीक अहमद पर ही नहीं हो रही है। उसके गुर्गों यानी उसके साथ काम करने वालों की सपत्तियों को भी कुर्क कर के उन्हें गिराया जा रहा है। प्रशासन की कारवाई से अतीक ही नहीं उसके गैंग के तमाम अपराधी परेशान हैं।

मजे की बात यह है कि पीडीए ने अतीक और उनके गुर्गों के खिलाफ यह जो काररवाई की है, उसमें जो खर्च आया है, उसे भी अतीक एंड कंपनी से वसूलने की तेयारी कर रही है। अब तक की सारी काररवाइयों का हिसाब तैयार किया जा रह है। एक मजदूर की एक दिन की मजदूरी लगभग 5 सौ रुपए है। जेसीबी का प्रति घंटे का किराया एक हजार रुपए है। हिसाब बन जाने के बाद अतीक अहमद और उसके गुर्गों को रकम जमा कराने की नोटिस भेजी जाएगी।

अतीक का बेटा और भाई

अतीक अहमद का बड़ा बेटा जो कानून की पढ़ाई कर रहा है, उस मोहम्मद उमर पर सीबीआई ने दो लाख रुपए का इनाम घोषित किया है। इस तरह अतीक का बेटा उमर रेंज का सबसे बड़ा इनामी अपराधी हो गया है। साबीआई द्वारा दो लाख का इनाम घोषित करने से अतीक सहित उसका पूरा परिवार परेशान हैै। घर में एक साथ दोदो इनामी होने की वजह से आए दिन एसटीएफ और क्राइम ब्रांच का छापा पड़ता रहता है। जिससे परिवार को काफी परेशानी होती है। पूर्व सांसद अतीक अहमद के भाई अशरफ और बेटे उमर तक पहुंचने के लिए एसटीएफ और क्राइम ब्रांच जगह-जगह छापेमारी करती रहती है।

अतीक के भाई अशरफ पर पुलिस ने एक लाख रुपए का इनाम घोषित कर रखा है। अतीक अहमद के बेटे उमर पर आरोप है कि अतीक जब देवरिया जेल में बंद था, तब लखनऊ के प्रापर्टी डीलर मोहित अग्रवाल की पिटाई करने का चौंकाने वाला मामला सामने आया था। अतीक ने अपनी धाक जमाने के लिए इस पिटाई का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया था। इसी मामल मेें सीबीआई ने अतीक अहमद सहित उसके बड़े बेटे मोहम्मद उमर को भी वांछित किया था।

उमर अतीक अहमद के सांसद का चुनाव लड़ते समय चुनाव प्रचार के दौरान पहली बार सब के सामने आया था। उस पर मोहित अग्रवाल से करोड़ो रुपए की जमीन और कंपनियों को जबरदस्ती अपने नाम कराने का आरोप है। काफी दिनों तक वह मेरठ के नौचंदी इलाके के भवानीनगर में रहने वाली अपनी बुआ के यहां छुपा रहा। एसटीएफ को जब इस आत की जानकारी हुई तो एसटीएफ ने वहां छापा मारा। पर उमर को इस बात की भनक लग चुकी थी, जिससे वह एसटीएफ के आने तक वह फरार हो चुका था। तब पूछताछ के लिए एसटीएफ ने उसके छोटे भाई अली को हिरासत में ले लिया था। लेकिन घंटो पूछताछ के बाद पूुलिस ने उसे छोड़ दिया था।

एक लाख के इनामी अतीक के भाई पूर्व विधाायक अशरफ की किसान नेता की हत्या, झलवा मेें एक सीमेंट व्यवसाई के साथ बेरहमी से मारपीट, अल्कमा हत्याकांड, विधायक राजू पाल हत्याकांड, रंगदारी के लिए धमकी समेत अन्य कई मुकदमों मेें पुलिस को तलाश है। अशरफ के घर चार बार कुर्की हो चुकी है। अशरफ की गिरफ्तारी पर अगस्त, 2017 को पहली बार 5 हजार, फिर 15 हजार, उसके बाद 50 हजार और अब एक लाख रुपए का इनाम घोषित किया गया है।

(लेखक “मनोहर कहानियां” व “सत्यकथा” के संपादकीय विभाग में कार्य कर चुके है। वर्तमान में इनकी कहानियां व रिपोर्ट आदि विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है।)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Translate »