– पंडित अतुल शास्त्री
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम। स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
”इस श्लोक का अर्थ है कि “जो भी व्यक्ति मकर संक्रांति के दिन शुद्ध घी और कंबल का दान करता है, वह अपनी मृत्यु पश्चात जीवन-मरण के इस बंधन से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करता है”।सूर्य के उत्तरायण की तिथि से संबंधित महाभारत में एक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार भीष्म पितामाह अर्जुन के बाण से बुरी तरह घायल हो जाने के बावजूद भी नहीं मरते क्योंकि उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त होता है। मृत्यु की शय्या पर लेटे रहने और बेहद कष्ट झेलने के बावजूद वे मरने के लिए सूर्य के उत्तरायण में होने का इंतज़ार करते हैं। महाभारत, वेद और गीता के अनुसार जिस व्यक्ति की मृत्यु उत्तरायण में होती है वह जन्म और मृत्यु के जीवन चक्र से मुक्त हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुनर्जन्म के इस जीवन चक्र से मुक्त होने के लिए ही भीष्म पितामाह ने मरने के लिए उत्तरायण का दिन चुना।
” माघ मकर गत रवि जब होई। तीरथ पतिहिं आव सब कोइ।।
देव दनुज किंनर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनी।। “
मकर संक्रांति मनाने को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। महाभारत, गीता, रामचरितमानस समेत शास्त्रों और वेदों में भी हमें इसका उल्लेख मिलता है। इन ग्रथों के अनुसार यह त्योहार सूर्य देव को समर्पित है। सूर्य इस दिन दक्षिणायन को छोड़ उत्तारायण में प्रवेश करता है। ज्योतिष के अनुसार के अनुसार सूर्य 6 महीने दक्षिणायन में जबकि 6 महीने उत्तरायण में रहता है।शास्त्रों में हर महीने को दो भागो में बांटा है जो चन्द्रमा की गति पर निर्भर है- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। इस तरह वर्ष को भी दो भागो में बांट रखा है जो सूर्य की गति पर निर्भर है जो उत्तरायण और दक्षिणायन कहलाता है। मकर सक्रांति के दिन से सूर्य उत्तर की ओर आने लगता है।
ज्योतिषशास्त्र में मकर संक्रांति को सूर्य का धनु से मकर राशि में आगमन के रूप में महत्व दिया गया है। धनु राशि में सूर्य का आगमन मलमास के तौर पर जाना जाता है। मकर राशि शनि की राशि है जो सूर्य का पुत्र है। मकर राशि में सूर्य के अगामन के समय को मकर सक्रांति कहा गया है। इस राशि में सूर्य के आने से मलमास समाप्त हो जाता है।वेदों में दक्षिणायन को देवों की रात्रि जबकि उत्तरायण को देवों का दिन माना गया है। क्योंकि उत्तरायण में प्रवेश करते समय सूर्य अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ रहा होता है इसीलिए इस संक्रमण को बेहद शुभ माना गया है। इसका उल्लेख हमें विभिन्न ग्रंथों में अलग-अलग तरह से मिलता है।
मकर संक्रांति शुभ मुहूर्त
मकर राशि में 5 ग्रहों का बन रहा योग : मकर संक्रांति 14 जनवरी को है। इस दिन श्रवण नक्षत्र में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से ध्वज योग बन रहा है। यह खास संयोग कई राशियों के लिए शुभ परिणाम लेकर आएगा। इस साल 14 जनवरी को मकर राशि में सुबह 8 बजकर 15 मिनट पर प्रवेश करेंगे। मकर संक्रांति के जिन श्रवण नक्षत्र होने से इस दिन का महत्व और बढ़ रहा है। सूर्य के मकर राशि में आने से मकर संक्रांति के दिन 5 ग्रहों का शुभ संयोग बनेगा। जिसमें सूर्य, बुध, चंद्रमा और शनि शामिल हैं, जोकि एक शुभ योग का निर्माण करते हैं, इसीलिए इस दिन किया गया दान और स्नान जीवन में बहुत ही पुण्य फल प्रदान करता है और सुख समृद्धि लाता है।
इस बार नहीं है मकर संक्रांति के तुरंत बाद विवाह की तिथि : मकर संक्रांति पर देवलोक में भी दिन का आरंभ होता है। इसलिए इसे देवायन भी कहा जाता है। माना जाता है कि इस दिन देवलोक के दरवाजे खुल जाते हैं। संक्रांति के दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करके सूर्य को अर्घ्य देते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस दिन से खरमास (पौष माह) के समाप्त होने के कारण रुके हुए शुभ कार्य जैसे कि विवाह, मुंडन, गृह निर्माण आदि मंगल कार्य पुन: शुरू हो जाते हैं। हालांकि, इस साल जनवरी में विवाह की एक भी तिथि नहीं है।
मकर संक्रांति का महत्व
धार्मिक, सांस्कृतिक और लौकिक तौर पर मकर संक्रांति का महत्व है। यदि धार्मिक तौर पर देखा जाए तो गीता और महभारत में उत्तरायण के तौर पर इसका उल्लेख मिलता है। गीता में उत्तरायण को प्रकाश का प्रतीक माना गया है। यदि किसी की मृत्यु प्रकाश यानि उत्तरायण में होती है तो उसे बेहद शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि प्रकाश में मृत्यु होने से हमें अपने गमन की जानकारी होती है। जिस व्यक्ति की उत्तरायण में मृत्यु होती है वो जन्म-मरण के जीवन चक्र से मुक्त हो जाता है।
इस दिन को पिता पुत्र के स्नेह के तौर पर भी देखा जाता है। माना जाता है कि इस दिन भानु अपने पुत्र शनि से मिलने उसके घर गए थे। अब क्योंकि शनि मकर राशि का स्वामी है इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति के पर्व के रूप में मनाया जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार इस दिन मां गंगा भागीरथ के पीछे कपिल आश्रम से होते हुए सागर में जा मिली थीं। भागीरथ ने इसी दिन गंगा में अपने पूर्वजों का तर्पण किया था।
मकर संक्रांति को नए ऋतु के आगमन का प्रतीक भी माना जाता है। सूर्य के उत्तरायण में होने पर दिन बड़े होने लगते हैं यानि सर्दियां जाने लगती हैं और ग्रीष्म ऋतु का आगमन होने लगता है। हिंदू धर्मग्रंथों में सूर्य की उत्तरायण की किरणों को बेहद पवित्र माना गया है।
मकर संक्रांति से जुड़ी परंपराएं
मकर संक्रांति से जुड़ी कई परंपराएं हैं। इस दिन मीठे पकवान बनाने, दान करने और गंगा स्नान करने की परंपरा है। इसके अलावा इस दिन देश के अलग-अलग हिस्सों में मेले लगते हैं और पतंगबाजी महोत्सव आयोजित किए जाते हैं।
अपनी राशि के अनुसार करें मकर संक्रांति के दिन करें दान
मेष : इस राशि का स्वामी मंगल है, मेष राशि वाले आप मकर संक्रांति के दिन प्रात: जल में पीले पुष्प, हल्दी, तिल मिलाकर सूर्य भगवान को अर्घ्य दें।आप इस दिन तिल, गुड़ और मच्छरदानी का दान दें। कार्यो में श्रेष्ठ सफलता मिलेगी, संतान संस्कारी होगी। गाय को गुड़ की दो ढेली अवश्य ही खिलाएं।
वृषभ : इस राशि का स्वामी शुक्र है। वृषभ राशि वाले मकर संक्रांति के दिन जल में सफेद चंदन, दुग्ध, श्वेत पुष्प, तिल डालकर सूर्य को अर्घ्य दें। मकर संक्रांति के दिन चाँदी, ऊनी वस्त्र एवं सफ़ेद तिल का दान करना शुभ रहेगा।इससे कार्यो में अस्थिरता दूर होंगी, महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू हो सकती है। गाय को पके मीठे चावल अवश्य ही खिलाएं।
मिथुन : इस राशि का स्वामी बुध है। मिथुन राशि वाले मकर संक्रांति के दिन जल में तिल, दूर्वा तथा पुष्प मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। कुमकुम एवं चंदन आपस में मिलाकर अपने आपको चंदन लगाएं। इस दिन मूंग की दाल की खिचड़ी, तिल एवं मच्छरदानी का दान करें। गाय को हरा चारा खिलाएं , इससे धन लाभ के योग बनेगें।
कर्क : इस राशि का स्वामी चंद्रमा है, कर्क राशि के जातक जल में दुग्ध, चावल, तिल मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। तिल, साबूदाना, सफ़ेद ऊन और चाँदी का दान करें।इससे घर में प्रेम, सुख- शान्ति आएगी। इस दिन गाय को चावल में दूध और चीनी मिलाकर अवश्य ही खिलाएं।
सिंह : इस राशि का स्वामी सूर्य है। सिंह राशि वाले मकर संक्रांति के दिन जल में कुमकुम तथा रक्त पुष्प, तिल डालकर सूर्य को अर्घ्य दें। तिल, कंबल, अन्न, गुड़, सोने का सामान व मच्छरदानी अपनी क्षमतानुसार दान करें। सोचे हुए महत्वपूर्ण कार्य पूर्ण होंगे।गाय को भीगी चने की दाल एवं गुड़ भी अवश्य ही खिलाएं।
कन्या : इस राशि का स्वामी बुध है। कन्या राशि के जातक मकर संक्रांति के दिन प्रात: उगते हुए सूर्य को जल में तिल, दूर्वा, पुष्प डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। तिल, कंबल, तेल, उड़द दाल, मूंग की दाल की खिचड़ी का दान करें। इससे आप लोगो को शुभ समाचारो की प्राप्ति होगी, आकस्मिक धन लाभ होगा। गाय को हरा चारा एवं भीगी हरी मूंग भी अवश्य ही खिलाएं।
तुला : इस राशि का स्वामी शुक्र है। तुला राशि के जातक जल में दूध, सफेद चंदन, चावल, तिल मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। चावल, चीनी, सफेद तिल, तेल, रुई, वस्त्र, राई, मच्छरदानी दान करें।इससे व्यापार में श्रेष्ठ लाभ मिलेगा, आय के नए स्रोत्र खुलेंगे।गाय को पके हुए चावल भी अवश्य ही खिलाएं।
वृश्चिक : इस राशि का स्वामी मंगल है। इस राशि के जातक प्रात: जल में रोली, लाल पुष्प तथा तिल मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। गुड़, लाल वस्त्र, खिचड़ी, तिल एवं लाल कंबल का दान करें।इससे कार्यो में श्रेष्ठ लाभ और यश की प्राप्ति होगी। गाय को गुड़ भी अवश्य ही खिलाएं।
धनु : इस राशि का स्वामी गुरु है। धनु राशि वाले आप मकर संक्रांति के दिन जल में हल्दी / केसर, पीले पुष्प तथा गुड़ मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। तिल, गुड़, चने की दाल एवं यदि सामर्थ्य हो तो सोने की कोई भी वस्तु का दान करें।इससे जीवन में मनचाही सफलता और ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी। गाय को भीगी चने की दाल, कम से कम दो केले अवश्य ही खिलाएं ।
मकर राशि : इस राशि का स्वामी शनि है। मकर राशि के जातक आप मकर संक्रांति के दिन प्रात: जल में नीले पुष्प, काले तिल, चीनी मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। कड़वे तेल, तिल, काळा या नीला कंबल, उड़द की खिचड़ी और पुस्तक का दान करें।इससे शत्रु परास्त होंगे, मान-सम्मान की प्राप्ति होगी। काली गाय को उड़द की खिचड़ी या भीगी उड़द की दाल अवश्य खिलाएं ।
कुंभ : इस राशि के स्वामी भी भगवान शनि है। कुम्भ राशि के जातक मकर संक्रांति के दिन प्रात: जल में नीले पुष्प, काले उड़द, काले तिल, चीनी, दो बून्द सरसों का तेल मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें । काले तिल, उड़द की खिचड़ी, तेल,साबुन, नीले वस्त्र वा कंघी का दान करें। इससे मुक़दमे राजद्वार में सफलता मिलेगी, बल- साहस की प्राप्ति होगी, आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।काली गाय को उड़द की खिचड़ी, भीगी उड़द की दाल खिलाएं ।
मीन : इस राशि का स्वामी गुरु है। मीन राशि के जातक मकर संक्रांति के दिन प्रात: उगते हुए सूर्य देव को जल में हल्दी, केसर, पीले पुष्प, तिल मिलाकर अर्घ्य दें। तिल, चने की दाल, गुड़, साबूदाना, कंबल, मच्छरदानी वा यदि संभव को तो स्वर्ण का दान करें।इससे सुख-समृद्धि, यश की प्राप्ति होगी, राजद्वार से सम्मान मिलेगा।गाय को भीगी चने की दाल, घी से चुपड़ी दो रोटी पर गुड़ रखकर अवश्य ही खिलाएं।