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महफ़िल में जैसे आफ़ताब उतरा है, इस तरह हरसू नूर ओ सुख़न बिखरा है – अनुपम मिठास

उत्तर प्रदेश : कवयित्री सुश्री अनुपम ‘मिठास’ कोरा द्वारा आयोजित ऑनलाइन काव्य गोष्ठी साहित्य जगत में एक मील पत्थर साबित हुई है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित रचनाकारों ने भाग लिया । काव्य गोष्ठी की पराकाष्ठा अवर्णनीय और अतुलनीय थी , जिसे गुणी कविगणों ने अपनी सुंदर रचनाओं से सुसज्जित किया।

कवि जीतू जलेसरी जी का संचालन अद्भुत और सुनियोजित था जिसके कारण गोष्ठी नियत समय पर सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई ।

इस काव्य गोष्ठी का संयोजन में टोरोंटो , कनाडा में पिछले 21 सालों से बसी रचनाकार सुश्री अनुपम मिठास कौरा जोकि एक विज्ञान की अध्यापिका के रूप में कार्यरत हैं , ने अपनी काव्य संस्था ‘ आग़ाज़ ए महफ़िल ‘ के माध्यम से करवाया ।इस काव्य गोष्ठी का अत्यंत सुचारु रूप से संचालन तंज़ानिया में बसे सुप्रसिद्ध कवि श्री जितेंद्र भारद्वाज ( जीतू जलेसरी ) ने किया।

इस काव्य गोष्ठी से भारत , अमेरिका , ब्रिटेन , मरिशस , दोहा ( कतर) से भाग लिया। संचालन – कवि जीतू जलेसरी ( तंज़ानिया ), अध्यक्ष – Prof नीलू गुप्ता ( कैलिफ़ोरनिया), विशिष्ट अतिथि – रचनाकार ज्योतिर्मय ठाकुर (UK ),
डॉ रजनी दुर्गेश ( हरिद्वार , भारत), डॉ मानसी शर्मा दोहा , कतर ), डॉ शिक्षा गुजाधुर ( मरिशस ), सुश्री अमृता अमृत ( दिल्ली , भारत ), डॉ अमित कौर पूरी (देहली , भारत ), सुश्री अंजुमन अंजुम ( छिन्दवाड़ा , सुश्री अभिलाषा विनय ( दिल्ली , भारत ) से भाग लिया।

काव्य गोष्ठी का प्रारम्भ सुश्री अभिलाषा विनय ने अपने मधुर कंठ से माँ सरस्वती की बंदना से किया । सभी की रचनायें अति उत्तम और श्रेष्ठ थी , जिनमें कुछ इस तरह है ।

ज्योतिर्मय ठाकुर [ UK ] विमुक्त
दिवास्वप्न में , मेरा प्रेमी , पायलट के रूप में दिखाई दे रहा है
अब और नहीं

अब और नहीं
वह मेरी बंद खिड़की पर बैठती है
मेरे सभी सपनों को बयान करता
मेरे प्रस्थान का वर्णन करते हुए।

डॉक्टर शिक्षा गुजाधुर – ख़ुश रहो कि तुम न होती तो क्या क्या होता

डॉक्टर रजनी दुर्गेश –
पहली कविता –
“पालना में नौनिहाल क्यों
अहसास उसे दिलाने को,
पालना आगे सुख का द्योतक,
पीछे दु:ख का द्योतक,
सुख दुःख के झूले में
झूलता रहता मानव।
दूसरी कविता
भिक्षुक
एकता का सन्देश देने पर भी त्रास खाता है
जाने क्यों मेरा मन चीत्कार कर उठता है।

डॉक्टर नीलू गुप्ता – हमने विदेश में आकर अपना देस बसाया

डॉ मीनू पाराशर ‘मानसी’
दोहा-कतर
“नए साल का ऐसा तोहफा,
तुम्हें दिलाने आई हूँ,
कविताओं में दुआ समेटे,
झोली भरकर लाये हैं

अमृता अमृत दिल्ली इंडिया
आ तेरी बलायें मैं उतार लूं ,
वीरता के शंखनाद ,जीत का लिए प्रसाद ।
आ तुम्हारी आरती उतार लूं ।।

अंजुमन मंसूरी ‘आरज़ू’
तेरे आने से तेरे जाने से
साँस चलती रही बहाने से ।
तू जो आया तो जी लिये जी भर,
मर गए तेरे लौट जाने से ।

डॉक्टर अमित पुरी
1. क्या यह मैं हूँ
2. चंद्र और ब्रह्मकमल

अनुपम मिठास – ग़ज़ल
न जाने क्यूँ हम हर इल्ज़ाम आया
क्यूँ गुनहगारों में हमारा ही नाम आया

जीतू जलेसरी
तुम्हारे गीत की सरगम नहीं है
बहर है हम कोई शबनम नहीं है
ये मत समझो कि तुम ही हो यहां पर
हमारी हैसियत भी कम नहीं है।

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