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अनियंत्रित बढ़ती आबादी पर सरकार अब क़ानून लाए !

  • रामकेश एम.यादव

अनियंत्रित गति से बढ़ रही जनसंख्या देश के विकास को बाधित करने के साथ ही हमारे आम जीवन को भी दिन-प्रतिदिन प्रभावित कर रही है। विकास की कोई भी योजना,परियोजना वर्तमान जनसंख्या दर को ध्यान में रखकर बनाई जाती है लेकिन अचानक जनसंख्या बढ़ने की  वजह से परियोजना का जमीनी धरातल पर खरा उतरना मुश्किल हो जाता है। यह सीधी-सी बात है कि जैसे-जैसे देश की जनसंख्या बढ़ेगी वैसे-वैसे गरीबी के आंकड़े में स्वतः बढ़ोत्तरी होगी।

135 करोड़ आबादी वाले इस देश में आबादी के मुताबिक हॉस्पिटल की बेहद कमी है। इस कोरोना महामारी में अब तक एक लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। न जाने आगे क्या होगा? इस तरह डॉक्टर्स,नर्स, स्वास्थ्य उपकरणों की भारी कमी भी महसूस की गई है। करोड़ों केस न्यायालयों में लंबित हैं। दिनोंदिन संसाधनों की भारी कमी बताई जा रही है। जरुरत से ज्यादा जंगलों की कटाई हो चुकी है। पर्यावरण की कमर टूटती ही जा रही है। नदियाँ सूखती जा रही हैं। बढ़ती आबादी के चलते पीने लायक पानी नहीं रहा। प्रदूषित पानी पीने के लिए लोग बेबस हैं।

अब भारत सरकार को आनेवाले सत्र में बढ़ती आबादी को लेकर ऐसा कठोर नियम बनाना चाहिए कि ताकि दो से अधिक बच्चे, लोग पैदा न कर सकें। अगर बने क़ानून का कोई उल्लंघन करता है, तो उससे सारी सरकारी सहूलियतें  छीनी जा सकें। तुष्टिकरण की नीति के चलते देश अब तक बहुत नुकसान उठा चुका है। सन 1975-76 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी  नशबंदी के जरिये आबादी नियंत्रित करने संबंधी कठोर कदम उठाई थीं लेकिन सही तरीके से उसे व्यवहार में न लाने की स्थिति में वह योजना असफल हो गई फिर बीच में किसी और सरकार ने बढ़ती आबादी पर कोई क़ानून नहीं लाने की जहमत उठाई। वर्तमान सरकार 370 धारा, राममंदिर, तलाक सहित कई राष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने में सफलता हासिल की है, इससे देश को उससे बड़ी उम्मीद जगी है।

आप कहीं भी चले जाइये, बस हो या ट्रेन, हवाई जहाज हो या सड़क मार्ग, हर जगह भीड़ ही भीड़ दिखाई देती है। भेड़-बकरी की तरह यात्रा करने पर लोग मज़बूर होते हैं। मुंबई की लाइफ लाइन कही जानेवाली लोकल ट्रेन ठूँसम-ठूँस भरी रहती है और जो नियमित उसमें प्रवास करते हैं,उसकी पीड़ा वही जानते हैं।  देखा जाए,तो इतनी आबादी की जरुरत ही क्या है? जनसंख्या के मामले में हम दुनिया में दूसरे पायदान पर हैं। भारी आबादी वाले इस देश को नये-नये अविष्कार तथा अंतरराष्ट्रीय खेलों में गोल्ड जीतने जैसे काम भी करना चाहिए। इस पर हमारी वैज्ञानिक सोच क्यों नहीं बनती? बच्चा पैदा करना तो आसान है, देश के भविष्य के बारे में लोग कम क्यों सोचते हैं? आबादी बढ़ाने मात्र से ख़िताब तो मिलेगा नहीं। गांव-गिरावं में अब पुस्तैनी फसली जमीन तथा आबादी की जमीन इतनी कम पड़ती जा रही है कि रोज लाठी ही उठी रहती है। शादी-विवाह पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। घर में हिस्से के खेत कम पड़ते जा रहे हैं। नौकरी-पानी की हालत बद से बदतर होती जा रही है। खाने के लाले पड़े हैं। रोजी-रोटी के अभाव में कुछ आज के युवक छिनैती, डकैती, लूटपाट, हत्या जैसे जघन्य अपराध में भी संलिप्त होते जा रहे हैं। जब तक भारत सरकार अनियंत्रित आबादी के ऊपर कठोर क़ानून नहीं लाएगी, ये सब चलता रहेगा। लोकसभा चुनाव, विधान सभा चुनाव, महा नगरपालिका आदि के चुनाव में दो से
अधिक संतान वाले प्रत्याशी को चुनाव लड़ने से रोका जाए और दो से अधिक संतान वाले नागरिकों को भी सभी सरकारी सुविधाओं से दूर रखा जाय तब जाकर आबादी नियंत्रण में आएगी। विकास की नई सुबह तब देश को महाशक्ति बनाने में अलग ऊर्जा पैदा करेगी। एशिया महाद्वीप में भारत भ्रष्टाचार के मामले में आज प्रथम पायदान पर है, इससे भी निजात मिलेगी। बढ़ती आबादी भी भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार है। सिर्फ चिल्लाने से आबादी कम होने वाली नहीं है। इसके लिए क़ानून की सख्त जरुरत है। देश में आत्मनिर्भरता के साथ खुशहाली लानी है,तो छोटे परिवार की संकल्पना करनी ही होगी। आज जापान सहित दुनिया के कम आबादी वाले देश कहाँ से कहाँ पहुँच गये। भारत सरकार को भी अब उसी नक्शे कदम पर चलकर देश की भावनाओं का आदर करना चाहिए।

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