♦सय्यदना घराने से ताल्लुक जनाब सादकुल यिदिज जहाबी भाई साहब ने कहा, बोहरा मुस्लिम समाज उर्दू सहाफत (अख़बार) को हर संभव मदद करेंगे
♦ उर्दू सहाफत (अख़बार) को दो सौ साल पूरे होने पर पूर्व संपादक गुजराती मिड डे जतिन देसाई ने दी बधाई
रिपोर्ट : शकील शेख
मुंबई : उर्दू सहाफत (अख़बार) को दो सौ साल पूरे होने पर मुंबई हज हाउस में शनिवार 17 सितंबर 22 को ” पत्रकार विकास फाउंडेशन ” द्वारा जश्न मनाया गया। आपको बता दें कि उर्दू भाषा में पहला अख़बार ” जाम जहान नुमा ” कलकत्ता (जो आज कोलकाता है) से 27 मार्च 1822 में प्रकाशित हुआ , यहां यह जानना बहुत जरूरी है कि उर्दू सहाफत (अख़बार) ” जाम जहान नुमा ” के मालिक श्री हरिहर दत्त जी और इसके संपादक श्री मुंशी सदा सुखलाल जी थे, ” जाम जहान नुमा ” शुरूआत में सिर्फ छः अंक ही उर्दू भाषा में निकला उसके बाद समय की मांगनुसार इसे फारसी भाषा में शुरू किया गया और एक साल बाद फारसी अखबार के साथ चार पन्ना उर्दू भाषा को जोड़ा गया ” जाम जहान नुमा ” के मालिक श्री हरिहर दत्त और संपादक श्री मुंशी सदा सुखलाल जी थे और प्रकाशक (आज कोलकाता) कलकत्ता की एक अंग्रेज व्यापार कोठी वसीम पीटर्स हॉप कनस एंड कंपनी थी,यह उर्दू भाषा का पहला अख़बार था उसके बाद उर्दू अखबार को एक नई दिशा मिली , आज़ादी के बाद उर्दू अखबार और उर्दू पत्रकारिता में बहुत तेजी आई इतना ही नहीं बड़े शहरों में उर्दू अखबार निकलने लगे जिसमें प्रमुख रूप से क़ौमी आवाज़, इंकलाब, उर्दू टाईम्स, प्रताप, हिंद समाचार, सियासत, क़ौमी तंजीम, जैसे और भी कई प्रमुख अखबार हैं जो अभी भी 50 सालों से लगातार प्रकाशित हो रहें हैं।
वरिष्ठ पत्रकार सुधिंदर कुलकर्णी ने कहा कि उर्दू अखबार ने दो सौ साल पूरे किए इसके उपलक्ष्य में ” पत्रकार विकास फाउंडेशन ” द्वारा जश्न मनाया जा रहा है मैं बहुत बहुत बधाई दे रहा हूं, उन्होंने कहा कि उर्दू अखबार के बाद हिंदी समाचार पत्र ” उदंत मार्तंड ” भारत का पहला हिंदी समाचार पत्र 30 मई 1826 को आया इसी खास दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है , राज्य सभा सांसद नदीम उल हक ने कहा कि उर्दू अखबार ” जाम जहान नुमा ” 27 मार्च 1822 को कोलकाता से प्रकाशित हुआ बंगाली हिंदी अखबर भी कोलकाता से प्रकाशित हुए हैं यह मेरे लिए बहुत फक्र की बात है की मैं कोलकाता से ताल्लुक रखता हूं, वरिष्ठ पत्रकार अनुराग त्रिपाठी जी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि उर्दू सहाफत (अखबार) का अपना इतिहास रहा है “जाम जहान नुमा” का संघर्ष कोई भूल नही सकता है उस अखबार ने क्रांतिकारियों में एक नया जोश भर दिया था उन्होने गांधी जी को नमन करते हुए कहा कि अखबार की भाषा उर्दू हो हिंदी हो या कोई भी भारतीय भाषा में अख़बार हो लेकिन भाषा एकदम सरल होनी चाहिए आम आदमी की भाषा होनी चाहिए ताकि अखबार पढ़ने के बाद सीधे तौर पर समझ सकें, गोवंडी से समाजवादी पार्टी के आमदार अबु हासिम आज़मी ने कहा कि उर्दू को बचाना है तो हर आदमी को अपने बच्चों को उर्दू पढ़ाना चाहिए विधायक आज़मी अपने ऊपर तंज कसते हुए कहा कि मेरे बच्चे उर्दू नहीं जानते हैं मुझे इस बात का अफसोस है अभिभावक अपने बच्चों को चाहे जो भाषा में पढाएं लेकिन उर्दू तालीम भी जरूरी है , मुंबई मराठी पत्रकार संघ के अध्यक्ष नरेंद्र वाबले ने कहा कि उर्दू बहुत प्यारी और मीठी ज़बान है मैं उर्दू अखबार की उन्नति के लिए सदैव तत्पर हूं, बोहरा मुस्लिम समाज सय्यदना घराने से ताल्लुक रखने वाले जनाब सादकुल यिदीज जहाबी भाई साहब ने कहा कि उर्दू भाषा किसी एक समुदाय का नहीं है उर्दू भाषा हर समाज और हर समुदाय का है और उर्दू सहाफत (अखबार ) सहाफियों (पत्रकारों) और कोई भी भाषा का अखबार हो बोहरा मुस्लिम समाज मदत के लिए सदैव तत्पर है।
दैनिक हिंदुस्तान के संपादक सरफराज आरजू ने कहा कि उर्दू सहाफत (अख़बार) आज़ादी की लड़ाई में हमेशा आगे रहा है इसी कारण ब्रिटिश सरकार ने ” जाम जहान नुमा ” के ग्यारह संपादको को काला पानी की सजा देकर अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में भेज चुका था उसके बाद ” जाम जहान नुमा ” ने संपादक के लिए सूचना देना शुरू किया कि जिसे कालापनी की सजा मंजूर हो वही संपादक के लिए आवेदन करे । ” पत्रकार विकास फाउंडेशन ” द्वारा आयोजित कार्यक्रम के अध्यक्ष सामाजिक कार्यकर्ता वरिष्ठ पत्रकार जतिन देसाई ( पूर्व संपादक गुजराती मिड डे ) ने सबसे पहले उर्दू सहाफत (अख़बार) के दो सौ साल पूरे होने पर बधाई दिए ” जाम जहान नुमा ” के हवाले से मौलवी मोहम्मद बाकर को याद करते हुए कहा कि बाकर जी बहुत ही निर्भीक निष्पक्ष और निडर पत्रकार थे उनकी कलम से ब्रिटिश सरकार हिल गई थी उन्होंने अपनी कलम से क्रांति की अनोखी मशाल जलाई उनकी कलम से युवा बहुत प्रभावित होते थे क्रांतिकारी की मशाल लेकर क्रांति पथ पर चल पड़ते थे,मौलवी मोहम्मद बाकर देश के लिए शहीद होने वाले पहले क्रांतिकारी पत्रकार थे,जतिन देसाई ने गोदी मिडिया को लताड़ते हुए कहा कि ब्रिटिश शासन में भी गोदी मिडिया हुआ करता था ” इंडिया गजट ” नाम का अखबार उस समय गोदी मिडिया का काम करता था ब्रिटिश सरकार के दमन के कारण 1856 तक सिर्फ 12 अखबार रह गए थे, जतिन देसाई ने कहा कि सबसे अच्छी बात यह थी कि 1900 शताब्दी में जितने उर्दू अखबार निकल रहे थे उनमें से ज्यादा तर अखबारों के मालिक और संपादक हिंदू ही थे । जश्न के समय उर्दू टाईम्स के पत्रकार व ” पत्रकार विकास फाउंडेशन ” के अध्यक्ष युसुफ राणा ने कहा कि हम बहुत जल्दी ही हिंदी समाचार पत्र का जश्न भी बहुत आला और उम्दा तरीके से मनाएंगे, उक्त अवसर पर एनजीओ, समाज सेवक, समाज सुधारक, राजनीतिक, शायरों, कवियों और पत्रकारों को शॉल ओढ़ाकर, पुष्पगुच्छ, सम्मान ट्रॉफी से सम्मानित किया गया, कार्यक्रम की शुरुआत उर्दू आंगन के संपादक मुशीर अहमद अंसारी ने अपनी उम्दा शायरी से किया और राष्ट्रगान के साथ समाप्त किया ।