“बेटी को मिले समानता का अधिकार”
✍️ पूजा गुप्ता, मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश
बेटी के जन्म लेते ही मां बाप को बेटी के भविष्य की चिंता होने लगती है यह सोच कर कि वह बेटी है, आज भी कई जगह चोरी से घर वस्त्र भ्रूण की जांच की जाती है यह देखा जाता है की कोख में बेटी है या बेटा यदि बेटी होती है तो उसे इस दुनिया से विदा कर दिया जाता है मतलब उन्हें कोख में ही मार दिया जाता है बेटियां अगर जन्म नहीं लेगी तो बेटों को जन्म देगा भी कौन? आज भी समाज में देखा गया है कि बेटी से ज्यादा बेटे को अधिक महत्व दिया जाता है,बेटों को घर का चिराग कहा जाता है बेटियों को एक नियम और कानून के चलते उन्हें पराया घर का कहकर पराया कर दिया जाता है। बेटियों को बचपन से ही उनको दायरे में रहना सिखाया जाता है उनकी आजादी के लिए पहली शर्त यह है कि एक नियमबद्ध होकर अपने अधिकारों का प्रयोग बेटियां कर पाए उन्हें बचपन से ही रीति-रिवाजों की कायदे सिखा दिए जाते हैं घर के कामों से लेकर, घर परिवार की जिम्मेदारी तक..।
आज भी समाज में यह मान्यता है कि बेटियों को सब कुछ सीखना चाहिए घर के कामों में पारंगत होना चाहिए और ससुराल में अपनी छवि बनाए रखने के लिए उन्हें सीख दी जाती है। ससुराल जाना तो अपने सास-ससुर का ध्यान रखना, अपने पति का ध्यान रखना, यह सारी चीजें उन्हें बचपन से सिखा दी जाने लगती है, इन्हीं जिम्मेदारियों के चलते पहले जमाने में कई छोटी-छोटी बच्चियों का भविष्य खतरे में पड़ जाता था, पहले बाल विवाह वगैरह हुआ करते थे जहां बेटियों के शरीर का विकास नहीं हो पाता था और विवाह होने के बाद कच्ची उम्र में संतान होने पर उनकी जान का खतरा बढ़ जाता था। आज भी ऐसे ही कई गांव है जहां पर बाल विवाह प्रचलित है, इस पर रोक लगाई जानी चाहिए, बेटियों को लड़कों के समान समानता का अधिकार मिलना चाहिए बेटियों को यह कहकर नीचा नहीं दिखाना चाहिए कि वह लड़कों से कम है, एक दायरे में रहकर बेटी हर जिम्मेदारी निभा लेती है, बेटियों को सिखाएं अपनी सुरक्षा करना।
बेटियों को घर के काम के साथ उन्हें कराटे भी सिखाए ताकि जब बेटी घर के बाहर निकले तो अपनी सुरक्षा वह स्वयं कर पाए, बलात्कार जैसी घटनाएं जो आजकल समाज में फैली हुई है इन सब पर रोक तभी लग सकती है जब बेटियों को सशक्त बनाया जाए, बेटियों को पढ़ाया लिखाया जाए, बीच में उनकी पढ़ाई को रोकना नहीं चाहिए, उन पर नियम कानून लाद कर उन पर अत्याचार ना करें, इसकी वजह से बेटियों का मानसिक विकास संकुचित हो जाता है फिर बेटियां मन में यह बात लेकर के बैठ जाती हैं कि उन्हें पढ़ाई लिखाई के बाद तो ससुराल की जिम्मेदारी ही निभाना है, तो ऐसी मानसिकता को रोकिए याद रखिए बेटियां दोनों कुलों की लाज रखती है। उन्हें जागरूकता के अवसर देना चाहिए उन्हें आत्मनिर्भर बनाएं, तभी उनका बौद्धिक विकास हो सकता है।
बेटियों को घर की चारदीवारी से निकालकर बेटी को मजबूत रहना सिखाये। कई जगह ऐसी भी है जहां बेटियों की पूजा की जाती है उन्हें बराबर सम्मान दिया जाता है, जब माता दुर्गा को आप पूजते हैं तो बेटियां क्यों न पूजी जाए! याद रखें जहां नारी की पूजा की जाती है वही देवता निवास करते हैं उनकी इज्जत करिए समाज में सम्मान दिलाये।