मुंबई : मनोज पंडित का नाम आज सिर्फ एक पेंटर, शिक्षक, चित्रकार और कार्टूनिस्ट के रूप में ही नहीं बल्कि फिचर फिल्मों के बड़े पर्दे पर भी एक मंझे हुए कलाकार के रूप में छाने लगा है। दूरदर्शन के कई धारावाहिकों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद, जब मनोज पंडित ने बड़े पर्दे की तरफ रूख किया तो वहां भी उन्हें एक के बाद एक कई फिल्मों में अवसर मिलते चले गये।
मनोज पंडित की आने वाली फिल्में
जल्द ही मनोज पंडित (Bhojpuri actor Manoj Pundit) की अगली हिन्दी फिचर फिल्म ‘‘सफाईबाज‘‘ 4 मार्च को रिलीज होने वाली है। उनकी इस फिल्म को लेकर जब हमने उनसे मुलाकात की तो उन्होंने बताया कि ‘‘सफाईबाज‘‘ की अधिकतर शूटिंग उत्तर प्रदेश के रायबरेली और ग्रेटर नोएडा में हुई है। जबकि इसकी शुटिंग के समय ही यूपी में बनने वाली फिल्मसिटी की घोषणा भी की गई थी। और फिल्म के लेखक व निर्देशक डाॅ. अवनीश सिंह खुद भी उत्तर प्रदेश से संबंध रखते हैं जिनके कारण ये संभव हो पाया है। इसलिए इसे प्रदेश में बनने वाली फिल्मसिटी की पहली फिल्म भी माना जा सकता है।
फिल्म ‘‘सफाईबाज‘‘ की शूटिंग खत्म हो चुकी है और 4 मार्च को रिलीज होने की तैयारी में है। फिल्म के पोस्ट प्रोडक्शन का काम भी लगभग खत्म होने वाला है। अवनीता आर्ट्स के बैनर तले बन रही इस फिल्म में जाॅनी लीवर, राजपाल यादव, ओकर दाश मणिपुरी जी (फिल्म ‘पिपली लाइव’ के नत्था), उपाशना सिंह, अनुपम श्याम ओझा (सज्जन सिंह) सम्राट चतुरवेदी, मनप्रीत, ऋतु सिंह के साथ मनोज पंडित भी नजर आने वाले हैं।
मनोज पंडित की आने वाली कुछ फिल्में जिनकी शुटिंग चल रही है और कुछ पोस्ट प्रोडक्शन की तैयारी में हैं उनमें से हिन्दी फिल्मों के नाम हैं – ‘सफाईबाज‘़, ‘डिफरेंट‘, ‘डिलीट फाॅर एवर‘, ‘नियत‘ और ‘पब्लिक द पावरफुल मैन‘। इसके अलावा भोजपुरी फिल्मों में ‘छोरे छिछोरे‘, ‘बाॅडीगार्ड नं. 1‘, ‘सितमगर‘ और ‘शादी के चक्कर में‘। साथ ही वे एक हिन्दी टी.वी. सीरियल ‘तफतीश’ के अलावा भी एक अन्य सीरियल में नजर आने वाले हैं।
मनोज पंडित के शुरूआती दिन
एक सवाल के जवाब में मनोज पंडित ने बताया कि अधिकतर कलाकार हिन्दी फिल्मों के लिए मुंबई का ही रुख करते हैं लेकिन, मैंने तो दिल्ली में रहते हुए भी यह कारनामा कर दिखाया और कई पुरस्कार अपने नाम करवा लिए।
साथ ही साथ अपने सफलता के शुरूआती दिनों के बारे में भी उन्होंने बताया कि हाॅलीवुड और बाॅलीवुड के कलाकारों को भी शायद बहुत कम मौका मिला होगा कि उनमें से किसी की भी दो फिल्में एक ही दिन एक ही समय में बड़े पर्दे पर रिजील हुई हों। लेकिन, उनके जीवन एक बार ऐसा समय आ चुका है कि उनकी दो अलग-अलग भाषाओं की फिल्में ‘लव इज फोरइवर’ (हिन्दी में) और ‘दरोगा चले ससुराल’ (भोजपुरी में) एक ही दिन 21 अगस्त 2015 को एक साथ एक रिलीज हो चुकी हैं।
शाॅर्ट मूवीज का चैलेंज भी कम नहीं
प्रोड्यूसर अनीता पंडित के ‘अनीता क्रिएशन्स’ के बैनर के तले बनी शाॅर्ट मूवी ‘‘छोटी सी चाहत‘’ के बारे में पूछने पर मनोज पंडित ने बताया कि शाॅर्ट मूविज़ में काम करना बड़े पर्दे से भी ज्यादा टेढ़ा काम होता है। वे कहते हैं कि छोटी फिल्मों की खासियत ये होती है कि इनमें किसी भी कलाकार के लिए कम से कम समय में अपनी कला का ज्यादा से ज्यादा असर छोड़ना पड़ता है।
मनोज पंडित के लिए टेलीविजन ज्यादा असरदार क्यों है
टेलीविजन को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में मनोज पंडित ने कुछ खास धारावाहिकों के नाम भी गिनवा दिए जिनमें वे अभिनय कर चुके हैं, जिनमें से- दूरदर्शन पर दिखाये जाने वाले अपने समय के मशहूर धारावाहिकों में ‘खिलाड़ी’, ‘डिटेक्टिव करण’, ‘असफाक उल्ला खान’, ‘मकबूल की वापसी’, ‘कलंदर’ और ‘गोसा-ए-हाफिया’ हैं जो दूरदर्शन के अन्य चैनलों पर भी प्रसारित किये गये थे। इसके अलावा ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’, ‘भक्तांबर की महिमा’, ‘कैसी दुनिया कैसे लोग’, अंजन टीवी पर ‘चटकारा न्यूज’ (भोजपुरी), ‘गुनहगार कौन’ (भोजपुरी), और ज़ी पुरबिया पर ‘धत्तेरेकी’ प्रमुख हैं।
मनोज पंडित का छात्रा जीवन और संषर्घ
अपने छात्र जीवन के दिनों में मनोज पंडित ने पटना के थियेटरों में जाकर अभिनय की बारीकियों को भी जाना और कई नाटकों के मंचन में हिस्सा भी लिया। दिल्ली आने के बाद उन्होंने यहां के कई प्रसिद्ध शैक्षणिक संस्थानों में बतौर फाइन आर्ट के शिक्षक के तौर पर रहते हुए भी कई ऐक्टिंग का साथ नहीं छोड़ा।
भोजपुरी, मैथिली और हिन्दी फिल्मों और धारावाहिकों में अपने काम के अनुभवों के बारे में वे बताते हैं कि इन सबमें अगर कुछ है तो मिट्टी से जुड़ी हुई संवेदनाएं और क्षेत्रीय संस्कृति की वो झलक है जिसकी हमें हमेशा जरूरत होती है। तभी तो वर्षों पहले बनी ‘नदिया के पार‘ जैसी फिल्म को आज भी लोग भूल नहीं पाते हैं।
मनोज पंडित का मन और मनन
खास तौर पर हिन्दी फिल्मों के विषय में मनोज पंडित का कहना है कि वर्तमान समय के लगभग सभी निर्माता और निर्देशकों के लिए बड़े परदे पर भागदौड़ और राजनीति के अलावा शायद और कोई विषय नहीं बचे हैं। लेकिन अगर वे भी ग्रामिण परिवेश और मिट्टी की खुशबू से जुड़ी फिल्में बनाने लग जायें तो इसमें कला भी निखरती है और संस्कृति को भी लाभ मिलता है।
अपने भीतर के उस पेंटर को उजागर करते हुए उन्होंने ये भी बताया कि वे देश के कई हिस्सों में पेंटिग प्रदर्शनियां भी लगा चुके हैं। और साथ ही कई नामी पत्र-पत्रिकाओं के लिए कार्टूनिस्ट के तौर पर काॅलम चला चुके हैं। जब उनसे पूछा गया कि क्या अब भी वे अपनी भीतर के उस पेंटर और आज के एक्टर के बिच तालमेल बिठा पाते हैं? तो उन्होंने कहा कि दोनों ही काम मेरे लिए एक जुनून की तरह हैं और जब किसी काम को लेकर जुनून हो तो समय भी निकल आता है, सामंजस्य भी बैठ ही जाता है।