♦ पंडित प्रतिभा दुबे ( स्वतंत्र लेखिका), ग्वालियर मध्य प्रदेश
अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली पूर्णिमा को ही शरद पूर्णिमा कहते हैं। साल भर में सिर्फ एक शरद पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण रहता हैं,इसे अश्विन पूर्णिमा भी कहते हैं।इस दिन हम भगवान श्री कृष्ण, की पूजा करते हैं , पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन ही श्री कृष्ण भगवान ने महारास रचाया था।
चुकी इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं से परिपूर्ण रहता है इसीलिए ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा द्वारा इस दिन उसकी किरणों के प्रकाश से अमृत की वर्षा होती है, इसीलिए लगभग पूरे भारत में इस दिन खीर बनाने का खासकर महत्व है जिसे भगवान श्री कृष्ण का भोग लगाकर चंद्रमा की रोशनी में,पूरी रात भर रखने से उसमें अमृत्व का प्रभाव बढ़ जाता है। ऐसा माना जाता है की रात्रि में रखी गई खीर को प्रात काल उठकर खाली पेट सेवन करने से, सभी प्रकार के रोग और बीमारी दूर होते हैं । श्रीमद् भागवत के अनुसार श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है के इस दिन चंद्रमा सभी वनस्पतियों को अमृत से पुष्ट करता है और रोग को मुक्त करता है।
शस्त्रों के अनुसार इस दिन महालक्ष्मी जी के जन्म की भी पुष्टि होती है क्योंकि इस दिन लक्ष्मी जी का अवतरण हुआ था इसीलिए इस दिन लक्ष्मी जी की भी विशेष आराधना की जाती है। कहा जाता है कि विष्णु जी के साथ साथ लक्ष्मी जी की आराधना करने से घर में धन धान्य की बरकत बनी रहती है। इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम लक्ष्मी जी के मंत्र उच्चारण के साथ, कनकधारा स्त्रोत एवम् श्री सूक्त का पाठ करने से पुण्य फल प्राप्ति होती है। हल्दी कुमकुम एवं पंचोपचार पूजा का विधान है इसके साथ कन्याए भी खिला सकते हैं। लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन कई लोग विभिन्न प्रकार के भोग पकवान बनाकर उनका पूजन करते हैं। इसके साथ साथ प्रातः जल्दी उठकर सूर्य एवं चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा का भी विधान है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा का व्रत करने से मनुष्य की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं एवं वह सुख सौभाग्य समृद्धि को प्राप्त करता है।