✍️ प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका), ग्वालियर, मध्य प्रदेश
है रौनक कलाई की,
बहन की ये जो राखी है,
पहन लेना प्यार से तुम,
कि ये बंधन तोड़ न देना।
ये खट्टा मीठा रिश्ता है,
रूठने का मानने का,
बहन की जान है मायका,
भैया तुमसे ही उम्मीद लगाती है।।
ससुराल मैं रहकर भी मायके का
वो हर वचन को निभाती है।
वह तुमसे प्रेम चाहती है,
वो सब पर जा लुटाती है।।
कि रोशन है जहां सारा
यह बहनों की दुआओं से
की तुम कुलदीपक कहाते हो
वो रोशनी फैलाती है।।
रेशम की कच्ची डोर से
बंधा हुआ, मजबूत ये बंधन
मां के आंचल, पिता के प्यार
मैं पनपा हुआ हमारा ये बचपन।
माना कि तुम्हारे नखरे हैं बहुत
और वह घर को सर पर उठाती है।
बहन है प्यारी वह तुम्हारी ही,
तुम्हें दिलो जान से चाहती है।।