बीएफ से लेकर बीएफ तक का सफर..
✍️ अतुल मलिकराम
बीते दिन सुबह के समय, मैं अपने घर के बाहर बने गार्डन में टहल रहा था, उस समय बहुत सारे बच्चे झूलों पर और इनके आसपास मस्ती कर रहे थे। इसी बीच मेरा ध्यान फिसल-पट्टी से कुछ दूरी पर बड़े आराम से घास पर पालकी लगाकर बैठे दो छोटे-छोटे बच्चों पर गया। मानों वह अंदाजन 8 साल का लड़का और लगभग 7 साल की लड़की पूरी दुनिया का तजुर्बा अपनी छोटी-सी गोद में लिए बैठे हों। यह देख टहलते-टहलते मेरा दाहिना पैर आगे और बहिना पीछे की तरफ ज्यों का त्यों जमीन में टिका रह गया और एक जगह रूक कर काफी देर एक टक मैं उन्हें देखता रह गया।
फिर क्या देखता हूँ, वह लड़का उस प्यारी-सी लड़की से कहता है, “पता है, मैं तेरा बीएफ हूँ”। बड़ी ही मासूमियत से उस बच्ची ने उससे पुछा, “बीएफ मतलब?” “बीएफ मतलब बेस्ट फ्रेंड बुद्धू!” लड़के ने बड़े ही प्यार से लड़की के सिर पर मारते हुए कहा। फिर बच्चे ने उसे समझाया कि तुझे याद है, परसो मुझे सर्दी थी और मेरा रुमाल घर भूल गया था, मुझे किसी ने भी अपना रुमाल नहीं दिया, लेकिन तूने मुझे वह रखने के लिए दे दिया। तो, हुआ न मैं तेरा बेस्ट फ्रेंड!!
चेहरे पर चाशनी से भी मीठी मुस्कान छोड़ता हुआ यह वाक्या मुझे मेरी बाली उमर में ले गया, जो कि हूबहू मैं जी चुका था। बात उन दिनों की है, जब मैं और मेरी एक खास दोस्त कॉलेज में साथ पढ़ा करते थे। मुझसे एक साल पीछे वाली क्लास में होने के बावजूद वह मेरा इतना ख्याल रखती थी, जैसे मेरे लिए ही बनी हो। मेरी क्लास के बदमाश लड़कों से बिना डरे निहत्थी शेरनी की तरह मेरे लिए लड़ पड़ना और उसके मन में मेरे लिए एक अलग एहमियत ने मुझे उससे यह पूछने पर मजबूर कर दिया कि मैं तेरा बीएफ हूँ न! सब कुछ समझ जाने के बाद भी कुछ अनजान बनती हुई वह मुझसे पूछती है, “बीएफ मतलब?” सच में, ‘बॉय फ्रेंड’ का असली मतलब उसी दिन मुझे समझ आया था कि साथ घूमना-फिरना और खाना-पीना, बीएफ की परिभाषा है ही नहीं, न जाने लोग इसे गलत क्यों लेते हैं? यह तो ‘परवाह’ का दूसरा नाम है, जो हम अपने से मिलते-जुलते स्वभाव वाले किसी ‘खास’ की करते हैं और उसे ‘सबसे खास’ महसूस कराने की भरसक कोशिश की गलियों में चल पड़ते हैं। इस मोड़ पर एक छटाँक भर के शब्द ‘बीएफ’ ने मेरी जिंदगी में इसके मायने ही बदल दिए और जिंदगी के दौरान जीए जाने वाले वो नाम मुझे दे दिए, जिन तक हम ताउम्र पहुँच ही नहीं पाते हैं।
- आपको जानकर हैरत और शायद असीम खुशी होगी कि यही दोस्त आगे चलकर मेरी बीएफ यानि ‘बीइंग फॉरएवर’ बनी, जिसे आम भाषा में हम पत्नी कहते हैं। बेटी के हमारे घर में जन्म लेने के बाद मैं फिर एक बार उसका बीएफ बना। कैसे? उसका ‘बेबीज़ फादर’ बनकर। जीवन का एक लम्बा हिस्सा साथ गुजारने के बाद एक दिन यूँ ही रिलैक्सिंग चेयर पर सिर के नीचे दोनों हाथ रखकर आराम फरमा रहा था, उस समय एकाएक फलक में साथ रहने वाले मेरे माता-पिता की छवि मेरे ज़हन में आ गई। घर में बिल्कुल नज़दीक रखी उन दोनों की फोटो दीवार की शोभा बढ़ा
रही थी, वे भी तो एक-दूसरे के बीएफ ही थे, ‘बिसाइड्स फॉरएवर’.. हमारा साथ भी फलक तक का हो, यही मन में लिए बैठा हूँ। मुझे लगता है कि कुछ ऐसा ही होता है हमारा बीएफ से लेकर बीएफ तक का सफर, जो मैं चाहता हूँ कि सभी के सुकून भरे जीवन की चौखट की दस्तक जरूर बने..