एक मुट्ठी आसमां लोक अदालत, समावेशी न्याय व्यवस्था
दृढ निश्चय तथा आशा का प्रतीक है
रिपोर्ट : तपेश विश्वकर्मा
मिर्ज़ापुर, (उ0प्र0) : जिला विधिक सेवा विधिक रोक प्राधिकरणों का गठन समाज के कमजोर वर्गों को मुफ्त एवं राक्षम विधिक सेवाओं को प्रदान करने के लिए ताकि आर्थिक या किसी भी अन्य कारणो से कोई भी नागरिक न्याय पाने से वंचित न रहे तथा लोक अदालत का आयोजन करने के लिए किया गया है, जिससे कि न्यायिक प्र अवसर के आधार पर सबके लिये न्याय सुगम बना सके। लोक अदालत कानूनी विवादों का सुलह की भावना से न्यायालय से बाहर समाधान करने का वैकल्पिक विवाद दिन का अभिनव तथा सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम है जहाँ आपकी समझ-बुझ से विवादों का समाधान किया जाता है। लोक अदालत सरल एवम् अनौपचारिक प्रक्रिया को अपनाती है व विवादों का अविलम्ब निपटारा करती है। इसमें पक्षकारों को कोई शुल्क भी नहीं लगता है। लोक अदालत से न्यायालय में लंबित मामले का निष्पादन होने पर पहले से भुगतान किये गये अदालती शुल्फ की भी वापस कर दिया जाता है। अदालत का आदेश फैसला अंतिम होता है जिसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती लोक अदालत से मामले के निपटारे के बाद दोनों पक्ष विजेता रहते हैं तथा उनमे निर्णय से पूर्ण संतुष्टि की भावना रहती है, इसमें कोई भी पक्ष जीतता या करता नहीं है। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने कन्या की इस तीव्रतर प्रणाली को पहुंचाया है और अदालतों का बोझ बड़े पैमाने पर घटाया है। 2011 में आयोजित की गई राष्ट्रीय सीम असत में एक करोड़ पचीस लाख से ज्यादा मामलों का निपटारा किया गया है। उक्त आशय जानकारी श्री अमित कुमार यादव प्रथम, पूर्ण कालिक सचिव जिला विविध सेवा प्राधिकरण मीरजापुर ने दी हैं।