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Poem : “दिए जलाइए”

✍️ शुचि गुप्ता, कानपुर, उत्तरप्रदेश

सीय संग राम आ रहे दिए जलाइए,
दीपमाल की प्रदीप्ति मार्ग में सजाइए।

पुष्प वाटिका मिली सिया स्वप्राण राम से,
तोड़ के पिनाक भूमिजा वधू बनाइए।

सत्य एक नाम है सुभक्ति से लगा गले,
भीलनी सप्रेम बेर भाव से चखाइए।

थी शिला अहिल्य नारि तारि नाथ राम ने,
हर्ष रत्न पुष्प श्री कृपालु को चढ़ाइए।

अंजनी सुपुत्र साथ ले विमान आ गए,
बांट जोहती प्रजा सुनैन में बसाइए।

जागता प्रभात है प्रभास के प्रभाव से,
धर्म शंख गूंजता निनाद को बजाइए।

पूज्य राम जानकी धरा सदा विराजते,
पुण्य कार्य धाम भव्य सा शुची बनाइए।

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