✍️ मनीषा कुमारी “मन्नू”, विरार, महाराष्ट्र
देख भी लिया अजमा भी लिया।
न जाने क्या- क्या सिला दिया।।
मेरी दोस्तों को सरेआम बदनाम भी किया।
आज एक नई रंग दोस्ती का दिखा भी दिया।।
हम तो बस इतना जानते थे कि दोस्ती है एक प्यार।
इसमें नही है एक-दूसरे से भेदभाव और तकरार।।
दिल तो मेरा था कोरा कागज निर्मल जल के जैसे।
लेकिन इल्जाम से भर गये वे लिखी किताब के जैसे।।
समुन्दर से भी गहरी दोस्ती थी हमारी।
जिसे कोई माप भी नही सकता था।।
रूह से रूह तक प्यार था इस दोस्ती में।
जिसे कोई चाह के भी जुदा नही कर सकता था।।
समझ नहीं आयी कहाँ कमी रह गयी थी।
मेरे हर बात उन्हें बुरा क्यों लग रही थी।।
सोच-सोच के ये आँखे भींगने लगी थी।
ये दिल ऐसी क्यों नादानी करने लगीं थी।।
उनपर कोई इल्जाम नही लगा सकती।
थोड़ी सी बातों से रिश्ते तोड़ी नहीं जा सकती।।
लेकिन जिससे उम्मीद न हो वो बातें जब हो जाती हैं।
ये दिल मे एक दर्द कसक सी रह जाती हैं।।
नही मैं गलत थी नही वो गलत थे।
बस समझने को कोई तैयार नहीं थे।।
धैर्य और समझ की परीक्षा में आज।
हम दोनों एक दूसरे से हार चुके थे।।