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Poem : कहने को तो बहुत लोग हैं अपने….

✍️ मनीषा कुमारी, विरार, महाराष्ट्र

कहने को तो बहुत लोग हैं अपने।
कहने को तो बहुत लोग हैं अपने।।
लेकिन जब जरूरत पड़ती है तो।
कोई नहीं होते हैं अपने, कोई नहीं होते हैं अपने।।

सब को आजमा लिया, सब को देख लिया।
जरूरत पड़ने पर हम हर किसी के काम आए।।
जब हमें किसी की जरूरत थी तब
उसे हम ना याद आए-हम न याद आए।।

हर किसी की मदद के लिए हम।
थके हारे दौरे चले जाते थे।।
लेकिन हमें जब किसी की मदद की जरूरत हो,
तो हमें हजारों बहाने बनाते थे, हजारों बहाने बनाते थे।

कहते हैं भला करो तो भला होगा,
बुरा करो तो बुरा होगा।
लेकिन हमने जब-जब भी हर किसी का भला किया तो, हमारे साथ हमेशा बुरा ही हुआ,
हमने फिर भी हार नहीं मानी है।।

सच्चे रास्ते पर चलने से मुंह नहीं मोड़ी हैं।
झूठ कितना भी बलवान हो ।
एक दिन सच से हार ही जाता है।।
एक दिन वह सच के सामने झुक ही जाता है।।

इसीलिए हमने सदा सच की राह अपनाया है।
भले ही हमें उनसे कोई शिकवा शिकायत नहीं है।।
लेकिन कुछ लोग दिल से उतर भी तो गए हैं।
कहने को तो बहुत लोग हैं अपने,
पर समय पड़ने पर कोई नहीं है अपना।।

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