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धर्म एवं आस्थाराज्य

Mirzapur : अखाड़े की राजनीति या राजनीति का अखाड़ा : दिख रहा भारी मारी-मारा !

मठ के नरेश नरेंद्र गिरी पर गिरी मृत्यु की बिजली!

धर्म के मन्दिर में मृत्यु की जांच न्याय के मंदिर से हो : संतों ने ऐसी ही मांग

तिलस्मी स्टाइल में मृत्यु रफादफा न हो

हाई-प्रोफाइल मामले को हाई लेबिल से लिया जाना चाहिए

रिपोर्ट : सलिल पांडेय

मिर्जापुर, (उ0प्र0) : मृत्यु को भी TRP बनाने वाले अनेक न्यूज चैनलों के उटपटांग हरकतों पर तत्काल लगाम लगाने की मांग करते हुए अनेक संतों ने बाघम्बरी मठ के यशस्वी संत नरेंद्र गिरि की तिलस्मी स्टाइल में मृत्यु की जांच सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति से कराए जाने की मांग करते हुए कहा कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का स्वरूप धर्म के क्षेत्र में सुप्रीम है इसलिए इसकी जांच हल्के स्तर पर नहीं सँभव है।

फांसी पर लटके व्यक्ति को कौन उतार सकता है फंदे से?

संत नरेंद्र गिरि ने फांसी लगाई। दरवाजा बंद था । बाहर से आवाज़ दी गई। दरवाजा तोड़ा गया और जीवन की संभावना से फंदे से उतार लिया ग़ैरविधिक संस्था के लोगों ने। विधिक व्यवस्था के तहत तो पुलिस को यह कार्रवाई करनी चाहिए थी। यदि पुलिस के आने के पहले यह सब हो गया तो उंगलियां उठकर रहेंगी ही। तब तो ससुराल में दहेज-हत्याओं की बाढ़ आ जाएगी। पहले बहू को फांसी पर लटकाया जाएगा, फिर दरवाजा तोड़ने की नौटँकी होगी और फिर जीवन बचाने की कोशिश का दावा तो होगा लेकिन जीवन बचेगा नहीं नरेंद्र गिरि की तरह। जिसने फाटक तोड़ा और रस्सी से नीचे उतारा उससे भी गंभीरता से पूछताछ तो होनी ही चाहिए।

आश्रमों को सीख लेनी चाहिए

कोई भी धार्मिक संस्था हो, उसे राजनीति से एक निश्चित दूरी बनानी चाहिए। यह सीख नरेंद्र गिरि की रहस्यमयी मृत्यु से लेनी चाहिए। यहां के विवाद में राजनीतिज्ञों की पंचायत ने विवाद समाप्त किया या विवाद में पेट्रोल डालकर और आग बढ़ा दी, यह भी गहरे चिंतन का विषय है।

संतों की मांग

नरेंद्र गिरि की रहस्यमयी मृत्यु के मामले में जूनागढ़ के रामदरा आश्रम, पूना (महाराष्ट्र) के संत मनुपुरी महराज तथा जूनागढ़ के ही बूढ़ेनाथ मंदिर (मिर्जापुर) के संत योगानन्द गिरि की जब राय ली गई तो प्रथमतः इस मामले में संत समाज की आहत से अवगत कराते हुए कहा कि इतने दृढ़निश्चयी संत नरेंद्र गिरि आत्म-हत्या कर लेंगे, यह बात गले से नीचे नहीं उतर रही है। बहरहाल तीसरे दिन तक इतने हाई-प्रोफाइल मामले में अटकलबाजी यह सिद्ध कर रही है कि जो यह आरोप लगता है कि भारत की अधिकांश जांच अंततः निष्कर्षहीन होती है, उसका लेबिल इस मामले में भी न लग जाए ?

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