
✍️ विनोद ढींगरा ‘राजन’, (फरीदाबाद, हरियाणा)
यू छिप छिप कर आंसू बहाते हैं वो
कभी याद आते हो हमे
क्यो छोड़ दिये हमको सजन तुमने
कभी याद करते हो हमे
क्या कसूर था ये तो बताते
हमने तो प्यार किया था तुम्हे
तुम्ही रूठ कर चले गये
हम तो अभी भी चाहते तुम्हे
हम भावुक है आंसू बहा लेते है
सब सह लेते है ये पता है तुम्हे
तुम बन पत्थर के चले गए
हम केसे जी रहे ये पता है तुम्हे
प्यार अंधा होता है ये जानते हैं
तुम देख कर भी नही समझे
हमने तो बंद आंखों से किया प्रेम
राजन तुम देखकर भी नही समझे