✍️ उदय किशोर साह, (बाँका, बिहार)
आँखो की तड़प सपनों का इन्तजार
दिल रोता है तेरे लिये बार बार
पर तूँ निकला कैसा भूलक्कड़ पिया
जो दूर रह कर मेरी चिन्ता ना किया
इस सावन में सूनी सूनी है दिल की गलियाँ
बागों की उजड़ गई खिली सब कलियॉ
जो गुलशन हम ने सजाये थे कभी
पतझड़ उनपर छा गई है अभी
कभी तो सोंचा होता कैसी है मेरी कहानी
दिन रात रोती हूँ बैठ तेरी मैं दीवानी
कब जागेगा तेरे अन्दर का वो प्यार
मर क्यूँ गई तेरी मोहब्बत की बसंत बहार
अय परदेशी घर वापस तो अब आजा
बाँहों में हमें ले मुझे गले अब लगा जा।