रिपोर्ट : सलिल पांडेय
मिर्जापुर, (उ.प्र.) : यूपी की राजनीति में एक भजन ‘चल संन्यासी मन्दिर’ में जब जपा गया तो बदले में जवाब आया- क्यूं जाऊं मैं मन्दिर में..मेरा चिमटा और कमंडल मिलकर नाच नचाएंगे। इस भजन के निहितार्थ लगाने वाले चकराए कि हमारे दान-दक्षिणा वाला संन्यासी यह कैसा जप जपते हुए अलख निरंजन बोलकर चिमटा खड़खड़ा दिया है?
मंगाया गया 13 खाने का रिंच चूड़ी कसने के लिए
अब तक किसी चैलेंज से परे शक्तियां चकरा गईं अलख निरंजन की गूंज से। अलख निरंजन का अर्थ ही किसी सांसारिक की परवाह नहीं सिर्फ निरंजनी-शक्तियों की परवाह करो।
9वीं सदी के गुरु 12सौ साल बाद लगता है जग गए
विदेशी आक्रमणों के प्रारंभिक दौर के पूर्ण आध्यात्मिक और शिवत्व शक्तिसे लैस गुरु गोरखनाथ को जब पुकारा गया तो ऐसा लगता है कि गुरु अदृश्य रूप में दौड़ पड़े हैं। कोरोना की विभीषिका का ठीकरा शिष्य पर फोड़े जाने को गुरु आशीर्वाद निष्फल करने में सफल रहा। क्योंकि कोरोना प्रकोप की बलि शिष्य पर नहीं होने दी, बल्कि पलटवार कर दिया आशीर्वाद ने।
13 खाने के रिंच की जरूरत
13 खाने के रिंच की तलाश की गई कि संन्यासी के रथ को कैसे लुंज-पुंज कर दिया जाए। गुजरात से प्रशासकीय स्तर का रिंच काम न आया तो शाहजहांपुर के शहंशाह के साथ मिर्जापुर के इंजीनियर जिन्हें कम्पनी से सेवानिवृत्त कर दिया गया था, उनके भी तकनीकी रिंच के प्रयोग की कोशिश जारी है लेकिन गुरु-कृपा फिलहाल भारी दिख रही है।