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26th काव्यगोष्ठि का आनलाइन आयोजन संपन्न

लखनऊ : प्रसिद्ध साहित्यकार नीलम सक्सेना चंद्रा जी के फेसबुक पेज से 26th काव्यगोष्ठि का आनलाइन आयोजन संपन्न हुआ। आज का यह कार्यक्रम विषय आधारित था, जिसमें सभी प्रतिभागियों ने दो चरणों में अपनी कविताओं को प्रस्तुत किया, पहले चरण का विषय ‘गरमी’ और दूसरे चरण का विषय ‘सकरात्मकता’ पर आधारित रहा। आज के कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थी सुधा दीक्षित जी (बंगलौर) जो जानी मानी साहित्यकार, लेखिका व कवयित्री हैं।

इस कार्यक्रम का संचालन एवं तकनीकी योगदान कवियत्री डॉ रेणु मिश्रा जी (गुणगाँव) एवं संचालन कवयित्री नीलम सक्सेना जी (पुणे) ने किया। कार्यक्रम में कवियत्री सुनयना धनवाल जी (नोयडा), कवियत्री हिमाद्रि समर्थ जी (जयपुर) एवं कवयित्री सरिता त्रिपाठी जी (लखनऊ) ने प्रतिभाग कर अपनी कविताओं को अपने मधुर स्वर में प्रस्तुत किया। संचालन करते हुए नीलम जी की चार लाइन की पंक्तियाँ सभी के आकर्षण का विषय बनी रही, उनकी कविता गरमी विषय पे बेल शीर्षक पर “इतनी गरमी थी चारो ओर कि सब कुछ सूख रहा था” व सकरात्मकता विषय पे मैं एक शमा शीर्षक पर “जब दर्द ने मेरे दिल में ठहराव सा ला दिया और सड़न सी महसूस होने लगी तो मैं चंद पलों के लिए रुक गयी” बहुत ही बेहतरीन थी।

सुधा जी ने अपनी कविता

“ये आलस भरी दुपहरी, ये पतझड़ के गुनगुने दिन
प्रश्न और उत्तर में डूबे, काग़ज़ वाले अनमने दिन”

एवं गजल

“यही है आरज़ू दिल की निगाहे लुत्फ़ मिल जाये
नहीं ख़्वाहिश कोई कि तू मुझे लाल ओ गुहर दे”

को सुना कर सभी को काव्य रस में सरावोर कर दिया।

रेणु जी ने की कविताओं की पंक्तियाँ कुछ इस प्रकार थी-

“भीषण गरमी धूप तेज है और तुम्हारी हमें फिकर है
मेरी प्यारी चिड़िया रानी देखा रक्खा है दाना पानी”

“मैं और मेरा दोस्त हम रोज शाम को
उसी तय समय उसी नियत जगह मिलते”

सरिता जी की कविता गरमी का मौसम एवं नन्हें कोपल पर इस प्रकार थी-

“हाय हाय ये गरमी कैसी है गरमी
हाल हुआ बेहाल तुझसे ये गरमी”

“वो बनने को तैयार है विशाल
गिराता है हर साल पुराने पत्तों को”

सुनयना जी की पंक्तियाँ इस प्रकार थी-

“ऋतु चक्र ने देखो ली है फिर अगड़ाई
गरमी ने दी दस्तक सरदी ने ली विदाई”

“वक़्त की ठोकरें खा खाकर हमने जीना सीखा है
हर गम को पीना और हर दुःख को सहना सीखा है”

हिमाद्रि जी की पंक्तियाँ इस प्रकार थी-

“गरमी के मौसम का ऐसा होता है खुमार
लगता है सूरज को चढ़ा हो जैसे बुखार”

“जुनू बनकर जो छाया हूँ, वो मैं तेरा ही उगाया हूँ
तेरे ख्वाबों से जो उपजा, हकीकत बनने आया हूँ”

सभी श्रोतागण ने अपने टिप्पणी के माध्यम से लगातार उत्साहवर्धन किया जो कि कबीले तारीफ रहा। तो आप सभी से गुजारिश है पेज से जुड़िये और अपने सकारात्मक टिप्पणी से पेज की गरिमा रखते हुए काव्यपाठ का आनंद ले, जो लगातार आयोजित होता रहता है। प्रसून जी का हार्दिक आभार खूबसूरत पोस्टर बनाने के लिए।

“कवि हैं वक्ता उन्हें श्रोता की जरूरत है
दोनों मिल जाये तो महफ़िल की शोहरत है
तो आया करिये महफ़िल में हमारे सभी
आजकल आभासी कवियों की मुहूरत है”

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