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माँ की ममता : माँ तू महान है तुझे भी जीने का अधिकार है

श्रीयम न्यूज़ नेटवर्क” द्वारा आयोजित प्रतियोगिता “माँ की ममता” के आलेख वर्ग में  प्रथम स्थान प्राप्त आलेख

  • रीता सिंह

दिव्या से कहां गलती हुई थी ? ऐसा उसने क्या गलत किया था अपने बेटे के साथ , जो आज उसे ये सजा मिल रही थी ? जब से शादी हो के वो घर आई थी तब से ही अपने सास ससुर के अत्याचार सह रही थी । कम उम्र में ही उसकी शादी हो गई थी। लेकिन शादी मे दहेज न मिलने की वजह से उसे परेशान किया जाता था। उसका पति भी उसका साथ नही देता था। और इस बारे में वो अपने माँ बाप को भी कुछ नही बताती थी क्यों कि वो अपने माँ बाप को दुख नही देना चाहती थी। दिव्या चुपचाप सारे दुख सहती रही। शादी का एक साल पूरा होते होते वो एक बेटे की माँ बन गई थी। और फिर तीन साल पूरे होने पर उसके दो बेटे हो गए थे। अब उसका सारा ध्यान अपने बच्चों पर ही केंद्रित था। उसके बच्चों को भी परेशान किया जाता था। उसके जेठ उसके बच्चों को शराब घुमाने के बहाने ले जाकर उन्हें शराब पिलाते थे। जिठानी मौका देख कर उसके बच्चों को मारती थी। जब दिव्या को ये पता चला तो उसने अपने बच्चों को हर बुरी नजर से बचाने के लिए उनका कमरे से बाहर निकलना ही बंद कर दिया। छोटे से कमरे के अंदर ही खाना बनाना और वही बच्चो का खेलना सब होता था। जब बच्चो को पढ़ाती थी तब उनकी पढ़ाई में बाधा डालने के लिए उसके कमरे का बाहर जिठानी के बच्चे खूब शोर मचाते थे। दिव्या अपने कमरे का दरवाजा बंद कर के अपने बच्चो को पढ़ाती थी। उसके लिए उसके बच्चे ही उसकी जिंदगी थे।

जिस घर में उसकी शादी हुई थी वहां बेटो को तो बचपन से ही दुकान पर बैठा दिया जाता था । तो पढ़ाई कैसे होती ? उसको भी यही डर था। कि उसके बच्चों की पढ़ाई में कोई बाधा न आए। क्योंकि उसका पति भी शिक्षित नहीं था । उसने हर संभव कोशिश कर के अपने बच्चों को पढ़ाया । वो बचपन से बच्चों को हर बुरी नजर से बचा के रखती । बच्चों के साथ एक दोस्त की तरह रहती थी । उसके बच्चे भी बहुत समझदार थे । उसे लगता था कि उसका पति अच्छा नही मिला तो क्या हुआ । उसके बच्चे समझदार निकले ये उसके लिए बहुत बड़ी बात थी । दिव्या के दोनो बेटे बहुत ही कठिनाइयों से पले थे। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी । लेकिन जब दोनो बेटों की नौकरी लगी तब दोनो बेटो ने अपने मम्मी पापा को हर वो खुशी दी जो अब तक उनको नही मिली थी । दोनो बेटे अपने मां बाप का बहुत ख्याल रखते थे। सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। दिव्या हर किसी से अपने बच्चों की तारीफ करते नही थकती थी। लेकिन उसके पति से उसका झगड़ा बहुत होता था । कई बार उसको लगता था कि कहीं जाकर मर जाए । लेकिन उसके बच्चे उसको समझाते थे तो सोचती थी कि दोनो बेटों की शादी हो जाए तो उसकी जिम्मेदारी पूरी हो जाएगी फिर शांति से वो मर सकती हैं । दिव्या एक लेखिका और कवियत्री थी । उसको बचपन से ही लिखने का शौक था । लेकिन शादी के बाद से घर की जिम्मेदारियों में ऐसी फंसी कि लिखने की तो दूर की बात थी , वो जिंदा रह सके उसके लिए इतना ही काफी था।
ऐसे में खुद जिंदा रहना और अपने बच्चों को संभालना ही उसका मुख्य उद्देश्य था। और जब उसके बच्चों की पढ़ाई पूरी हुई और उनकी अच्छी नौकरी लगी तब उसे लगा जैसे उसे उसके जीवन की सारी खुशियां मिल गई हैं। वो बहुत खुश थी। लेकिन उसके पति से उसका झगड़ा होता ही रहता था। पति से झगड़ा न हो इसलिए अब दिव्या घर के कामकाज के बाद अपना सारा समय लेख कविता या कहानी लिखने में बिताती थी । अब बड़े बेटे की शादी तय हो गई थी । दिव्या बहुत खुश थी। उसकी रचनाएं उसकी होने वाली बहू को भी बहुत पसंद आती थी । उसकी रचनाएं उसकी होने वाली बहु भी पढ़ती थी और उसके बेटे को भी सुनाती थी।

बड़ी धूमधाम से उसके बड़े बेटे की शादी हो गई । शादी के बाद दो महीने तक सब ठीक ठाक चला । लेकिन अब उसके बेटे को दिव्या का लिखना , अखबार में उसके लेख प्रकाशित होना अच्छा नही लगता था। अब उसकी कविताएं वीडियो में देखने में उसको अच्छी नहीं लगती थी। और बेटे ने दिव्या से ये सब बंद करने के लिए कहा । दिव्या हैरान थी । अब अचानक से ऐसा क्या हो गया था कि उसका अपना ही बेटा उसके खिलाफ हो गया था । जब एक दिन दिव्या के बेटे ने उससे बड़ी बदतमीजी से बात की तो उससे रहा नही गया । वो फूूूट फूूूट कर रो पड़ी। अगर उसके बेटे को उसके लिखने से परेशानी होती तो वो शुरू से अपनी मां का साथ नही देता । दिव्या पूरी रात रोती रही । कुछ लोग ऐसे होते हैं जो सामने आपकी काबिलियत की बहुत तारीफ करते हैं लेकिन अंदर ही अंदर उनको परेशानी होती है कि इसकी इतनी प्रसिद्धि क्यों हो रही है । उसको सब समझ आ गया था। वो ऊपर से सबके सामने हंस बोल रही थी लेकिन अंदर ही अंदर उसे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसका कलेजा ही निकाल दिया हो। दिव्या ने सुना था कि शादी के बाद बेटे बदल जाते हैं लेकिन सिर्फ दो महीने में उसका बेटा उसकी कामयाबी को नकार देगा ये नहीं सोचा था । वो इसी असमंजस में थी उसने कहां क्या गलती की ? उसके सपनों का महल टूट गया था । वो अंदर ही अंदर घुटी जा रही थी । दिव्या ने सुना था कि मां बाप को दुखी कर के कोई भी औलाद सुखी नही रह सकती इसलिए वो हर पल बस भगवान से यही प्रार्थना करती कि उसकी आह उसके बच्चों को न लगे । वो जहां भी रहें खुश रहें। उसने सोच लिया था कि छोटे बेटे की शादी करने के बाद फिर वो सब कुछ छोड़ के चली जाएगी इस जहां से दूर। जहां कोई उसे परेशान न कर सके और फिर दो साल बाद उसके छोटे बेटे की भी शादी हो गई। उसकी जिम्मेदारियां पूरी हो गई थी। अब घर में किसी को उसकी जरूरत नही थी। दोनो बेटे अपनी विवाहित जिन्दगी में खुश थे। अब उसको अकेलापन वहुत खाता था। एक दिन उससे रहा नही गया। उसने एक पत्र लिखा और अपने तकिये के नीचे रख कर वो चुपचाप घर से निकल गई। कहाँ जाना था उसको कुछ पता नही था। बस अपनी उधेड़बुन में चलती जा रही थी। सड़क के बीचोबीच एक अधेड़ उम्र की महिला को चलते देख तेजी से आ रहे ट्रक के ड्राइवर ने ब्रेक लगाया। लेकिन जब तक ब्रेक लगे दिव्या ट्रक के नीचे आ चुकी थी। और वहीं उसकी उसकी मृत्यु हो गई।

दिव्या की मौत की खबर मिलते ही उसके दोनो बेटे बहु और पति भौचक्के रह गए। उसके पति को तकिये के नीचे रखा दिव्या का पत्र मिला। बेटे ने पत्र पढ़ा – “प्रिय बच्चो, मैंने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी हैं। तुम दोनो बेटो को शिक्षित करना और तुम्हारा विवाह करना ही मेरा उद्देश्य था। मेरा उद्देश्य अब पूरा हुआ। अब मेरे होने या न होने से किसी को कोई फर्क नही पड़ता। पता है बेटा, जब कोई बहुत ज्यादा परेशान होता है ,जब उसे कोई अपना नजर नही आता तब उसे उसकी माँ की याद आती है। क्यों की एक माँ ही ऐसी होती है जो हर समय सिर्फ और सिर्फ अपने बच्चो की खुशी सोचती है। और मुझे उस दिन अपनी माँ की बहुत याद आई थी जिस दिन तुम अपनी शादी के बाद मुझसे लड़े थे। तब से लेकर आज तक मुझे अपनी माँ की बहुत याद आ रही है। अगर मेरी माँ जिंदा होती तो आज मैं तुम सबको छोड़ कर अपनी माँ के पास चली जाती। क्योंकि माँ के दरवाजे हमेशा अपनी संतान के लिए खुले रहते है। लेकिन क्या करूँ ? मेरे पास कोई और विकल्प ही नही बचा। इसलिए आज मैं तुम सबको छोड़ कर हमेशा के लिये जा रही हूं। मैं ईश्वर से ये प्रार्थना करती हूँ कि मेरे बच्चो को कभी मेरी याद न आये। तुम सब हमेशा खुश रहना। मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा।”

पत्र बेटा पढ़ रहा था और दिव्या का पति इस इंतजार में था कि उसके बारे में भी दिव्या ने कुछ लिखा होगा। लेकिन जब पत्र पूरा पढ़ लिया और उसका कहीं जिक्र ही नही आया। उसको समझ में आ गया था कि उसने जैसा व्यवहार दिव्या के साथ किया तो अब दिव्या से कोई भी उम्मीद रखना गलत था। दिव्या ने अपनी सारी जिन्दगी एक माँ होने का किरदार बखूबी निभाया था। दिव्या ने एक अच्छी पत्नी, एक अच्छी बहु ,एक अच्छी भाभी, एक अच्छी बहन सारे किरदार उसने बखूबी निभाये थे। शादी के बाद ही उसके सारे सपने टूट गए थे। फिर भी उसने अपने सारे रिश्ते निभाये। लेकिन उसका पति हमेशा सको साबके सामने जलील करता था । जबकि किसी भी तरह से उसके लायक भी नही था। दिव्या बस अपने बच्चो के लिए ही जी रही थी। लेकिन जब उसके बच्चे भी उसे नही समझ सके तो उसे ऐसा लगा जैसे अब किसी को उसकी जरूरत नही है तो अब वो कहाँ जाए ? एक माँ अपनी जिम्मेदारी पूरी कर के अपने बच्चो को खुश रहने का आशीर्वाद दे कर हमेशा के लिए इस जहां को छोड़ कर चली गई थी।

ऐसा बहुत लोगो के साथ होता है। एक महिला अपने बच्चो के लिए सारी उम्र जीती है और उम्र के उस मोड़ पर {जहां उनके पास कोई विकल्प नही होता कि बच्चो को छोड़कर कहाँ जाएं} तब एक माँ क्या करे ? बहुत कठिन होता है एक माँ बन कर जीना। क्यों कि एक माँ के लिए उसके बच्चे ही सब कुछ होते हैं और जब ये “सब कुछ” उसके पास नही रहता तो फिर “कुछ नही” बचता एक माँ के पास। कोई भी संतान अपनी माँ को समझ पाए या नही, लेकिन एक महिला को ये जरूर समझना चाहिए कि वो एक पत्नी एक माँ एक बहन और एक भाभी से पहले एक महिला है। और उसे अपनी जिंदगी जीने का पूरा अधिकार है। माँ तू महान है और तुझे भी जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन काश ! हर माँ ये समझ पाए ? काश हर औलाद ये समझ पाए।

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