- सलिल पांडेय
कोरोना से मुक़ाबला करने पर यदि फिजूलखर्ची पर रोक लगा दी जाए तो सरकार का जो पैसा बचेगा, उससे मरीजों की दवा आदि की बेहतर व्यवस्था की जा सकती है। निम्नांकित विन्दुओं पर सरकार विशेष विचार करे…
◊ वैक्सिनेशन के लिए राजधानी लखनऊ से जब जनपदों और मंडलों को दवा दी जाती है तो पर्याप्त मात्रा में देकर मार्ग-व्यय बचाया जा सकता है।
◊ उदाहरण के लिए किसी जिले को राजधानी लखनऊ बुलाकर यदि 2 या तीन हजार डोज वैक्सिन दिया जाता है तो भारी धनराशि वाहन पर खर्च आता है।
◊ कभी-कभी प्रति डोज 40-50 रुपए तक हो जाते हैं।
◊ मसलन विन्ध्याचल मंडल मुख्यालय के मिर्जापुर को लखनऊ बुलाया गया तो एम्बुलेंस का व्यय और स्टाफ का डीए मिलाकर 10 से 12 हजार का खर्च आता है। सोनभद्र और भदोहो को मिर्जापुर बुलाकर देने पर इन जनपदों का भी व्यय जोड़ लिया जाए तथा मात्र दो हजार डोज दिया गया तो प्रति डोज 40/-तक का व्यय होता है।
◊ अधिक दूरी के जनपदों को यदि लखनऊ बुलाया जाए तो एम्बुलेंस की पूरी क्षमता तक वैक्सिन दिया जाना चाहिए ताकि हर दूसरे या तीसरे दिन लखनऊ का चक्कर न लगाना पड़े।
◊ घर-घर सर्वे के लिए हर बार पल्स आक्सीमीटर एवं थर्मल स्कैनर खरीदने की क्यों जरूरत पड़ती है।
◊ पहली लहर में खरीदे गए उपकरण एक ही साल में क्यों निष्प्रयोज्य हो गए?
◊ चाइनीज़ उपकरणों पर पिछली लहर में केन्द्र सरकार द्वारा प्रतिबंध के बावजूद स्वास्थ्य विभाग में ये उपकरण कहां से आ जा रहे हैं।
◊ पहली लहर में 800/-में पल्स आक्सीमीटर 3000/- में 400/- में बिकने वाला न्यूमिलाजर 3000/- में आइबरमैकटिन टैबलेट 100/- पिछली बार 3/- का थ्री लेयर मास्क 10/- आदि अन्य वस्तुओं की बिक्री खुलेआम कैसे हो रही है?
◊ आन लाइन 1200/- के मेडिकल उपकरण पर 4500/- मूल्य क्यों प्रिंट है? दुकानदार प्रिंट मूल्य पर बेचकर ग्राहकों को ठग नहीं रहा ?
◊ पॉजिटिव घोषित होकर होम आइसोलेट हुए मरीजों को पल्स आक्सीमीटर तथा अन्य उपकरण एवं दवाएं खरीदनी पड़ी। जबकि सरकार जगह एवं स्टाफ की कमी से क्वारन्टीन सेंटर न बनाकर मरीजों को उनके हाल पर नहीं छोड़ दिया ?
◊ क्या इन मरीजों एवं चुनाव ड्यूटी करने वालों को उक्त उपकरण देना सरकार का दायित्व नहीं था ?
◊ जनता से तथा वेतन और पेंशन से पीएम केयर फंड में लिए गए धन से यह सामग्री प्राप्त धन के अनुपात में हर जिले में नहीं दी जा सकता थी ?
◊ कोरोना संबंधित प्राइवेट टेस्ट का पैसा मरीज को दिया जाएगा ?