Khula Sach
अन्यताज़ा खबर

कविता : अंधा-युग

  • सलिल पांडेय

ज़मीन छोड़कर चलते जो लोग
वे बेचारे
कैसे बचाएं
तड़पते, चीखते, मरते लोगों को
वे जल्दी में हैं
इसी तरह के बिलखते लोगों को बचाने के कवायद में
वर्चुअल गोष्ठी में
जाने के लिए जल्दी में हैं।
वहां भारी भरकम लोग इंतजार में हैं
टीवी चैनल भी बेकरार है।
बात उनकी
24 कैरेट की है
तर्क भी सोलह आने सही है
कोई उनकी दलील काट नहीं सकता
कि पांव के नीचे
कब कीड़े-मकोड़े दब गए,
कुचल गए, मर गए
इसका लेखा-जोखा
लोक-लेखा कमेटी भी
नहीं कर पाएगी
तो वे बेचारे
लाशों से पटे
गांव-शहर
श्मशान, कब्रिस्तान,
को देखकर आखिर कर भी क्या सकते हैं?
ज्ञान लाजवाब है
बहती लाशों को
मत देखो
सिर्फ नदी देखो,
नदी की धार देखो
दुःख में छिपा हुआ है सुख खोजो
वजन से बोझिल धरती
का कम होता बोझ देखो
नये युग-पुरुष को
अदब से सलाम करना सिखो
कोरोना पाजीटिव का मुकाबला
सोच पाजीटिव से
करना सिखो
सतयुग, त्रेता, द्वापर युग नहीं
यह अंधायुग है
दिमाग-युग भी है
जितनी कलाबाजी कर सको
करते रहो
भक्ति का तौर तरीका बदलो
जो हुआ खराब हुआ
जो हो रहा है सर्वश्रेष्ठ हो रहा है
जो होगा
सब पीछे रहेगा
नए कृष्ण का यही ज्ञान है।
विश्वगुरू बनने मे अब देर नहीं
बस समय देखो, समय की धार देखो
खुद पीठ थपथपाओं
ताली, थाली, शँख, नगाडा
जमकर बजाओ,
ताकि गांधी-नेहरु की आत्मा भी
लजा जाए।

Related posts

रोहतास : 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली का आयोजन

Khula Sach

सोनी सब ने नये साल 2021 के लिये एक सेहतमंद और खुशहाल साल की शुभकामनाएं दीं

Khula Sach

Mirzapur : पुलिस अधीक्षक द्वारा थाना कछवां का किया गया आकस्मिक निरीक्षण, दिए गए आवश्यक दिशा-निर्देश

Khula Sach

Leave a Comment