रिपोर्ट : सलिल पांडेय
एक मुद्दा गरमागरम बहस का बन गया है कि कोरोना वायरस चीन द्वारा चलाया गया ‘जैविक हमला’ है।
इन बहस को बिना किसी तर्क-वितर्क के स्वीकार कर लिया जाए कि ‘चीन का यह वायरस हमला है’ तो प्रश्न लाजिमी है कि इस पर नजर रखने की जिम्मेदारी किसकी थी ? गांव-गांव के गरीबी रेखा से नीचे जीने वाले लोग, राशन की दुकान में लाइन लगाकर खड़े लोग, प्रधानमंत्री आवास के लिये चक्कर काटते लोग या सरकार और उसका तंत्र?
चीनी राष्ट्रपति का झूले में बैठाकर गुजरात में भव्य स्वागत किस लिए किया गया था ? क्या स्वागत गलत और उल्टा कदम हो गया ? इसकी जिम्मेदारी देश की जनता की है? देश के नवजात शिशुओं की है ?
चीन पर नजर किसको रखनी चाहिए थी ? क्या परिवार से उपेक्षित होकर वृद्धाश्रम में रहने वालों की ?
बीसों वर्ष पूर्व से यह तथ्य सामने आ रहा था कि इस वैज्ञानिक युग में प्राचीन और मध्ययुग की तरह देश पर कब्जा करने की होड़ के बजाय आर्थिक साम्राज्य कायम करने की लड़ाई शुरू हुई है। जिसमें चीन और विकसित राष्ट्र सफल भी हो गए हैं। महंगे दाम पर दवा आदि दे रहे हैं। इसका मतलब राफैल की जरूरत नहीं बल्कि राफैल की तरह दिमाग की जरूरत थी।
सर्जिकल अटैक, धारा 370 समाप्ति, राममन्दिर बनाने का श्रेय कोई ले और वायरस हमले का ठीकरा गैरों के सिर पर यदि फोड़ा जाए तो ‘मीठा मीठा गप और कड़वा-कड़वा थू’ कहावत लागू होती दिख रही है।