ताज़ा खबरदेश-विदेश

पत्रकारिता जगत के महासूर्य रविशंकर मिश्रा पंचतत्व में विलीन

– सुरेन्द्र दुबे

मुंबई, (महाराष्ट्र) : देश की राजधानी नई दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिन्दी समाचार पत्र चौथी दुनिया के आधार स्तंभ और महानगर मेल समाचार पत्र के मालिक मुद्रक प्रकाशक संपादक रहे भदोही जनपद उत्तर प्रदेश निवासी मृदुभाषी मेरे परम प्रिय बड़े भाई , मित्र, आदर्श गुरु वरिष्ठ पत्रकार पंडित रविशंकर मिश्रा जी कल सबेरे सबेरे कोरोना से जंग हार 3 मई 2021 देवलोक को प्रस्थान कर गए। यह दुखद समाचार सुनकर हृदय को बहुत गहरा आघात लगा और दुख हुआ, लेकिन ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध एक सांस भी इस धरा पर कोई जीव नहीं ले सकता,यह ध्रुव सत्य है।

श्री साईंनाथ और हर महीने की पूर्णिमा को सत्यनारायण व्रतकथा श्रवण करने वाले श्री नारायण हरि विष्णु जी के परम भक्त रविशंकर मिश्रा जी अपनी साध्वी धर्म पत्नी दो बेटे-बेटियों के साथ भरे पूरे परिवार को रोता विलखता छोड़,इस संसार को अलविदा कह चले गए।उनका पार्थिव शरीर पंचतत्व में सोमवार को विलीन हो गया।

जानकारी के अनुसार अप्रैल माह के दूसरे पखवाड़े से ही हल्का फुल्का सर्दी बुखार खांसी से परेशान थे।

चेकप कराने पर कोराना की पुष्टि हुई थी ऐसा कहा जाता है। स्थानीय डॉक्टरों की देखरेख में वह घर से ही इलाज करा रहे थे। हमेशा से संयमित जीवन पथ पर अग्रसर रहने वाले श्रीं रविशंकर जी की

दिन ब दिन हालत खराब होती चली गई। बीते शुक्रवार से जब हालत अधिक बिगड़ने लगी तो उन्हें नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया गया और वेंटिलेटर पर रखा गया था।

आखिर नियति ने एक पवित्र आत्मा को सोमवार सुबह चिर निद्रा में सुला दिया।

बता दें कि पत्रकारिता जगत में रविशंकर मिश्रा जी एक हस्ताक्षर थे।मजी हुई और सूलझी हुई लेखनी के साथ साथ एक अच्छे फोटोग्राफर भी श्री रविशंकर मिश्रा जी थे।

दैनिक दक्षिण मुंबई हिंदी समाचार पत्र को अपनी मेहनत और लगन से अत्यंत ही अल्प समय में मुंबई के प्रतिष्ठित अखबारों की कतार में लाकर खड़ा करने वाले रविशंकर मिश्रा जी ही थे।

एक निडर निर्भीक निष्पक्ष पत्रकार की तरह पत्रकारिता में अपनी भूमिका स्पष्ट रूप से निभाते हुए सहसा चले गए। उनके साथ बिताए अविस्मरणीय पल इस धरा पर और मेरे हृदय में शेष रह गए हैं।

एक बड़े भाई और गुरु की तरह हमेशा हमारा मार्गदर्शन आजीवन करते रहे। जब कभी मुझे उदास देखते थे अचानक गंभीर हो जाते और फिर हंसाने का प्रयास करने लगते। हम एक बात याद है , हमेशा कहते थे, जाने वाले को हंस के विदा करो।

क्या पता फिर मौका मिले या न मिले। लेकिन मुझे सीख देने वाले रविशंकर जी ने वाकई हमें मौका नहीं दिया।।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Translate »