- वीरेन्द्र बहादुर सिंह
आप कभी-कभी परेशान हो जाती हैं। घर में सभी खुश रहें, इसलिए आफिस में सभी को खुश रखने की कोशिश के बीच आप घर और आफिस दोनों के बीच बैलेंस नहीं बना पातीं।वो कभी मैसेज कर के पूछ लेती हैं, ‘आज बाहर चलते हैं?’ कभी प्रेम भरे पलों के बीच वो कह देती हैं कि आप थोड़ाबहुत समय देते तो…!
आप उन्हें समय नहीं दे रहे हैं, इस बात की उन्हें परेशानी है। आप और वो, दोनों बैठे हों तो उनके बीच किसी दूसरे की जरूरत नहीं है। व्हाट्सएप की बीप या मोबाइल की रिंगटोन भी नहीं। समय दीजिए, प्रेम कीजिए, बात कीजिए, बाहर जाइए, घूमने जाइए आदि आदि। पहले जो रोज कहती थी, अब वह कभी-कभी कहती है। और फिर उसने कहना ही बंद कर दिया है।
स्त्री जब शिकायत करना बंद कर दे तो पुरुषों को चेत जाना चाहिए। स्त्री कुकर की सीटी है और उसकी जिंदगी कुकर जैसी है। जब सीटी बजे तो समझ लेना चाहिए कि अंदर भाप जमा हो गई है। अगर सीटी नहीं बज रही है तो देख लेना चाहिए कि सीटी में क्या दिक्कत है। क्योंकि अगर सीटी नहीं बज रही है तो कुकर में विस्फोट होना तय है। ज्यादातर पुरुष इस विस्फोट से बचने के लिए साल में एकाध बार ओवरसीज वेकेशन प्लान कर देते हैं। पत्नी के जन्मदिन पर उसकी उंगली में सोलिटेर पहना देते हैं। एनिवर्सरी पर रियल सोने के तार जड़ी कांजीवरम की साड़ी उसकी अलमारी में लटका देते हैं। महीने दो महीने में उसे पानीपूरी, चाट या होटल में खिला कर प्रेम की जिम्मेदारी पूरी कर के संतोष कर लेते हैं। जबकि यह पर्याप्त नहीं है। स्त्री शिकायत इसलिए करती है, क्योंकि उसकी मर्जी और आपकी मर्जी मिल नहीं रही होती। वह जो चाहती है और आप जो दे रहे हैं वे दोनों अलग-अलग होते हैं। अपने मन की कराने के बजाय कोई उनके मन की बात सुने उन्हें इसमें ज्यादा रुचि होती है। इसलिए साल में कम से कम एकाध बेर तो पतियों को पत्नी की मर्जी पूछनी ही चाहिए। पति को पूछना चाहिए की एक पति के रूप में वह एकदम फिट हैं या नहीं? उन्हें यह भी पूछना चाहिए कि 17 साल की उम्र उसके सपने में घोड़े पर सवार हो कर जो राजकुमार आया थाउसके चेहरे के साथ अभी मेरा चेहरा मैच करता है या नहीं? हर पति, हर पिता, हर प्रेमी को अपनी पत्नी, अपनी बेटी या अपनी प्रेमिका की मर्जी पूछनी चाहिए। क्योंकि हर ओपिनियन मैटर्स, संबंधों से ले कर घर के महत्वपूर्ण निर्णयों में स्त्री की मर्जी को भी महत्व देना चाहिए कि उसकी मर्जी और ओपिनियन भी महत्वपूर्ण है।
हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि ‘यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते, तत्र रमन्ते देवता’। यानी कि जहां स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवताओं का वास होता है। पर स्त्रियों की पूजा कैसे की जाए? किसी मंदिर में चबूतरे पर बैठा कर तिलक लगा कर उसकी आरती उतिरी जाए? उस पर प्रसाद चढ़या जाए? नहीं, महत्वपूर्ण निर्णय लेते समय जितना आपके विचारों का है, आपकी मर्जी का है, उतना ही महत्व स्त्री के विचारों, स्त्री की मर्जी को देना चाहिए। यही स्त्री की पूजा करने के बराबर है। स्त्री की मर्जी को स्वीकार करना एक तरह से स्त्री का सम्मान है। अगर आप को अभिप्राय देने का अधिकार है तो स्त्री को भी अपना अभिप्राय देने का हक होना चाहिए। दाल में नमक अधिक पड़ गया हो तो हम एक झटके में कह देते हैं कि आज तो दाल बहुत नमकीन हो गई है। अगर आप बेटे का एडमिशन करा रहे हैं तो वह भी कह सकती है कि उसे घर से इतनी दूर मत भेजो।
हर पुरुष में थोड़ा स्त्रीत्व होता है और हर स्त्री में थोड़ा पौरुषत्व होता है। स्त्री का स्त्रीत्व पुरुष में रहे जरा अस्त होते स्त्रीत्व को पूर्ण करता है। जबकि पुरुष का पौरुषत्व स्त्री में रहने वाले थोड़े पौरुषत्व को पूर्ण करता है। इसलिए स्त्री और पुरुष एकदूसरे का पूरक कहा जाता है और इसीलिए बच्चे के सर्जन के लिए दोनों का मिलाजुला प्रयास अनिवार्य है।
स्त्री-स्त्री के समागम या पुरुष-पुरुष के बीच के समागम से बच्चे का जन्म नहीं हो सकता। अगर स्त्री और पुरुष दोनों दोनों एकदूसरे के पूरक हैं तो दोनों के विचार और दोनों की मर्जी भी एकदूसरे की पूरक होनी चाहिए। दोनों की मर्जी मिले तो कोई भी निर्णय संपूर्ण होगा। कृष्ण पूर्ण पुरुष कहलाए, क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में आई तमाम महिलाओं को स्वीकार किया। शिव जैसा पौरुषत्व दूसरा कोई नहीं, क्योंकि शिव ने शक्ति को स्वीकार किया है। शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं। अगर शिव जैसे शिव भी शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं तो अपने शिवालाल और शिवकुमार भी शक्ति के बिना अधूरे ही रहने वाले हैं। एक हमय था जब आईक्यू को अधिक महत्व दिया जाता था। स्त्री के मर्जी की बात आती तो खास कर के पूछा जाता कि उसका आईक्यू कितना है? पर अब उतना ही महत्व ईक्यू को दाया जाता है। कोई दुर्घटना हुई हो तो स्त्री और पुरुष का रिएक्शन बहुत ही अलग अलग होता है। ड्राइवर ने ब्रेक मारी या नहीं? स्पीड बहुत ज्यादा थी?गाड़ी की तो एकदम दुर्दशा हो गई? पुरुष इस तरह के सवाल करते हैं। जबकि महिलाएं ‘अकेला ही बेटा था, बच गया न?’ इस तरह के सवाल करती हैं। आईक्यू जरूरी है, पर केवल अकेला आईक्यू काम नहीं आता। उसके साथ इक्यू भी जरूरी है। आईक्यू बुद्धि देता है तो ईक्यू दुर्घटना सहन करने की शक्ति देता है।
महिलाओं में स्थित इमोशनल क्वाॅशंट और पुरुष में स्थित इंटेलिजेंस क्वाशंट मिल जाए तभी परिपूर्णता आती है। जीने के लिए अन्न के साथ जल की भी जरूरत होती है। महिला की मर्जी को स्वीकार करने पर ही पुरुष परिपूर्ण होता है। जो स्त्री की मर्जी और अस्तित्व को नकार देता है, वह राक्षस कहलाता है। जीवन में स्त्री को स्वीकार करने से असुर भी सुर बन जाता है। अब तय आप को करना है कि आप को असुर बनना है कि सुर बनना है?
(लेखक मनोहर कहानियां एवम् सत्य कथा के संपादकीय विभाग में कार्य कर चुके है)