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कितना बदल गये हो तुम

– मनीषा कुमारी, मुंबई, महाराष्ट्र

मेरे बिना तुझे एक पल गवारा नही था।
बिना बात किये तुम्हारा दिन ढलता नही था ।।
आज बिना बात किये कैसे तुम रह लेते हो ।
मेरे बिना कैसे तुम अब जी लेते हो ।।

कितना बदल गये हो तुम …

हर सासों में मुझे ही महसूस करते थे ।
हर महफ़िल में मेरे ही चर्चे तुम करते थे ।।
हवाओं से भी मेरी ही बाते करते थे ।
आज सब मेरे बिना कैसे आहे भरते हो ।।

कितना बदल गये हो तुम …

तुझे तो आदत थी मेरे संग घूमने जाने की ।
तूझे तो ख्वाहिश थी मेरे साथ जीवन बिताने की ।।
आज गैरो के बाहों मे कैसे सुकून से सोते हो ।
गैरों के जुल्फों को कैसे आज सवारते हो ।।

कितना बदल गये हो तुम …

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