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क्या कसूर था मेरा !

– मनीषा कुमारी, (मुम्बई)

क्या कसूर था मेरा जो आज इतना दर्द मिला।
जिसे अपना समझा उससे ही आज गिला मिला।।

ना कभी कोई झूठ बोला ना कोई सच छिपाया।
फिर भी आज सबने सही को ही गलत बताया।।

हर किसी को अपना मानना क्या कसूर हैं अब।
हर किसी को मदद करना क्या कसूर हैं अब।।

माना कि आज सब मतलब के यार हैं यहाँ।
फिर भी सच के साथ जीना गलत है कहाँ।।

हर किसी के चेहरे पे खुशी दिया हमनें।
हर किसी के जिंदगी में हँसी दिया हमनें।।

हर किसी से वफ़ा करना भी कसुर हैं इस जहां में।
हर किसी के लिए खो दिया खुद को इस जहां में।।

नसीब में नही था इस जीवन मेरा साथ लिखा तुझे।
तभी तो मेरी हर अच्छाई में बुराई ही दिखा तुझे।।

बहुत जी लिया दूसरों के लिए इस जीवन में।
अब खुद के लिए जीना है इस जीवन में।।

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