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Bhadohi : गोद लिये गये बच्चों में 106 ने रोग को हराकर बन चुके चैम्पियन

229 को गोद लिया जिले में मौजूद 123 टीबी बाल रोगी

भदोही, (उ.प्र.) : जिले में टीबी रोग से पीड़ित 229 बाल रोगियों को विभाग गोद ले चुका है जबकि जिले में अभी 123 टीबी बाल रोगी मौजूद हैं। इसमें से 106 बच्चे टीबी रोग को हराकर चैम्पियन बन चुके हैं । गोद लिये गये 123 बच्चों का अभी इलाज चल रहा है। यह आंकड़ा 1 अप्रैल 2020 से मार्च 2021 तक का है यह जानकारी जिला कार्यक्रम समन्वयक मनीष ने दी। जनपद के समाजसेवियों स्वयंसेवी संगठनों और विभिन्न विभाग के अधिकारियों से अपील किया है कि वह टीवी के बाल रोगियों को गोद लेने के लिए आगे आए और उनको स्वस्थ्य बनाने में मदद करें।

मुख्य चिकित्साधिकारी डाक्टर लक्ष्मी सिंह ने बताया कि टीवी के बाल रोगियों का गोद लेने का आशय पुत्र बनाने का नहीं है। जिन बाल रोगियों को गोद लिया जाता है इन्हें पोषक सामग्री देनी होती है और नियमित रूप से उनका हालचाल लेना होता है। उपचार के दौरान पोषक तत्वों की आवश्यकता भी सबसे ज्यादा होती है। इलाज के दौरान मनोबल बढ़ाने और पोषकता का ध्यान लेने की मुहिम कारगर साबित हो रही है। इसके लिए प्रदेश महामहिम राज्यपाल ने भी पूरे प्रदेश में अभियान चला रखा है। टीवी रोग से पीड़ित बाल रोगियों को गोद लेने वालों को किसी भी प्रकार का आर्थिक प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है। यह स्वेच्छा से दी गई सेवा है। ऐसे लोगों को विभाग प्रशस्ति पत्र भी जारी करता है।

जिले के विभिन्न स्कूलों में भी चलाया जा रहा है अभियान

जिला पीपीएम कोआर्डिनेटर ने बताया कि टीबी रोग के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए जिला क्षय रोग अधिकारी व मुख्य चिकित्साधिकारी के सहयोग से स्कूल कालेजों में अभियान चलाया जा रहा है।

बच्चों को टीबी रोग से कराएं मुक्त

जिला कार्यक्रम प्रबन्धक रोली श्रीवास्तव का कहना है कि बच्चों को टीबी से मुक्ति दिलाना उनके लिए एक उज्जवल भविष्य की नींव रखने जैसा है। टीबी से पीड़ित बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती है। इसालिए बच्चों का यथीशीघ्र स्वस्थ्य होना आवश्यक है। समाजिक लोगों और संगठनों को इस कार्य के लिए स्वतः आगे आना चाहिए।

डाक्टर मनीष के प्रयास से ठीक हुए 11 बच्चे

जनपद के दुर्गागंज के 11 बच्चों को अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डाक्टर मनीष ने गोद लिया था। वह बच्चों का लगातार हालचाल लेते रहे। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र गोपीगंज में आयोजित कार्यक्रम में खाने सम्बन्धी पौष्टिक चीजों को उपलब्ध कराया जाता रहा। रविता ने उनकी काफी मदद किया और उनको घर पर जाकर दवाएं देती रही। उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि सभी 11 बच्चे आज स्कूल जा रहे हैं।

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