गरीबी दूर करने के लिए चुनाव लड़ते दिख रहे बहुतेरे लोग
रिपोर्ट : सलिल पांडेय
मीरजापुर, (उ.प्र.) : राजनीति के क्षेत्र में बड़े से बड़े ओहदे पर कब्जा जमाए व्यक्ति हों, जो जाहिर है नेता ही माने जाते हैं, जबकि नेता का आशय नेतृत्व की छाया प्रदान करना होता है या अदना से अदना कार्यकर्त्ता कहने से चिढ़ जाने वाला व्यक्ति हो, वह कैसा नेता है, यह त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में साफ तौर पर देखा जा सकता है।
सीट महिला के लिए आरक्षित होते ही बदल गई नज़र
प्रधान से लेकर जिला पंचायत अध्यक्ष पद यदि महिला सीट आरक्षित हुई तो फटाफट अपने ही घर की किसी महिला जिसे राजनीति की A B C D नहीं आती, उसे मैदाने-जंग में उतार दिया जबकि कोई भी दल हो, उस दल में ‘पक्ष में जिंदाबाद और विपक्षी के लिए मुर्दाबाद’ बोलने वाली महिलाएं दर-किनार कर दी गईं। दल की ही किसी सक्रिय महिला-नेता पर भरोसा किसी राजनीतिज्ञ को नहीं। जबकि हर पार्टी में महिला इकाईयां भी बनी हुई हैं।
बहुत गरीब हूं भैया, कुछ खाने-कमाने के लिए लड़ने दीजिए !
प्रधानी के लिए कई ऐसे लोग दावा पेश कर रहे हैं जो दो जून की रोटी के लिए मारे-मारे फिरते रहे हैं। वे गांव वालों से कह भी रहे हैं कि उन्हें खाने-कमाने के लिए प्रधान बना दीजिए।
इन दावेदारों को अयोग्य घोषित किया जाए
प्रधान गांव के विकास के लिए होता है न कि अपनी गरीबी दूर करने के लिए। इस तरह की उद्घोषणा करने वाले का यदि कहीं से वीडियो बन जाए तो उन्हें चुनाव के लिए अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए।