अहसास के होने से न तलवार की जरूरत और न ही किसी की गर्दन की..!
– शिवम् द्विवेदी
सबसे नायाब अगर कुछ दुनिया में इतना आवश्यक है किसी के लिए भी वह है अहसास। चाहे व्यक्ति भावों से भरा हो या अभावों से, प्यार से भरा हो या नफरत से, साहस से भरा हो या भय से, सभी अवस्थाओं में उभर कर जो रस मन-वचन में आता है, वह है अहसास। यह उतना ही आवश्यक है, जितना प्राणी का इस संसार में होना। इसीलिए प्रकृति ने इसे खूब भर-भर कर हम लोगों के अंदर उड़ेला है। ऐसे ही नहीं हम लोग रिश्तों को निभा रहे हैं जिन्हें वास्तव में बनाए रखना बेहद कठिन प्रक्रिया है। इसका एकमात्र कारण है अहसासों का उमड़ना, चाहे वह अपनेपन के रूप में दिखे या असहाय की सहायता के रूप में या किसी की चाहत में उसे पाने के रूप में। असल में अहसास के मायने की खोज तभी हो सकती है जब यह अनुपस्थित हो जाए। जैसे- आंखें देखें तो सब कुछ, पर पता ही न हो कि कहां उनको रुकना था, मिले तो हम सभी से, पर पता ही न हो कि कोई खास भी था उसके लिए। इसी प्रकार जिंदगी तो जी लिए किसी के साथ, पर पता ही न चले कि क्या जिया गया। अगर अहसास न हो तो फिर क्या होगा बीच में जोड़ने के लिए? शायद जरूरत या अधिकतम लाभ, जो मिलाएगा एक दूसरे को, फिर तुरंत जुदा भी कर देगा। इस तरह तो सिर्फ बचेगी तो एक की गर्दन और दूसरे की तलवार और फिर अंत में तो बचेगी तो केवल तलवार, जिससे हम सिर्फ कुछ काट ही सकते हैं, कुछ जोड़ नहीं सकते, क्योंकि जोड़ने वाला तत्त्व था अहसास। इसलिए अहसास के होने से न तलवार की जरूरत है और न ही किसी की गर्दन की।
अहसास क्यों होता है? क्या सभी को देख कर होता है? कैसे होता है कि अहसास के चलते हम भावनाओं की गिरफ्त में आ जाते हैं? इस तरह के प्रश्न उभरते हैं। अब क्यों का जवाब तो शायद ही मिले, क्योंकि जवाब होता तो अहसास को रोका भी जा सकता था, पर यह तो होकर ही रहता है। यह अलग बात है कि इसे कुछ समय के लिए छिपा जरूर लें, पर होता तो है ही। इसी प्रकार जरूरी नहीं है कि यह सभी के लिए हो ही, क्योंकि यह होगा तभी, जब मन में हलचल होगी। हो सकता है कि मन का लगना, न शुरू हो जाए। अब भावनाएं इस तरह से उमड़ रही हो सकती हैं कि सब कुछ गिरफ्त में आ रहा हो, क्योंकि हम किसी के साथ रहना या जुड़ना चाह रहे होते हैं।इसी प्रकार, हम रिश्तों को देख सकते हैं जो पूरी तरह से अहसास के कारण जुड़े होते हैं। हो सकता है कि मजबूरी भी इसका सबब हो, पर मजबूरी के कारण हम साथ हैं तो फिर वह संबंध कहां हुआ? इसलिए अहसासों को दबाने या छिपाने से बचना चाहिए, क्योंकि यह अनमोल रत्न जाहिर करने के लिए बना है। वैसे भी प्यार या रिश्ते छिपाए या दबाए नहीं जाने चाहिए, क्योंकि जीवन में इनका होना अति महत्त्वपूर्ण है। नहीं तो फिर जग इसी प्रकार घूमता रहेगा और हम भी साथ में घूमते रहेंगे, पर मिलेंगे कभी नहीं।